हैदराबाद का एक स्टार्टअप, बिंटिक्स, लोगों के घरों से रिसायकल होने वाला सूखा कचरा इकट्ठा करता है और लोगों को उनके कचरे के पैसे भी देता है। इस कचरे को बाद में रिसायक्लिंग के लिए अलग-अलग जगह भेज दिया जाता है।
इस स्टार्टअप को रौशन मिरांडा, उदित पाटीदार और जयनारायण कुलथिंगल ने साल 2018 में शुरू किया था। बिंटिक्स वेस्ट रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के को-फाउंडर, उदित कहते हैं, “इस स्टार्टअप को शुरू करने का उद्देश्य रिसायकलेबल कचरे को लैंडफिल में जाने से रोकना था। हम लोगों को अहसास दिलाना चाहते थे कि कचरे की भी एक कीमत है और इसी सोच के साथ हमने यह पहल शुरू की।”
अब तक, उन्होंने 80, 000 लोगों के घरों से कचरा इकट्ठा किया है और लगभग 250 मीट्रिक टन कचरे को रिसायकल किया है। हैदराबाद से शुरू हुआ उनका काम अब बंगलुरु और दिल्ली तक भी पहुँच चुका है।
कैसे करते हैं काम:
कोई भी व्यक्ति अपने स्मार्टफ़ोन में उनका मोबाइल एप्लीकेशन डाउनलोड करके सर्विस के लिए सब्सक्राइब कर सकता है। जैसे ही आप सब्सक्राइब करते हैं, आपके यहाँ से कचरा उठाने की सर्विस शुरू हो जाती है। उनका सब्सक्रिप्शन ग्राहकों को बिल्कुल मुफ्त मिलता है। ग्राहकों को कचरा डालने के लिए बैग्स दिए जाते हैं और फिर एक हफ्ते बाद उनके यहाँ से कचरा इकट्ठा कर लिया जाता है।
बैग्स की खासियत ये है कि इन पर एक क्यूआर कोड (QR Code) होता है, जिससे कि आप आसानी से ट्रैक कर सकते हैं कि आपका कचरा कहाँ तक पहुंचा है। फैक्ट्री पहुँचने के बाद इन बैग्स का वजन चेक किया जाता है। कचरे के वजन के हिसाब से बिंटिक्स अपने सब्सक्राइबर को उनके ई-वॉलेट में पैसे भेज देता है।
बिंटिक्स अपने सब्सक्राइबर के दरवाजे पर भी एक क्यूआर कोड लगाता है जिसे स्कैन करके वो अगले पिक-अप के बारे में जानकारी ले सकता है।
“कचरे का प्रबन्धन ऐसा बिज़नेस नहीं है जिसमें हमें बहुत प्रॉफिट हो, इसलिए हमने ऐसा मॉडल बनाया जिससे कि हमारी लागत कम से कम लगे। सब्सक्रिप्शन मॉडल से हम अपने लॉजिस्टिक्स को सही तरह से हैंडल करने में कामयाब रहे। इससे हमें कचरा इकट्ठा करने में आसानी रहती है क्योंकि इससे हम एक निश्चिन्त इलाके में कचरा इकट्ठा करके फिर किसी और इलाके में जाते हैं,” उन्होंने आगे कहा।
सब्सक्राइबर को 2 रुपये से 8 रुपये प्रति किग्रा तक दिया जाता है और यदि आपको लगता है कि आपको ज्यादा पैसे मिलने चाहिए तब ही आप टीम से बात कर सकते हैं। उदित कहते हैं, “बहुत-सी सोसाइटी जिनमें सैनिटेशन आदि के काम के लिए लोग लगे होते हैं, वहां हम ज्यादा पैसे देते हैं क्योंकि इन लोगों को उन सफाई कर्मचारियों को भी तनख्वाह देनी होती है।”
इकट्ठे किए हुए कचरे को 30 अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है- कागज, PET प्लास्टिक बोतल, सिंगल यूज प्लास्टिक, मल्टीलेयर्ड प्लास्टिक आदि। इन्हें अलग करने के बाद बैग्स में इकट्ठा किया जाता है और इन बैग्स को हाइड्रोलिक कंप्रेसर की मदद से बंद किया जाता है ताकि ट्रांसपोर्ट करने में आसानी रहे।
इन बैग्स को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सर्टिफाइड रिसायकलर्स के पास भेजा जाता है। ये रिसायकलर्स कचरे को इकट्ठा करने, अलग-अलग करने और उन तक भेजने के लिए बिंटिक्स को पैसे देते हैं। इस तरह से बिंटिक्स का मॉडल काम करता है।
बिंटिक्स ने हमें कचरे के प्रति ज़िम्मेदार बनाया है
हैदराबाद के नाल्लागंदला इलाके में रहने वाले 49 वर्षीय संजय भट, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज कंपनी में बतौर साइंटिस्ट काम करते हैं और पर्यावरण को लेकर काफी सचेत रहते हैं। संजय, बिंटिक्स की शुरुआत से ही उनकी सर्विसेज ले रहे हैं।
वह कहते हैं, “सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कचरे को रिसायकल करने के लिए बहुत ही कम चैनल उपलब्ध हैं। रद्दीवाला ज्यादा कीमत वाला कचरा खरीद लेता है, लेकिन कागज, हल्का प्लास्टिक आदि नहीं खरीदता और यही सब हमारे घरों में काफी मात्रा में होती है।”

आगे वह कहते हैं कि उचित चैनल उपलब्ध न होने से लोग कचरे को अलग-अलग भी नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि आखिर में तो सब मिल ही जाना है।
