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अक्सर लोगों के बीमारी से ठीक होने के बाद, उनकी बहुत-सी दवाईयां बच जाती हैं। ज़्यादातर घरों में आपको ऐसी बहुत-सी ऐसी दवाईयां मिल जाती हैं। कुछ समय बाद, हम इन दवाईयों को डस्टबिन का रास्ता दिखा देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि जिस तरह इंजेक्शन की सूई का सही तरह से डिस्पोजल ज़रूरी है, वैसे ही दवाईयों का डिस्पोजल भी ज़रूरी होता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत के रजिस्टर्ड हेल्थकेयर सेक्टर से प्रति दिन लगभग 4,057 टन मेडिकल वेस्ट उत्पन्न होता है। साथ ही, भारत पूरे विश्व के लिए दवाओं के उत्पादन का केंद्र रहा है, लेकिन दवाइयों का सही निपटान न होना एक गंभीर समस्या है। दक्षिण भारत के एक इंडस्ट्रियल इलाके से मिले वेस्टवाटर के टेस्ट में एंटीबायोटिक की मात्रा काफी अधिक थी। सिप्रोफ्लोक्सासिन जैसे लगभग 21 दवाईयां इतनी ज्यादा मात्रा में इस पानी में छोड़ी गईं कि इन दवाईयों से लगभग 90,000 लोगों का इलाज किया जा सकता था।
हमारे देश की विडंबना यही है कि एक तबके के पास इतना ज्यादा है कि उनके यहाँ महंगी से महंगी दवाईयां भी कचरे में जाती है। तो वहीं, एक तबका इतना गरीब है कि वे दवाईयों पर शायद दस रुपये भी खर्च नहीं कर सकते। लेकिन अच्छी बात यह है कि इन दोनों तबकों के बीच इस खाई को पाटने का काम मुंबई के तीन युवा कर रहे हैं।
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युग सांघवी, कृष्य मनियार और अयान शाह, तीनों दोस्त धीरुभाई अम्बानी इंटरनेशनल स्कूल में 12वीं कक्षा के छात्र हैं। ये तीनों मिलकर, 'शेयर मेड्स' नाम से एक अभियान चला रहे हैं, जिसके अंतर्गत ये समृद्ध तबके के घरों से बची हुई, लेकिन बिल्कुल सही दवाईयां लेकर चैरिटेबल क्लीनिक्स को देते हैं ताकि वहां से ये ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँच सकें। इससे ज़रूरतमंदों की मदद भी हो रही है और साथ ही, मेडिकल वेस्ट भी कहीं न कहीं कम हो रहा है।
युग बताते हैं कि शेयरमेड्स की कहानी उनके दादाजी से शुरू होती है। उनके दादाजी को कैंसर डिटेक्ट हुआ और उनके परिवार ने हर संभव इलाज़ कराया। इस बीच उन्होंने कई उतार-चढाव देखे। "उनकी दवाईयां बहुत महंगी थीं। मैं एक समृद्ध परिवार से हूँ तो हम सारा खर्च मैनेज कर पाए। लेकिन उस समय मेरे दिमाग में आया कि गरीब लोग कैसे इतना कुछ मैनेज करते होंगे। इस एक विचार से मुझे लगा कि क्या हम कुछ कर सकते हैं और वहां से मैंने एक कजिन के साथ मिलकर 'शेयरमेड्स' का सफ़र शुरू किया," उन्होंने आगे बताया।
साल 2017 से युग और उनके कजिन ने अपने स्तर पर लोगों से उनके घरों में बची हुई दवाईयां इकट्ठा करना शुरू किया। उनका उद्देश्य इन दवाईयों को इकट्ठा करके इन्हें चैरिटेबल डॉक्टर्स तक पहुँचाना था। युग अपने लेवल पर काम कर रहे थे और लोगों को इस बारे में जागरूक भी कर रहे थे कि कैसे उनकी ये मदद ज़रूरतमंद लोगों के काम आ सकती है।
