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निशा डागर

बातें करने और लिखने की शौक़ीन निशा डागर हरियाणा से ताल्लुक रखती हैं. निशा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी ग्रेजुएशन और हैदराबाद विश्वविद्यालय से मास्टर्स की है. लेखन के अलावा निशा को 'डेवलपमेंट कम्युनिकेशन' और रिसर्च के क्षेत्र में दिलचस्पी है.

#गार्डनगिरी: घर से लेकर लाइब्रेरी तक, पौधों की दुनिया बसा रही हैं सना ज़ैदी!

By निशा डागर

"अगर आपके आस-पास हरियाली है तो चाहे आप कितने भी तानव में हों, एक सकारात्मक ऊर्जा आपको ज़रूर मिलती है। यही सोचकर मैंने लाइब्रेरी में भी पेड़ लगाए ताकि वहां बैठकर पढ़ने वाले बच्चों का मन इन्हें देखकर शांत और खुश रहे।"

100 से लेकर डेढ़ लाख तक: जानिए कैसे धरती को बचाने में जुटे हैं ये पर्यावरण प्रहरी!

By निशा डागर

कोई गाँव-गाँव जाकर लगा रहा है पौधे तो एक पुलिसवाला 40 साल से कर रहा है पेड़ों की देखभाल!

लंदन से की पढ़ाई और भारत लौटकर बन गईं जैविक किसान, 25 किसानों को दिया रोज़गार!

By निशा डागर

लॉकडाउन में दूसरे किसान जहां बाज़ार न मिलने से परेशान थे वहीं उन्हें हर दिन सब्ज़ियों की होम डिलीवरी के ऑर्डर्स मिल रहे थे!

साढ़े 3 लाख किताबें, 65 केंद्र, और कोशिश एक, मुफ्त में मिले ज़रूरतमंदों को किताबें!

By निशा डागर

"बचपन में अपनी कई सहेलियों को किताबें न होने की वजह से पढ़ाई छोड़ते हुए देखा था। इसलिए हमेशा मेरे मन में यह चाह रही कि मैं ऐसा कुछ करूँ कि कम से कम किताबों के अभाव में कोई पढ़ाई न छोड़े।"- अमिता शर्मा

किसी म्यूजियम से कम नहीं इस किसान का खेत, एक साथ उगाए 111 तरह के धान!

By निशा डागर

भारत में साल 1970 तक लगभग 1 लाख 10 हज़ार चावल की किस्में थीं लेकिन आज मुश्किल से सिर्फ 6 हज़ार किस्में ही बची हैं!

सीताफल की प्रोसेसिंग ने बदली आदिवासी महिलाओं की तक़दीर, अब नहीं लेना पड़ता कहीं से कर्ज!

By निशा डागर

पहले ये आदिवासी महिलाएं जंगलों से सीताफल इकट्ठे करके सड़क किनारे बेचतीं थीं और मुश्किल से दिन के 100 रुपये कमातीं थीं, आज इन्हें एक ही टोकरी के लगभग 250 रुपये तक मिल जाते हैं।

बार-बार असफल होने के बावजूद किए प्रयास, आज कम जगह में भी उगा रही हैं अच्छी सब्ज़ियाँ!

By निशा डागर

एक बार लोकल ट्रेन से सफर करते वक़्त डॉ. विनी ने कुछ लोगों को रेलवे लाइन से पालक तोड़ते हुए देखा और बाद में, उन्हें पता चला कि यही पालक बाज़ार में आता है। इसके बाद उन्होंने खुद अपनी सब्ज़ियाँ उगाने की ठान ली!

मिश्रित खेती और पशुपालन के साथ 10 हज़ार से भी ज्यादा पेड़ लगा अपने खेत को बनाया ऑक्सीजोन!

By निशा डागर

पिछले 15 सालों से किसानी कर रहे नवीन कृष्णन खेती के साथ-साथ पर्यावरण और जंगली जानवरों को भी बचा रहे हैं। उन्होंने अब तक 700 साँपों का बचाव किया है और लगभग 50 हज़ार से भी ज्यादा पेड़ लगाए हैं!