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उत्तर प्रदेश में रायबरेली के गाँव कचनावा (पोस्ट-डीह) के रहने वाले आनंद मिश्रा की कहानी काफी रोचक है। कभी बड़ी कंपनी में काम करने वाला यह शख्स खेती-किसानी करने लगा है और खेती भी तो केवल नींबू की। नींबू की खेती से वह लाखों कमा रहे हैं और उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि लोग उन्हें ‘लैमन मैन’ कहने लगे हैं।
आनंद मिश्रा एक प्रतिष्ठित प्लास्टिक फर्नीचर कंपनी में मैनेजर थे। उत्पाद की क्वालिटी को सुनिश्चित करना उनका काम था, लेकिन उन्हें नौकरी में मन नहीं लग रहा था। ऐसे में मेरठ की शोभित यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन करने वाले आनंद ने अपनी राह बदलने की ठानी। सालाना करीब ग्यारह लाख का पैकेज ठुकराकर वह गाँव लौट आए।
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नींबू उत्पादन के कार्य में उतरने से पहले पूरी रिसर्च की
आनंद बताते हैं कि उन्होंने नींबू की खेती शुरू करने से पहले रिसर्च किया। इस क्रम में वह मलिहाबाद गए। आम की खेती देखी। इलाहाबाद में जाकर अमरूद के संबंध में जानकारी ली। फतेहपुर में केले के बारे में जानकारी हासिल की। बाराबंकी में जाकर मेंथा और केले की खेती को समझा। उन्होंने देखा कि किसान परंपरागत तरीके से खेती कर रहे हैं और नींबू एक ऐसी चीज है, जिसके उत्पादन की तरफ किसी का ध्यान नहीं। उन्होंने पूरी तरह नींबू के उत्पादन पर फोकस किया। इसकी एक वजह यह भी थी कि नींबू से कई तरह के उत्पाद बन सकते थे। मसलन नींबू का अचार, शिकंजी आदि।
थाई प्रजाति के सीडलैस पौधे रोपे और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा
आनंद बताते हैं कि वह 2015 में गाँव लौट आए थे। ऐसे में उन्होंने अपने बेकार पड़े खेत की तस्वीर बदलने की सोची। दरअसल, उनके नौकरी करने की वजह से गाँव में उनका तीन बीघे का खेत बेकार पड़ा था। उन्होंने जेसीबी लगाकर अपने खेतों को समतल किया। इसमें नींबू के 900 पौधे लगाए। इनमें से 875 पौधों ने बढ़त की। पौधे पेड़ बने और तीन साल के भीतर इनसे 450 क्विंटल की पैदावार होने लगी, जिन्होंने आनंद मिश्रा को लाखों की कमाई दी। खास बात यह कि यह पौधे थाई प्रजाति के सीडलैस यानी बीजरहित पौधे थे। इस प्रजाति के नींबू का पेड़ एक साल में कम से कम एक हजार फल प्रदान करता है। फल का वजन 40 से 50 ग्राम तक होता है। इसमें रस प्रचुर मात्रा में निकलता है। इस वजह से खरीदार इसे बेहद पसंद करते हैं।
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लोगों की सेहत को देखते हुए जैविक की तरफ कदम बढ़ाया
46 वर्षीय आनंद मिश्रा ने लोगों की सेहत को देखते हुए जैविक खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया। उनका मानना है कि लोग आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं। वह थोड़ा महंगा उत्पाद खरीदने से भी गुरेज नहीं करते। वह कहते हैं, “नींबू का पौधा 15 से 20 रुपये में मिल जाता है। इसकी रोपाई में ज्यादा लागत नहीं आती और तीन साल में नींबू का पेड़ तैयार होकर फल देने लगता है। इससे 30-35 साल तक आसानी से फसल ली जा सकती है। इसके लिए ज्यादा देखभाल भी नहीं चाहिए। वहीं, इसे कोई जानवर भी नहीं खाता। ऐसे में यह खेती बेहद लाभदायक साबित होती है। नींबू को स्थानीय बाजार के व्यापारी आसानी से खरीद लेते हैं। कुल मिलाकर यह किसानों के लिए एक लाभदायक फसल है।”
