चलिए दिल्ली से लेह तक के रोमांचक सफर में, अलका कौशिक के साथ। इस सफरनामे में, लेह-लद्दाख की ख़ूबसूरती बयान करते हुए, वह आपको वो सारे टिप्स भी देंगी, जो आपकी इस यात्रा के लिए ज़रूरी हैं।
जब ऑफिस जाना पड़ता था तो कहीं भी घूमने के लिए बॉस से दो-तीन दिन की छुट्टी मिलना भी मुश्किल हो जाता था। आज जब ऑफिस का काम कहीं से भी कर सकते हैं तो क्यों न अपने घूमने के शौक ही पूरा कर लिया जाये। क्या पता फिर यह मौका मिले न मिले!
एक दिन ऐसा भी आएगा जब कोरोनाकाल सिर्फ बुरे ख्वाब की तरह बचा रह जाएगा। लेकिन इस बुरे ख्वाब से हमने कुछ सीख हासिल की हैं, आने वाले दिनों में अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी से लेकर सैर-सपाटे पर लागू करेंगे उन्हें। हम ही क्या, समूचा पर्यटन उद्योग इसकी तैयारी में है। आइये जानते हैं कैसा होगा सफर कोविड-19 की प्रेतछाया के बीतने के बाद।
इस म्यूजियम के लिए अमूमन 25,000 प्रांतों, गांवों, कस्बों, नगरों में जाकर, वहां बसने वाले लोगों के इस्तेमाल में आने वाली रोज़मर्रा की मामूली झाड़ू, उससे जुड़े किस्सों, रीति-रिवाज़ों, अंधविश्वासों, परंपराओं, आदतों, व्यवहारों को रिकार्ड किया गया।
अपने देश-दुनिया के असल सौंदर्य को देखने-समझने, उसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सीधी-सरल जीवनचर्या से मिलने के लिए गाँव-देहात आज भी सबसे आदर्श मंजिल हैं। और शहर से गांव तक के इस सफर में क्या पता कब-कहाँ आपका अपना अतीत मिल जाए! कौन जाने, किस मोड़ पर कोई ठहरा-सा पल दिख जाए।
''आमतौर पर मेरी वॉक से पास-पड़ोस के लोग ज्यादा जुड़ते हैं, मुझे काफी अच्छा लगता है जब खुद बांद्रावासी मेरे साथ अपनी ही जडों को टटोलने निकल पड़ते हैं और अचानक उन्हें लगता है कि वे एलिस इन वंडरलैंड की तरह हैं।''