आज रख रहे हैं बेहतर कल की नींव; यह आर्किटेक्ट कपल बनाता है केवल सस्टेनेबल मकान!

चाहे सर्दी हो या गर्मी, इनके बनाए हुए घरों का तापमान हमेशा सामान्य रहता है।

त्तर-प्रदेश के मथुरा के बारे में किसने नहीं सुना, अक्सर लोगों की चाह होती है कि एक बार तो मथुरा-वृन्दावन घूमने जाएं। लेकिन कई लोग वहां के मौसम के बारे में सोचकर असमंजस में पड़ जाते हैं। गर्मियों में 45 डिग्री तक तापमान जाता है तो सर्दियों में ठंडी हवाएं आपका शरीर जमा देती हैं।

इसलिए जब मुंबई में रहने वाले एक आर्किटेक्ट कपल, सीमा पुरी और ज़रीर मुल्लान को मथुरा के डेम्पियर नगर में एक वेकेशन होम बनाने का प्रोजेक्ट मिला तो उन्हें पता था कि सबसे पहले उन्हें वहां के मौसम के हिसाब से अपनी प्लानिंग करनी होगी।

सस्टेनेबिलिटी को रखा सबसे पहले:

लगभग 25 साल का अनुभव रखने वाले सीमा और ज़रीर, SEZA आर्किटेक्चर नामक फर्म चला रहे हैं और उन्हें अपने काम के लिए बहुत से अवॉर्ड्स भी मिले हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए सीमा बताती हैं कि SEZA के हर एक प्रोजेक्ट में उन्होंने सस्टेनेबिलिटी को जगह दी है। भले ही यह कॉन्सेप्ट अभी भी मेनस्ट्रीम आर्किटेक्चर का हिस्सा नहीं बना है।

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“हमारे लिए सस्टेनेबल आर्किटेक्चर कोई नयी चीज़ नहीं है बल्कि हम हमारे हर एक प्रोजेक्ट में पर्यावरण अनुकूल फीचर रखते हैं। हम अलग-अलग डिज़ाइन देखते हैं जिनमें पारंपरिक तरीके हों और फिर ऐसे ब्लूप्रिंट तैयार करते हैं कि हम बिजली के बेवजह इस्तेमाल और अन्य गैर-ज़रूरी साधनों के इस्तेमाल को कम कर सकें।” उन्होंने आगे बताया।

मथुरा के वेकेशन घर की क्या है खासियत:

वहां के मौसम के हिसाब से बना यह घर हर तरह से सस्टेनेबल होते हुए भी मॉडर्न है। वहां की प्राकृतिक हवा की स्थिति को देखते हुए घर की सभी खिड़कियाँ उत्तरी या फिर दक्षिणी दिशा की तरफ खुलती हैं। इससे पूरे घर में क्रॉस-वेंटिलेशन रहता है और इससे घर के अंदर का तापमान भी बैलेंस रहता है। इससे आपको एयर कंडीशनर पर निर्भर रहने की ज़रूरत भी नहीं होगी। साथ ही, खिड़कियों से धूप और प्राकृतिक रौशनी अंदर आती है इसलिए दिन में आपको ट्यूबलाइट इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं है।

घर की दीवारों को भी एक अलग पैटर्न में बनाया गया है, ईंट की दो परतों के बीच में 50 मिमी का एयर गैप रखा गया है।

“ये एयर गैप हीट-इंसुलेशन की तरह काम करता है और इससे हर मौसम में कमरे का तापमान सामान रहता है चाहे बाहर गर्मी बढ़े या फिर सर्दी। ” उन्होंने बताया। यदि वे इस गैप को 50 मिमी से ज़्यादा रखते तो उन्हें कंस्ट्रक्शन के लिए और ज्यादा जगह और साधनों की ज़रूरत पड़ती।

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घर के हर एक कोने पर दिन के समय तेज धूप से बचाव के लिए शेड बनाई गयी है और हर एक कमरे के बाहर 8 से 10 फीट बरामदा बनाया गया है ताकि कमरों में धूप सीधी न जाए। सूरज की रौशनी कमरों तक पहुँचती है लेकिन इससे कमरे गर्म नहीं होते।

घर को लाइट क्रीम कलर से पेंट किया गया है क्योंकि यह गर्मी के लिए रिफ्लेक्टर की तरह काम करता है। सीमा बताती हैं कि ये घर एक ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट था क्योंकि इस जगह के चारों तरफ बहुत से पेड़-पौधे हैं जिस वजह से यहां पर ऑक्सीजन का लेवल सही रहता है। ये पूरा क्षेत्र 18 हज़ार स्क्वायर फ़ीट में है और एक पानी का स्त्रोत इसे बांटता है, जो कि लगभग 12 फ़ीट चौड़ा है।

यह पानी का स्त्रोत इस वेकेशन होम की दो विंग्स के बीच में पड़ता है और इससे घर के सभी कमरों पर एक ठंडक का प्रभाव रहता है।

खूबसूरत आर्किटेक्चर

इस घर का आर्किटेक्चर मौसम के हिसाब से तो है ही, साथ ही, बहुत ही खूबसूरत भी है। इसे परत दर परत बनाया गया है न कि सिर्फ एक कंक्रीट की ईमारत खड़ी कर दी है।

घर के लीनियर और सिमेट्रिक फीचर इसे बहुत अलग बनाते हैं। यदि कोई घर की तरफ बढ़ता है तो उसे लगेगा कि घर पीछे जा रहा है। बाहर से देखने वालों को ये जितना सुंदर लगता है, यहां रहने वालों पर भी उतना ही अच्छा और मनभावी प्रभाव छोड़ता है।

घर के निर्माण में लकड़ी का इस्तेमाल बहुत ही सौंदर्यात्मक तरीके से किया गया है और साथ ही, सभी ठोस और तरल चीज़ों का समावेश इस तरह से है कि यह आपकी आँखों को सुकून दे।

घर के अंदर के स्पेस को बाहर के स्पेस से मेल खाता हुआ रखा गया है ताकि ये और खुला-खुला लगे।

सबके साथ बैठने के लाउन्ज को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि एक तरफ से देखने पर पानी का स्त्रोत दिखे और दूसरी तरफ से गार्डन। सीमा कहती हैं कि ऐसा लगता है कि यह घर पारदर्शी है क्योंकि आस-पास की प्रकृति इसमें समाहित होते हुए लगती है।

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सीमा कहती हैं, “हम जब भी कोई प्रोजेक्ट लेते हैं चाहे कोई अर्बन रेसीडेंशियल प्रोजेक्ट हो या फिर कमर्शियल या फिर कोई ग्रीनफ़ील्ड प्रोजेक्ट, उसमें सस्टेनेबिलिटी हमारा मूलभूत पैमाना होता है न कोई अलग से कोई विशेषता।”

मथुरा में बनाया गया उनका वेकेशन हाउस उनकी इस बात का एक उदाहरण है। अंत में वह बस इतना कहती हैं, “हम आज जो भी बना रहे हैं, हमारे कल के लिए बना रहे हैं।”

संपादन – अर्चना गुप्ता

मूल लेख: सायंतनी नाथ


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