पंजाब से लेकर पटना तक काम किया, लेकिन आनंद खेती में
आनंद बताते हैं कि उन्होंने अपनी 13 साल की नौकरी के दौरान उत्तर प्रदेश, पंजाब से लेकर हरियाणा, राजस्थान और पटना तक काम किया, लेकिन वह सुख नहीं मिला, जो उन्हें खेतों में मिलता है। आनंद के अनुसार मंडी कानून बदलने से बड़ी राहत हुई। यही वजह रही कि उन्होंने नींबू की फसल को सीधे बेच दिया। इससे मुनाफे में बढ़ोत्तरी हुई। लॉकडाउन को भी वह खेती के लिए अच्छा कदम करार देते हैं। इस बीच जहाँ सभी दुकानें, व्यवसाय ठप थे, वहीं खाद्य पदार्थों और इससे जुड़े उत्पाद ही चलते रहे। आनंद का मानना है कि खेती युवाओं के लिए रोजगार का सबसे अच्छा जरिया है। बस वह थोड़ी मेहनत करने का जज्बा रखें।
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कटहल के भी 25 हजार पौधे तैयार किए
आनंद अब कटहल की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कटहल के भी 25 हजार पौधे तैयार किए हैं। यह पौधे थाई वैरायटी के हैं। आनंद का कहना है कि यदि परंपरागत फसलों की जगह थोड़ा हटकर फसल उत्पादन पर ध्यान दिया जाए तो उसके बेहतर नतीजे सामने आते हैं। उन्होंने थाई प्रजाति के कटहल के 76 पौधों के साथ ही एल-49 प्रजाति के अमरूद के 90 पौधों का भी रोपण किया है। आनंद अब तक कई कार्यशालाओं और सेमिनारों में हिस्सा ले चुके हैं। दूसरों से सीखने और सीखकर उसे बांटने में आनंद कतई परहेज नहीं करते। उन्हीं को देखकर विभिन्न जिलों के 12 से अधिक किसानों ने 30 बीघा में नींबू उत्पादन शुरू कर दिया है।
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सरकार ने काम को सराहा, कई सम्मान मिले
महज तीन साल के भीतर अपने काम से आनंद मिश्रा ने अपनी जगह बनाई है। उनके कार्य की प्रशंसा उत्तर प्रदेश सरकार ने भी की है। उन्हें ‘चौधरी चरण सिंह किसान सम्मान’ से नवाजा गया है। इसके साथ ही ‘जनपद गौरव सम्मान’, ‘समाज रत्न सम्मान’ भी उनको हासिल हुआ है। वह न केवल एक सफल नींबू उत्पादक हैं, बल्कि बागवानी विशेषज्ञ, मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में भी पहचान रखते हैं।
सोशल मीडिया के जरिये सैकड़ों किसानों से जुड़े
आनंद ने गांव में ही नींबू के पौधों की अपनी नर्सरी तैयार की है। इसके अलावा वह आनंदम खाद भी किसानों को दे रहे हैं, जो पूरी तरह जैविक है। उनसे सोशल मीडिया के जरिये कई प्रदेशों के किसान जुड़े हुए हैं। वह उनसे नींबू की बागवानी के बारे में टिप्स लेते रहते हैं।
आनंद कहते हैं, “उनका खुद का यही प्रयास है कि वह अधिक से अधिक युवाओं तक पहुंचे और उन्हें खेती से जोड़ें। दूर-दूर से लोग नींबू के खेत देखने आते हैं। ये सभी खेती में प्रयोग करना चाहते हैं। मैं इन सभी से कहता हूँ कि खेती को व्यवसाय की तरह लेना चाहिए।”
किसानी की दुनिया में इस तरह के प्रयोग करने वाले आनंद मिश्र से देश भर के किसान काफी कुछ नया सीख सकते हैं। द बेटर इंडिया उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।
(आनंद मिश्रा से 95469 20316 पर संपर्क किया जा सकता है)
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