साल 2019 में युग के इस सफर में उनके दोस्त, कृष्य और अयान भी जुड़ गए और तब से ये तीनों मिलकर इस अभियान को हर दिन बड़ा बनाने में जुटे हुए हैं। कृष्य बताते हैं कि फ़िलहाल वे बांद्रा, घाटकोपर, सांताक्रुज़ के इलाकों में काम कर रहे हैं।
समृद्ध और ज़रूरतमंदों के बीच बने सेतु:
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अयान बताते हैं कि उनके इस अभियान के मुख्य दो काम है- पहला, दवाईयां इकट्ठा करना और दूसरा, इन दवाईयों को चैरिटेबल क्लिनिक्स और ट्रस्ट आदि तक पहुँचाना। लेकिन इसके पूरी प्रक्रिया में और भी बहुत-से ज़रूरी स्टेप्स हैं जिन्हें वे फॉलो करते हैं।
"सबसे पहला काम होता है लोगों को जागरूक करना। शुरुआत में, हम घर-घर जाकर दवाईयां इकट्ठा करते थे, पहले लोगों को बताते कि हम क्या कर रहे हैं और फिर उनके यहाँ से दवाईयां लेते। लेकिन अभी हम अलग-अलग जगह ड्राइव्स करते हैं," युग ने बताया।
शेयर मेड्स मुंबई के अलग-अलग इलाकों में अब तक 14 ड्राइव्स कर चूका है, जिनमें मलाड, वोर्ली जैसे इलाके भी शामिल हैं। अपनी प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए अयान आगे बताते हैं, "हम जिस सेक्टर में काम कर रहे हैं, वहां हमें हर चीज़ का बहुत ध्यान रखना होता है। सबसे पहले तो हम उन दवाईयों को लेते हैं, जिनका बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं हुआ है और जिनकी एक्सपायरी तारीख बहुत बाद की है। इसके अलावा, दवाईयां अच्छे से पैक है इस बात को भी ध्यान में रखा जाता है। ख़ासतौर पर, सिरप आदि के मामले में, बिना सील पैक्ड सिरप हम नहीं लेते।"
कृष्य की माँ डॉक्टर हैं और उनके मार्गदर्शन में ही दवाईयों को इकठ्ठा करने के बाद अलग-अलग करके उनका कैटेलॉग तैयार किया जाता है। ताकि उनके पास एक रिकॉर्ड रहे। सभी दवाईयों को अच्छे से चेक किया जाता है और उसके बाद ही चैरिटेबल ट्रस्ट और क्लीनिक्स को दिया जाता है। यहाँ पर भी दवाईयां फिर से चेक होती हैं और उसके बाद ही मरीज़ों को दी जाती हैं।
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युग कहते हैं कि कृष्य की माँ के डॉक्टर होने से उन लोगों को इस अभियान में काफी मदद मिल रही है। साथ ही, उनके फैमिली डॉक्टर्स भी उनके इस काम की सराहना करते हुए, उन्हें ऐसे डॉक्टरों से जोड़ रहे हैं, जो गरीब तबके के लिए काम करते हैं। बहुत-से डॉक्टर मुंबई के आस-पास के गांवों और कच्ची बस्तियों में लोगों के लिए मुफ्त मेडिकल कैंप लगाते हैं।
कृष्य कहते हैं कि पिछले एक साल में उन्होंने लगभग 15 हज़ार टेबलेट स्ट्रिप्स जमा करके दान की हैं। इनमें बुखार से लेकर सभी तरह की विटामिन आदि तक की दवाईयां थीं।
सफ़र की चुनौतियाँ:
कृष्य आगे बताते हैं कि उनके इस अभियान में कोई बहुत बड़ी इन्वेस्टमेंट नहीं है औरे जो थोड़ी-बहुत है, उसे वे तीनों आसानी से मैनेज कर लेते हैं। लेकिन इसके अलावा, उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि कई बार लीगल परेशानियां हुईं। जैसे उन्होंने दवाईयां तो इकट्ठा कर लीं लेकिन जब बारी इन दवाईयों को क्लीनिक्स में देने की आई तो बहुत-सी जगह उन्हें मना कर दिया गया। हर कोई उनसे यही कहता कि अगर कुछ गलत हो गया तो।
