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आज सरकरी विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव एवं शिक्षा का गिरता स्तर, बेहद सामान्य बात लगती है। नागरिकों का सरकारी स्कूलों से विश्वास उठ रहा है। ऐसी स्थिति में किसी भी शासन एवं प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वह आगे बढ़कर अपने नागरिकों के मुद्दों को सुलझाने की पहल करे।
पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार प्रशासन ने भी कुछ ऐसा ही किया, जब उन्हें जिले में सरकारी स्कूलों के हालातों का पता चला। यहाँ पर प्रशासन ने अपनी मेहनत और जुनून के दम पर तीन महीनों में ही 73 विद्यालयों के लगभग 20, 000 बच्चों की ज़िंदगी में एक बड़ा परिवर्तन लेकर आये है।
प्रशासन की बदली कार्यशैली और लगन से न सिर्फ़ 'मिड डे मील' और छात्रों की हाजिरी में सकारात्मक बदलाव किये हैं, बल्कि शिक्षा का स्तर भी काफ़ी ऊँचा उठा है।
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जिले में चाय के बगीचों में काम करने वाले मजदूरों से जिले के अधिकारियों ने मुलाकात की और उनकी परेशानियाँ सुनीं। जगह-जगह भ्रष्टाचार और अन्य असुविधाओं के कारण सबसे ज्यादा परेशानी इन मजदूरों को होती है। जिसके चलते ये लोग अपने बच्चों को शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधा तक नहीं दे पा रहे थे। साथ ही, इन समस्याओं के कारण बाल-श्रम, तस्करी, यौन शोषण, बाल विवाह, नशा आदि के मामले भी बढ़ने लगे थे।
पर प्रशासन के अफ़सरों ने नागरिकों के साथ इस विषय पर काफ़ी चर्चा की और इसे पूरी तरह से समझा, और उन्हें पता चला कि इन सभी समस्याओं का एक मूल कारण शिक्षा का अभाव है। इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र को मजबूत करने का फ़ैसला किया।
यहीं से शुरू हुई 'आलोरण' पहल। इस पहल के माध्यम से पिछड़े वर्ग एवं चाय के बागानों में कार्यरत मजदूरों के बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रदान करने की मुहिम शुरू की गई।
क्या है आलोरण?
इस पहल के बारे में बात करते हुए एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि सबसे पहले तो अधिकारियों ने बिना किसी पूर्व सूचना के स्कूलों का दौरा करना शुरू किया। उन्हें इन आकस्मिक दौरों से कई समस्याओं का पता चला- बच्चों की कम उपस्थिति, शिक्षकों की गैर-हाजिरी और शिक्षा विभाग की लापरवाही आदि। हालांकि, प्रशासन यह भी जनता है कि पूरी तरह से शिक्षा विभाग को भी दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे अधिकारियों की भारी कमी से जूझ रहे थे। 11 अलग-अलग इलाकों के 840 स्कूलों के लिए, उनके पास केवल चार उप-निरीक्षक थे।
इस पूरे मामले को समझने के बाद प्रशासन ने इन समस्याओं को हल करने का जिम्मा उठाया और 'आलोरण' की शुरुआत की। इस अभियान के तहत विभिन्न प्रशासनिक अधिकारी जैसे कि डिप्टी कलेक्टर, डिप्टी मजिस्ट्रेट आदि हर दो हफ्ते में अलीपुरद्वार के 73 स्कूलों का दौरा करते हैं, जिनमें अलीपुरद्वार 1, फलकता, कालचीनी, कुमारग्राम और मदारीहाट ब्लॉक प्रमुख हैं।
यह एक 'ज़ीरो-कॉस्ट' मॉडल है। हर एक स्कूल में अधिकारी जाकर मिड-डे-मील की गुणवत्ता, छात्रों की हाजिरी और शिक्षकों की उपस्थिति का मुआयना करते हैं और किसी भी प्रकार की कमी होने पर, तत्काल कार्यवाही की जाती है।
मिड-डे मील पर विशेष ध्यान
इस अभियान के तहत विशेष ध्यान मिड-डे-मील की गुणवत्ता पर दिया जा रहा है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन और अधिक छात्रों की नियमित उपस्थिति का एक अहम कारण मिड-डे-मील होता है। इसके आलावा अगर कोई छात्र लगातार 10 दिन तक अनुपस्थित है, तो संबंधित अधिकारी उस छात्र के घर जाते हैं और उसके माता-पिता से इस बारे में पता करते हैं।
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अगर कोई भी बच्चा बहुत दिनों तक अनुपस्थित है, तो एक डर मानव तस्करी का भी होता है; क्योंकि यह जिला भूटान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
छात्रों के लिए 'मेंटर' बने अधिकारी
