आज़ादी के समय हमारे देश में स्कूलों की संख्या महज एक लाख के करीब थी, जो अब बढ़कर 15 लाख से ज्यादा हो गई है। शिक्षा ही नहीं स्वास्थ्य, सड़क और व्यापर के क्षेत्र में भी देश ने खूब तरक्की की है, जानिए बीते 76 सालों में आए बदलाव की कहानी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक, खुदीराम को महज़ 18 वर्ष की उम्र में 11 अगस्त, 1908 को फांसी दे दी गई थी। उस वक्त उनकी उम्र ठीक 18 साल, आठ महीने और आठ दिन थी।
‘कैम्ब्रिज मजलिस’ ने भारतीय उपमहाद्वीप के छात्रों को वाद-विवाद, विमर्श और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एक मंच प्रदान किया। पढ़ें, इस सोसायटी ने कैसे खोली थी भारत के आजादी की राह।
डॉ. सैफुद्दीन किचलू एक बैरिस्टर, शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। जानिये उनके बलिदान की कहानी।
जब बात किसी जाने माने व्यक्ति के नाम पर किसी सड़क, पार्क या स्टेशन का नाम रखने की हो, तो यह सम्मान ज्यादातर पुरुषों को ही मिलता है। महिलाओं का नाम कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आता। लेकिन भारतीय रेलवे ने 1958 में, स्वतंत्रता सेनानी बेला बोस को सम्मान देकर इस परंपरा को तोड़ दिया।