पिछले कुछ सालों में लोगों के बीच ईको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल चीजों के उपयोग और इससे जुड़े उत्पाद को अपनाने के प्रति जागरूकता आई है। लोग ऐसा उत्पाद बनाना और उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना तैयार किए गए हों। साथ ही जितना हो सके, वेस्ट को बेस्ट में बदलने का प्रयास भी किया जा रहा है। हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी भी कुछ इसी तरह के विचार रखते थे, वह जहां भी रहे लोगों को पर्यावरण के अनुकूल जीवन जीने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
उनके खादी के प्रति लगाव से तो हम सब वाकिफ हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, सालों पहले उन्होंने, कॉटन वेस्ट मटेरियल से हैंडमेड पेपर बनाने की शुरुआत की थी। वह 1917 से 1930 तक साबरमती आश्रम में रहे थे। वहां वह अपने कुछ साथियों और पत्नी कस्तूरबा गाँधी के साथ मिलकर खेती, पशुपालन, चरखा से सूत बनाने जैसे काम करते रहते थे। इसी दौरान उन्हें वेस्ट कॉटन से पेपर बनाने का विचार आया। उन दिनों देश में पेपर दूसरे देशों से मंगवाया जाता था।
साल 1920 के करीब स्वदेशी आंदोलन पूरे देश में चलाया जा रहा था। ऐसे में देशभर में, खादी ग्राम उद्योग शुरू किये गए। उस समय, सरदार वल्लभभाई पटेल, गुजरात खादी ग्राम उद्योग के अध्यक्ष थे। कॉटन वेस्ट से पेपर बनाने का काम भी इसी के अंतर्गत किया जाता था। साल 1940 में आश्रम के पास की एक जगह में, कॉटन वेस्ट से पेपर बनाने के काम की शुरुआत की गई। वर्तमान में, गुजरात खादी ग्राम उद्योग के संचालक कल्याण सिंह राठौड़ ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “कलमखुश गुजरात का एक मात्र ऐसा उत्पाद केंद्र है, जहां वेस्ट कॉटन से हैंडमेड पेपर बनाने का काम किया जाता है। जिसकी मांग देश-विदेश तक है।”
कैसे पड़ा नाम कलमखुश?
कॉटन वेस्ट का उपयोग कर इस पेपर को मैनुअली हाथों से बनाया जाता है। वहीं यह पेपर तक़रीबन 60 से 70 सालों तक ख़राब भी नहीं होता। एक बार गुजराती और हिंदी के जाने-माने लेखक ‘काका कालेलकर’ को गाँधी जी ने अपने आश्रम में बना पेपर तोहफे में दिया था। जिसके बाद काका साहेब ने इस हैंडमेड पेपर के बारे में कहा था, “मेरी कलम इस खूबसूरत कागज़ पर लिखकर खुश हो गयी।” गाँधीजी ने उनकी इसी बात से प्रेरणा लेकर इस पेपर को नाम दिया ‘कलमखुश’।
कल्याण सिंह बताते हैं, “साल 1956 में, देश में खादी को ग्रामउद्योग का दर्जा दिया गया और इसके लिए विशेष आयोग भी बनाया गया। चूँकि, कलमखुश भी खादी उद्योग के अंतर्गत आता है, इसलिए इससे हैंडमैड पेपर के काम में भी गति आ गई।” वह कहते हैं कि हैंडमेड होने के कारण यह पेपर थोड़े महंगे होते हैं, जो लोग इसकी विशेषता जानते हैं, वही इसे खरीदते हैं।
कैसे बनता है पेपर?
इस पेपर को बनाने के लिए, अलग-अलग जगहों से मिले कॉटन के छोटे-छोटे कतरन को फैक्ट्री में लाया जाता है। जिसके बाद इस कतरन के बिल्कुल बारीक़ टुकड़े बनाए जाते हैं। जिसके बाद एक पल्पिंग मशीन में कॉटन के इन महीन टुकड़ों को पानी के साथ मिलाकर पल्प तैयार किया जाता है। फिर तैयार पल्प को हाथों से एक लकड़ी की फ्रेम में रखा जाता है और एक कपड़ा लगाया जाता है, बाद में हाइड्रोलिक प्रेस से इसमें से पानी निकाला जाता है। पानी निकल जाने के बाद कपड़ा हटाकर कागज को सुखाया जाता है। सूखने के बाद कागज की लेवलिंग की जाती है।
कलमखुश में बने इस हैंडमेड कागज से कई दूसरी चीजें भी बनाई जाती हैं, जिनमें फोल्डर, फाइल्स, फोटो फ्रेम, आमंत्रण और विजिटिंग कार्ड के साथ और भी बहुत कुछ शामिल हैं। फिलहाल, यहां सिर्फ 20 से 22 लोग पेपर बनाने का काम कर रहे हैं। कल्याण सिंह कहते हैं कि यहां हर दिन तकरीबन 500 पीस पेपर बनता है।
सालों तक चलता है यह पेपर
उन्होंने बताया, “गुजरात के कई सरकारी और निजी संस्थानों में कलमखुश के पेपर का इस्तेमाल किया जाता है। चूँकि यह पेपर लम्बे समय तक चलता है, इसलिए लोग जरूरी डॉक्यूमेंटेशन के लिए इसका उपयोग करते हैं।” गाँधी जी की किताब ‘हिन्द स्वराज’ को अहमदाबाद की नवजीवन ट्रस्ट ने, हैंडमेड पेपर में प्रिंट कराया ताकि गाँधी जी के विचार किताब के रूप में सालों तक सुरक्षित रह सकें।
सादे पेपर के साथ ही यहां फूलों, पत्तों और घास जैसी अलग-अलग प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करके सुगंधित और रंगीन पेपर भी बनाए जाते हैं।
अहमदाबाद से शुरू हुआ ये हैंडमेड पेपर, आज देश के कई शहरों में खादी ग्राम उद्योग के अंतर्गत बनाया जा रहा है। जिसकी मांग भी समय और सही जागरूकता के साथ बढ़ रही है।
यदि आप कलमखुश हैंडमेड पेपर खरीदना चाहते हैं, तो 079 2755 9831, 9427620325 पर कॉल करके अपना ऑर्डर दे सकते हैं। कलमख़ुश मिल का दौरा करने के लिए आप यहाँ से जानकारी ले सकते हैं।
संपादन – अर्चना दुबे
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