एक चम्मच इतिहास ‘चाय’ का!

यूं तो पीने के लिए दुनियाभर में बहुत सारे ड्रिंक्स मौजूद हैं, लेकिन चाय की बात ही कुछ और है। चाय-प्रेमियों को जब तक सुबह-सुबह एक प्याली अच्छी सी चाय न मिल जाए, तब तक सारे काम किनारे कर दिए जाते हैं। सारी प्रेम कहानियां एक तरफ और चाय के लिए हमारी दीवानगी एक तरफ़! तो आइए, आपकी जान 'चाय' के इतिहास की रोचक कहानी सुनते हैं-

ज़रा एक कप चाय मिल जाए, तो काम में फुर्ती आ जाए…सिर दर्द है, एक कप कड़क चाय पिला देना…बेटा, अंकल जी के लिए गरमा-गरम चाय तो लाना…ये ऐसी कुछ बातें हैं, जो भारत के हर घर में रोज़ और बार-बार सुनने को मिल जाएंगी। चाय की खोज भले ही हमारे देश में नहीं हुई, लेकिन हमने इसे इस कदर अपना लिया है कि यह दुनिया भर में हमारी पहचान बन गई है।

यूं तो पीने के लिए दुनियाभर में बहुत सारे ड्रिंक्स मौजूद हैं, लेकिन इसकी बात ही कुछ और है। सबसे पहले पानी में चीनी, दूध और पत्ती मिलाकर इसे किसने बनाया होगा और चाय भारत में कैसे आई; आइए जानते हैं इसके सदियों पुराने सफ़र के बारे में।

पहली चाय की कहानी

Indian Masala Tea
भारत की मसाला चाय

एक कहानी के अनुसार क़रीब 2700 ईसा पूर्व चीनी शासक शेन नुंग बग़ीचे में बैठे गर्म पानी पी रहे थे। तभी एक पेड़ की पत्ती उस पानी में आ गिरी, जिससे उसका रंग बदला और पानी महक भी उठा। राजा ने चखा तो उन्हें इसका स्वाद बड़ा पसंद आया और इस तरह चाय का आविष्कार हुआ।

वहीं, एक और किस्से की मानें तो छठवीं शताब्दी में चीन के हुनान प्रांत में भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म बिना सोए ध्यान साधना करते थे। वह जागे रहने के लिए एक ख़ास पौधे की पत्तियां चबाते थे और बाद में यही पौधा चाय के पौधे के रूप में पहचाना गया। 

भारत में कैसे हुई चाय की शुरुआत?

यह 300 ई. से ही रोज़ाना पीने वाली ड्रिंक बनी हुई है। 1610 में डच व्यापारी इसे चीन से यूरोप ले गए और धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया में फ़ैल गई। 1824 में बर्मा (म्यांमार) और असम की सीमांत पहाड़ियों पर चाय के पौधे पाए गए और अंग्रेज़ों ने 1836 में भारत में इसका उत्पादन शुरु कर दिया।

इससे पहले खेती के लिए बीज चीन से आते थे, लेकिन बाद में असम चाय के बीज़ों का इस्तेमाल होने लगा। भारत में इसका उत्पादन ख़ासतौर से ब्रिटेन के बाज़ारों में मांग को पूरा करने के लिए किया गया था। 19वीं शताब्दी तक भारत में इस पेय की खपत न के बराबर थी। लेकिन आज भारत के हर चौराहे, नुक्कड़ पर आपको कुछ मिले न मिले, चाय ज़रूर मिल जाएगी।

यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि चाय हमारे लिए किसी इमोशन से कम नहीं है! केरल की सुलेमानी, बंगाल की लेबू चा, असम की रोंगा साह, हैदराबाद की ईरानी, हिमाचल प्रदेश की कांगड़ापश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग, तमिलनाडु की नीलगिरी और कश्मीर की नून चाय… भारत के हर राज्य में अलग-अलग अंदाज़ से इसे तैयार किया जाता है और इसे अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है। लेकिन हर हिस्से में इसका स्वाद तरोताज़ा करने वाला और लाजवाब है।

संपादन- अर्चना दुबे

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