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इतवारी घुमक्कड़ी

दिल्ली टू लेह: जानिए, जमी हुई नदी पर पिकनिक मनाने के लिए कैसी होनी चाहिए तैयारी

By अलका कौशिक

चलिए दिल्ली से लेह तक के रोमांचक सफर में, अलका कौशिक के साथ। इस सफरनामे में, लेह-लद्दाख की ख़ूबसूरती बयान करते हुए, वह आपको वो सारे टिप्स भी देंगी, जो आपकी इस यात्रा के लिए ज़रूरी हैं।

वर्क फ्रॉम होम से उकता गए हों तो चलिए 'वर्केशन' पर, सुरक्षा के साथ बुला रहे ये पहाड़!

By अलका कौशिक

जब ऑफिस जाना पड़ता था तो कहीं भी घूमने के लिए बॉस से दो-तीन दिन की छुट्टी मिलना भी मुश्किल हो जाता था। आज जब ऑफिस का काम कहीं से भी कर सकते हैं तो क्यों न अपने घूमने के शौक ही पूरा कर लिया जाये। क्या पता फिर यह मौका मिले न मिले!

चाय के आशिकों को बुला रहे हैं ये बागान, चलिए हमारे साथ टी टूरिज्म के इस सफ़र पर

By अलका कौशिक

चाय के सफर की एक अहम् कड़ी है बागानों में पत्तियों की तुड़ान। एक कली दो पत्तियों को तोड़ती उंगलियां मुझे ध्‍यानावस्‍था की याद दिलाती हैं।

चीड़ के पत्तों से बिजली, फलों-फूलों से रंग और पहाड़ी कला, कुमाऊँ के इस अद्भुत सफर पर चलें?

By अलका कौशिक

बेरीनाग की पिछली यात्रा का हासिल था 'अवनि’ के इस सस्‍टेनेबल इकोसिस्‍टम को साक्षात देखना। पहाड़ों को देखने की एक नई निगाह दे गया था अवनी का दौरा।

कोरोना काल में कुछ ऐसा होगा सफ़र, घूमने के शौक़ीन हो जाएँ तैयार!

By अलका कौशिक

एक दिन ऐसा भी आएगा जब कोरोनाकाल सिर्फ बुरे ख्वाब की तरह बचा रह जाएगा। लेकिन इस बुरे ख्वाब से हमने कुछ सीख हासिल की हैं, आने वाले दिनों में अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी से लेकर सैर-सपाटे पर लागू करेंगे उन्हें। हम ही क्या, समूचा पर्यटन उद्योग इसकी तैयारी में है। आइये जानते हैं कैसा होगा सफर कोविड-19 की प्रेतछाया के बीतने के बाद।

ऐसे वैसे, कैसे–कैसे म्‍यु‍ज़‍ियमों की फेहरिस्‍त में अनूठा है 'झाड़ू म्‍युज़‍ियम'!

By अलका कौशिक

इस म्यूजियम के लिए अमूमन 25,000 प्रांतों, गांवों, कस्‍बों, नगरों में जाकर, वहां बसने वाले लोगों के इस्‍तेमाल में आने वाली रोज़मर्रा की मामूली झाड़ू, उससे जुड़े किस्‍सों, रीति-रिवाज़ों, अंधविश्‍वासों, परंपराओं, आदतों, व्‍यवहारों को रिकार्ड किया गया।

लग्‍ज़री होटल को गुडबाय बोलें, चुनें विलेज टूरिज्‍़म का सुकून!

By अलका कौशिक

अपने देश-दुनिया के असल सौंदर्य को देखने-समझने, उसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सीधी-सरल जीवनचर्या से मिलने के लिए गाँव-देहात आज भी सबसे आदर्श मंजिल हैं। और शहर से गांव तक के इस सफर में क्या पता कब-कहाँ आपका अपना अतीत मिल जाए! कौन जाने, किस मोड़ पर कोई ठहरा-सा पल दिख जाए।

वो 'मुंबई', जो शायद आपने देखी न हो!

By अलका कौशिक

''आमतौर पर मेरी वॉक से पास-पड़ोस के लोग ज्‍यादा जुड़ते हैं, मुझे काफी अच्‍छा लगता है जब खुद बांद्रावासी मेरे साथ अपनी ही जडों को टटोलने निकल पड़ते हैं और अचानक उन्‍हें लगता है कि वे एलिस इन वंडरलैंड की तरह हैं।''

आज़ादी से अब तक के हर चुनाव के रोचक किस्‍सों की बानगी दिखाता, देश का पहला 'इलेक्‍शन म्‍युजि़यम'

By अलका कौशिक

यह इलेक्‍शन म्‍युजि़यम राजधानी दिल्‍ली के कश्‍मीरी गेट इलाके में 1890 में बनी उस इमारत में खोला गया है जिसमें 1940 तक सेंट स्‍टीफंस कॉलेज चलता रहा था।