"हमने क्लीनिक्स के डॉक्टरों से बात की, उन्हें हमारा उद्देश्य समझाया और उनसे कहा कि वे खुद दवाईयां चेक कर सकते हैं। काफी मुश्किलों के बाद, हर एक चीज़ जांचकर क्लीनिक्स ने हमारी दवाईयां लीं। लेकिन अब स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है क्योंकि अब हम नियमित रूप से लगभग 5 चैरिटेबल क्लीनिक्स को ये दवाईयां पहुँचा रहे हैं," उन्होंने आगे कहा।
उनके इस अभियान पर लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में बात करते हुए युग ने हमारे साथ एक किस्सा साझा किया। वह कहते हैं, "एक ड्राइव के दौरान हमें एक महिला ने कहा कि कुछ दिन पहले उनके पिता का देहांत हुआ है और उनके काफी इंजेक्शन घर पर बिना इस्तेमाल के बची हुई हैं। जब हम उनके घर पहुंचे तो उन्होंने सभी दवाईयां काफी अच्छे से छांटकर हमें दीं और साथ ही, वह बता रहीं थीं कि किस दवाई को किस लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उस दिन हमें लगा कि बहुत से लोग हैं जो अपना दुःख भुलाकर लोगों की मदद करना चाहते हैं, उन्हें बस एक ज़रिया चाहिए।"
वहीं दूसरी तरफ, अयान ने बताया कि कैसे एक बार, एक रिक्शावाला उनके और उनकी मां के पास आया था क्योंकि उसे अपनी पत्नी के लिए आँखों की दवाई आवश्यकता थी। लेकिन वह उसे खरीद पाने में असमर्थ था और अयान ने उनकी मदद की। वह कहते हैं कि उनका उद्देश्य इसी गैप को भरना है। जो लोग मदद करना चाहते हैं और जिन्हें मदद की ज़रूरत है, उनके बीच एक सेतु का काम कर रहे हैं।
आगे की योजना:
फ़िलहाल, कोरोना वायरस के चलते उनका यह काम बंद हैं। लेकिन इस लॉकडाउन में भी ये तीनों अपनी तरफ से ज़रूरतमंदों की हर संभव मदद कर रहे हैं। उन्होंने दवाईयों का कलेक्शन अभी रोका हुआ है। लेकिन इसके बदले उन्होंने गरीब लोगों को मास्क, सैनीटाइज़र आदि बांटना शुरू किया।
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"सोसाइटी के गार्ड से लेकर सब्ज़ी बेचने वालों तक, हमने बहुत से लोगों को मास्क आदि बांटे हैं। इसके अलावा, हमने डॉक्टरों के साथ वीडियो इंटरव्यू भी करना शुरू किया है ताकि कोविड-19 से संबंधित मिथकों के बारे में लोगों को जागरूक करें," उन्होंने आगे बताया।
वे इन इंटरव्यू क्लिप्स को अपने इन्स्टाग्राम पेज पर डालते हैं और आप यहाँ क्लिक करके यह देख सकते हैं।
जैसे ही परिस्थितियाँ ठीक होंगी, शेयरमेड्स की टीम एक बार फिर अपने अभियान में जुट जाएगी। आगे उनका उद्देश्य इस अभियान को और बड़े स्तर पर लेकर जाना है, जहां वे ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें। अगर आप इनके अभियान के बारे में अधिक जानना चाहते हैं और कोई मदद करना चाहते हैं तो उनके फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं!
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