आलोरण पहल में अधिकारी किसी इंस्पेक्टर की नहीं, बल्कि 'मेंटर' की भूमिका में काम करते हैं। वैसे तो एक इंस्पेक्टर का काम जाँच करके, मामले की रिपोर्ट लिखकर अपने सीनियर अधिकारीयों को सौंपने का होता है। पर ये अफ़सर इन छात्रों के लिए 'मेंटर' बनना चाहते हैं, ताकि इनकी रचनात्मक प्रतिभाओं को पहचानें और उनके सपनों को पूरा करने में उनकी मदद कर सकें।
यह पहल पिछले कई महीनों से चल रही है और प्रशासन ने इसके लिए किसी भी तीसरी संस्था, जैसे कि एनजीओ आदि को नहीं जोड़ा है। यहाँ के अफ़सरों का कहना है कि हर हफ्ते स्कूल जाकर बच्चों से मिलने का यह अनुभव उनके लिए बहुत ही अच्छा और ताज़गी देने वाला है।
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हाई टेक है यह मुहीम
जिले की एक प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक विद्यालय को हर दिन एक एस. एम. एस करना होता कि मिड डे मील चल रहा है और यह केंद्र सरकार द्वारा पंजीकृत किया जाता है। कभी इस जिले का परिणाम 35 प्रतिशत से भी कम था (सक्रिय एमडीएम के प्रतिशत के संबंध में) और अब कुछ ही महीनों के भीतर लगभग 95 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
बाकी अब छात्रों की उपस्थिति में भी निरंतर सुधार हो रहा है। शिक्षक भी नियमित रूप से आने लगे हैं।
साथ ही सरकार ने एक और कदम उठाया है, जिससे कि दुर्गा पूजा के समय भी बिना किसी बाधा के बच्चों को मिड-डे मील मिलता है। क्योंकि त्यौहार के कारण इन प्रान्तों में लगभग 20 दिन तक का अवकाश रहता है। पहले इन दिनों में मिड-डे-मील नहीं दिया जाता था, लेकिन अब हर एक दिन बच्चों को खाना मिलता है। इसके अलावा, आलोरण पहल के अंतर्गत आने वाले बच्चों को सार्वजनिक अवकाश के दिन भी खाना दिया जाता है।
हर छोटी-बड़ी समस्या पर ध्यान
सरकारी अधिकारियों के व्यक्तिगत दौरों ने सुनिश्चित किया है कि इन स्कूलों में नियमित मरम्मत और बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे मुद्दों पर तुरंत गौर किया जाए। सीएसआर पहल के माध्यम से, छात्रों के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने के लिए स्कूलों में आरओ वॉटर प्यूरीफायर लगाए गए हैं।
इन सुविधाओं के अलावा, यह पहल उन जरूरतमंद छात्रों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में भी मदद कर रही है जिनके वे हकदार हैं।
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इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण यह है कि अब एक दृष्टिहीन छात्रा पश्चिम बंगाल सरकार की 'मनाबिक पेंशन योजना' का लाभ उठा पा रही है। इस योजना के तहत किसी भी उम्र के दिव्यांग नागरिकों को प्रति माह 1000 रुपये की पेंशन प्रदान करती है। इस लड़की के पास दिव्यांग प्रमाणपत्र नहीं था, इसलिए वह इस योजना से वंचित थी। लेकिन प्रशासन ने उसे निकटतम अस्पताल में ले जाकर, उसका प्रमाण पत्र बनवाया और उसकी मदद की।
इस पहल का सुचारु रूप से क्रियान्वन करने के लिए अधिकारियों ने एक व्हाट्सप्प ग्रुप भी बनाया है। इस ग्रुप में सभी गतिविधियों, काम की प्रगति और किसी भी समस्या के हल पर नियमित अपडेट दिए जाते हैं। इसके साथ साथ ही,हर महीने एक समीक्षा बैठक भी रखी जाती है।
इस पहल को राज्य सरकार से भी मदद मिली है। उत्तर बंगाल विकास विभाग ने हर एक ब्लॉक में स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए जिले को 2 करोड़ रुपये दिए हैं। इसके अतिरिक्त, 'गतिधारा योजना' के तहत सरकार उन वाहन मालिकों को सब्सिडी प्रदान करती है, जो अपने वाहन एम्बुलेंस के रूप में या स्कूल के छात्रों को लाने-ले जाने के लिए सर्विस देते हैं, क्योंकि यह स्कूल बसों के लिए एक अच्छा विकल्प है।
छात्रों को स्कूल बैग और स्पोर्ट्स किट भी मिलते हैं। इसके अलावा, वनस्पति बाड़ और रसोई के बगीचे, पोषण प्रदान करने के अलावा, अपने परिवारों के लिए आजीविका के अवसरों के रूप में भी काम कर रहे हैं।
नेल्सन मंडेला ने कहा था कि "शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं" और यहाँ पर प्रशासन इन युवाओं को उसी हथियार के साथ हर तरीके से सक्षम बनाने की कोशिश में है।
(संपादन: निशा डागर)