बर्बाद हो रहे फलों से 12वीं पास युवक ने खड़ा कर दिया कारोबार, दिया 1200 महिलाओं को रोजगार

Rajesh oza food processing

मिलिए राजस्थान के रहने वाले राजेश ओझा से, जिन्होंने शहरी जीवन छोड़कर गांव में रहकर ही खड़ा किया शानदार रोजगार। जिसके ज़रिए आज वह कचरे में जा रहे फलों को बचाने के साथ-साथ गांव की 1200 महिलाओं को रोजगार भी दे पा रहे हैं।

राजस्थान के पाली जिले के बेड़ा गाँव से ताल्लुक रखने वाले राजेश ओझा, 12वीं तक की शिक्षा पूरी होने के बाद से रोजगार की तलाश में जुट गए थे। रोज़गार के सिलसिले में वह मुंबई चले गए और वहाँ कई अलग-अलग जगहों पर नौकरी की तो कई बार अपना व्यवसाय जमाने की कोशिश भी की। कभी सफलता मिली तो कभी असफलता और लगभग 16-17 साल के संघर्ष के बाद उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी, जो ना सिर्फ उनके लिए बल्कि फलों की खेती से जुड़ीं महिलाओं को भी फायदेमंद हो।

इसी सोच के साथ वह मुंबई से लौटकर गांव आ गए। जहाँ आज राजेश जोवाकी एग्रोफ़ूड नामक एक सोशल एंटरप्राइज चला रहे हैं। जिसके ज़रिए वह उदयपुर के गोगुंदा और कोटरा क्षेत्र के आदिवासी समुदायों को रोज़गार मुहैया करवा रहे हैं।  

राजेश ने गांव आकर देखा कि यहां की आदिवासी महिलाएं 10-15 किमी पैदल चलकर मौसमी फल बेचतीं हैं। समय पर नहीं बिक पाने की वजह से खराब हुए फलों को कई बार उन्हें फेंकना पड़ता है। इस तरह एक लम्बी मेहनत के बाद भी महिलाओं को अपने फलों के पूरे दाम नहीं मिलते। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि यहाँ पर उनके रोज़गार का मुख्य साधन जंगल और फल ही थे। यहाँ के पुरुष दिहाड़ी-मजदूरी करते हैं तो महिलाएं जंगलों से ये फल इकट्ठा करके सड़क किनारे बेचती हैं। इस तरह से वह दिन के 100 रुपये भी बड़ी मुश्किल से कमा पाती थीं। 

गांव से खड़ा किया रोजगार

Rajesh Oza
Rajesh Oza

राजेश ने इस समस्या के समाधान के साथ अपने लिए एक रोजगार भी खोज निकाला। उन्होंने गांव की महिलाओं को फ़ूड प्रोसेसिंग के बारे में समझाया और जामुन और सीताफल जैसे फलों से कुछ प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया। 

इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे महिलाओं का समूह बनाया और सभी को आश्वासन दिया कि वह उनसे बाजार भाव में फल हर दिन खरीदेंगे। साल 2017 में राजेश ने जोवाकी एग्रोफ़ूड इंडिया की नींव रखी और इसे कोई कमर्शियल कंपनी बनाने की बजाय सोशल एंटरप्राइज बनाया। उन्होंने महिलाओं को कई चरणों में ट्रेनिंग दी और हर गाँव में संग्रहण केंद्र बनाएं। जहां महिलाएं सीताफल और जामुन आदि इकट्ठा करके देती हैं। 

इस तरह उन्हें अपने फलों के दाम तो मिले ही साथ ही फ़ूड प्रोसेसिंग का काम भी मिल गया।  

आज राजेश, सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफार्म के ज़रिए इन महिलाओं के बनाए प्रोडक्ट्स बेचकर करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं।

उनकी इस सफलता में राजस्थान की 1200 आदिवासी महिलाओं की खुशहाली भी शामिल है। राजेश और ‘Jovaki’, Agro-food company के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहाँ सम्पर्क कर सकते हैं।  

यह भी पढ़ें- दो भाइयों का कमाल, ‘Yacon’ की खेती से सिक्किम के 500 किसान हो रहे मालामाल

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X