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कनाई लाल दत्त: खुदीराम बोस के बाद देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला आज़ादी का दूसरा सिपाही!

By निशा डागर

कनाई की फांसी के बाद जेल के वार्डन ने उनके प्रोफेसर से कहा था कि यदि कनाई जैसे 100 वीर भी आपके पास हों तो आपको आज़ादी पाने से कोई नहीं रोक सकता!

घूंघट छोड़कर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ने के लिए प्रेरित करने वाली राधाबाई की कहानी!

By निशा डागर

रायपुर में स्वाधीनता की क्रांति को घर-घर पहुंचाने का काम डॉ. राधाबाई ने ही किया था। उनकी प्रेरणा से ही यहाँ की महिलाएं स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़ीं!

इस महिला गुप्तचर ने बीमार हालत में काटी कारावास की सजा, ताकि देश को मिले आज़ादी!

By निशा डागर

सांस की बीमारी के बावजूद लड़तीं रहीं ब्रिटिश शासन के खिलाफ, सज़ा होने पर भी पीछे नहीं हटाए कदम!

एक महिला सेनानी का विरोध-प्रदर्शन बन गया था ब्रिटिश सरकार का सिरदर्द!

By निशा डागर

अंग्रेजों द्वारा शराब की दुकान खोलने और अफीम उगाने के विरोध में बसंतलता और उनकी महिला साथियों ने मोर्चा खोला था। ये 'स्वदेशी आंदोलन' इस कदर बढ़ा कि अंग्रेजों को इसे रोकने के लिए सर्कुलर निकालना पड़ा!

मंगल पांडेय से 33 साल पहले इस सेनानी ने शुरू की थी अज़ादी की जंग!

By निशा डागर

बिंदी तिवारी की शहादत के बाद अंग्रेजी हुकूमत की न सिर्फ भारत में बल्कि इंग्लैंड में भी निंदा हुई, और तो और बहुत से भारतीय अफसरों और सैनिकों ने ब्रिटिश सेना छोड़ दी!

आज़ाद हिन्द फ़ौज के कमांडर का अनसुना किस्सा, शाहरुख खान से भी जुड़े हैं तार!

By निशा डागर

ब्रिटिश सेना को छोड़कर आज़ाद हिन्द फ़ौज में भर्ती हुए थे शाह नवाज़ खान, फिर भी बना दिए गए - 'एक देशद्रोही'!

INA vs British : पढ़िए विश्व के सर्वश्रेष्ठ कानूनी बहसों में से एक माने जाने वाले वकालती तर्को की कहानी!

आज़ाद हिन्द फौज की तरफ से जो कानूनी लड़ाई भूलाभाई देसाई ने लड़ी, उन तर्को की गूंज आज भी कानूनी गलियारे में गूंज रही है।

दंगों में बिछड़कर रिफ्यूजी कैंप में मिले, बंटवारे के दर्द के बीच बुनी गयी एक प्रेम कहानी!

By निशा डागर

आज भी प्रीतम कौर की फुलकारी जैकेट और भगवान सिंह के ब्रीफ़केस को अमृतसर के पार्टीशन म्यूजियम में सम्भाल कर रखा गया है!

अखंड भारत की रचना में थी इस गुमनाम नायक की बड़ी भूमिका!

एक दरबार से दूसरे दरबार जाना, राजाओं के सामने प्रस्ताव रखना व समझौता करवाना – यह सब सरदार पटेल के इस सहयोगी ने किया, ताकि अखंड हो सके हमारा भारत!

सरफ़रोशी की तमन्ना: स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल की अनकही कहानी!

19 दिसम्बर, 1927 को फांसी पर चढ़ने से पहले बिस्मिल ने आखिरी पत्र अपनी माँ को लिखा था!