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“सबसे अच्छा है कि वे लोग कचरा इकट्ठा करने के लिए क्यूआर कोड वाले बैग देते हैं जिससे कि आप ट्रैक कर सकते हैं कि आपका कचरा सही जगह पहुंचा है। साथ ही, वे कचरे के बदले पैसे देते हैं और इससे लोगों को कचरा अलग करके इकट्ठा करने की एक प्रेरणा मिलती है। अब वे मेरे इलाके से ही 30 लोगों के यहाँ से कचरा इकट्ठा कर रहे हैं। मुझे ख़ुशी है कि वे यह व्यवहारिक बदलाने लाने में सफल रहे और हमें अहसास कराया कि हम कितना कचरा उत्पन्न कर रहे हैं।” – नाल्लागंदला(एक सब्सक्राइबर)
रिसर्चर्स से स्टार्टअप फाउंडर्स तक का सफर
बिंटिक्स के तीनों संस्थापकों की जड़ें रिसर्च क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। उदित ने अपनी ग्रैजुएशन और फिर मास्टर्स की डिग्री इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्टॉकहोम के केटीएच रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से की और इसके बाद वह टेक्सस चले गए।
उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ ह्यूस्टन से कंप्यूटर साइंस में अपनी पीएचडी की। इस दौरान, उनकी मुलाक़ात रौशन से हुई। रौशन उस समय बेलोर कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन से डेवलपमेंट बायोलॉजी पढ़ रहे थे। इससे पहले, रोशन ने
मोहाली में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआईपीईआर) से फार्मास्युटिकल साइंस में अपनी ग्रैजुएशन की।
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तीसरे को-फाउंडर, जयनारायण ने मोहाली की इसी यूनिवर्सिटी से फार्माकोलॉजी में अपनी पीएचडी की है। इसके बाद, वह मिनेसोटा के मयो क्लिनिक गए और 2010 में भारत वापस आ गए। उन्होंने पुणे में फार्मा इंडस्ट्री में अनुसंधान और विकास विंग में काम करना शुरू किया।
उदित भी 2010 में वापिस भारत आए और इंटेल के साथ काम करना शुरू किया। यहाँ पर वह स्मार्ट कंप्यूटर्स के लिए सॉफ्टवेयर बना रहे थे। उन्होंने 2014 में काम से ब्रेक लेकर कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से एमबीए किया और 2015 से फिर इंटेल के साथ अपना काम शुरू किया।
इस सबके बीच रोशन ने बहुत ही अलग रास्ते पर चलना शुरू किया। 2012 में उन्होंने बोस्टन का एक कंसल्टेंसी ग्रुप ज्वाइन किया और बायोलॉजी के क्षेत्र में अपनी कंसल्टेंसी सर्विसेज दीं। बाद में, उन्हें महसूस हुआ कि उनकी दिलचस्पी सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में है।
उन्होंने वेस्ट वेंचर्स इंडिया, एक सोशल एंटरप्राइज शुरू की। उनकी यह सोशल एंटरप्राइज बड़ी कंपनी और कम्युनिटीज के यहाँ से कचरा इकट्ठा करने का काम करती है। उनका यह काम बड़े स्तर के लोगों के लिए था और ऐसे में, रोशन ने सोचा कि उन्हें आम लोगों के लिए भी कुछ करना चाहिए।
इस तरह से उन्होंने बिंटिक्स की शुरुआत की और इसमें उनके साथ जयनारायण और उदित भी जुड़ गए।
समस्याओं से लड़कर नए कल की योजना
बिंटिक्स अपने स्तर पर बहुत अच्छा काम कर रहा है, लेकिन उनका सफर बहुत सी चुनौतियों से भरा हुआ है। उदित बताते हैं कि एक बड़ी समस्या है आय उत्पन्न करना। हर एक किलोग्राम रिसायकल हो, यह सुनिश्चित करना बहुत मुश्किल है। कचरा प्रबंधन फायदे का काम नहीं है, बहुत बार हम अपनी कमाई तक गंवा देते हैं।
लोगों का व्यवहार बदलना शायद इससे भी बड़ी समस्या है क्योंकि बहुत ही कम लोग हैं जो अपनी तरफ से प्रयास करते हैं। “ग्राहकों में व्यवहारिक बदलाव बहुत मुश्किल है क्योंकि लोग भूल ही जाते हैं कि उनका कचरा उनकी समस्या है। लोग अगर खुद कचरा अलग-अलग करके दें तो हमें बहुत आसानी हो लेकिन वे ऐसा नहीं करते।”
इन सभी समस्यों के बावजूद बिंटिक्स के सात हज़ार सब्सक्राइबर्स हैं और हर महीने वे 16 टन कचरा इकट्ठा करते हैं।
आने वाले समय में, बिंटिक्स देश के बड़े शहरों में अपनी सर्विसेज फैलाना चाहता है। उनकी योजना स्थानीय पार्टनर्स के साथ काम करने की है जो उन्हें लॉजिस्टिक्स में मदद करें और उन्हें साधन दें। उनका उद्देश्य 2020 तक 40 शहरों में अपनी पहुँच बनाना है।
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जल्द ही, उनकी सर्विसेज मुंबई और चेन्नई तक भी पहुंचेंगी और उसके बाद कोलकाता। वे अपने इस काम को टियर 2 और टियर 3 शहरों तक भी पहुँचाना चाहते हैं। इसके साथ-साथ वे अपने लक्ष्य पर ही टिके रहना चाहते हैं। उनका उद्देश्य है कि एक दिन ऐसा हो जब हमारे यहाँ लैंडफिल में कोई भी कचरा न जाए।
संपादन – अर्चना गुप्ता
मूल लेख : अंगारिका गोगोई
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