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निशा डागर

बातें करने और लिखने की शौक़ीन निशा डागर हरियाणा से ताल्लुक रखती हैं. निशा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी ग्रेजुएशन और हैदराबाद विश्वविद्यालय से मास्टर्स की है. लेखन के अलावा निशा को 'डेवलपमेंट कम्युनिकेशन' और रिसर्च के क्षेत्र में दिलचस्पी है.

गिरिजा देवी : 15 साल में विवाहित, बनारस की एक साधारण गृहणी से 'ठुमरी की रानी' बनने का सफ़र

By निशा डागर

'ठुमरी की रानी' कही जाने वाली गिरिजा देवी का जन्म 8 मई, 1929 को कला और संस्कृति की प्राचीन नगरी वाराणसी (तत्कालीन बनारस) में हुआ था। ठुमरी गायन को संवारकर उसे लोकप्रिय बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। वे बनारस घराने की गायिका थीं। 24 अक्टूबर 2017 को उन्होंने दुनिया से विदा ली।

इस्मत चुग़ताई : साहित्य का वह बेबाक चेहरा जिसे कोई लिहाफ़ छिपा न सका!

By निशा डागर

15 अगस्त 1911 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मी इस्मत चुग़ताई उर्दू साहित्य की महान लेखिका थीं। उनके द्वारा लिखे गये अफ़साने और कहानियों को आज भी पढ़ा जाता है। उनकी कहानी 'लिहाफ' को लेकर पुरे देश में बवाल मच गया था। फिर भी उनकी लेखनी का बेबाकपन कम न हुआ। 24 अक्टूबर 1991 में उन्होंने दुनिया से विदा ली।

झांसी की रानी से भी पहले थी एक स्वतंत्रता सेनानी; जानिए उस वीरांगना की अनसुनी कहानी!

By निशा डागर

कर्नाटक के बेलगावी जिले के कित्तूर तालुका में हर साल अक्टूबर के महीने में 'कित्तूर उत्सव' मनाया जाता है। इस साल भी यह उत्सव 23 अक्टूबर, 2018 से 25 अक्टूबर, 2018 तक मनाया जायेगा। इसकी शुरुआत रानी चेन्नम्मा ने की थी। वे भारत की पहली स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने अंग्रेजों को हराया।

पीएचडी कर चुके इस युवक ने सोशल मिडिया के ज़रिये की देश के किसानों को जोड़ने की अनोखी पहल!

By निशा डागर

महाराष्ट्र के सांगली जिले में अष्टा गाँव के डॉ अंकुश चोरमुले अपनी पहल 'होय आम्ही शेतकरी' के जरिये लाखों किसानों से जुड़कर उनकी मदद कर रहे हैं। वे व्हाट्सअप ग्रुप और फेसबुक पेज के माध्यम से किसानों के लिए लाइव विडियो करते हैं। उन्होंने फसलों के लिए हानिकारक फॉल आर्मी वॉर्म पर अपनी रिपोर्ट दी है।

दो हिन्दू व मुस्लिम क्रांतिकारियों की दोस्ती का वह किस्सा जो फांसी के फंदे पर खत्म हुआ!

By निशा डागर

अशफाक उल्ला खान 22 अक्टूबर 1900 को ब्रिटिश भारत के उत्तर प्रदेश के जिले शाहजहांपुर में पैदा हुए थे। किशोरावस्था से ही उन्हें उनकी शायरी के चलते लोग पहचानने लगे थे। वे 'हसरत' उपनाम के साथ अपनी शायरी लिखते थे। वे काकोरी कांड के मुख्य क्रांतिकारी थे। उनकी और रामप्रसाद बिस्मिल की दोस्ती जग-जाहिर थी।

साल 2008 में काबुल में शहीद हुए दो आईटीबीपी सैनिकों को मिलेगा कीर्ति चक्र!

By निशा डागर

इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के दो कॉन्सटेबल को भारत सरकार द्वारा कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। पंजाब के पठानकोट से ताल्लुक रखने वाले अजय सिंह पठानिया और हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले कॉन्स्टेबल रूप सिंह ने 7 जुलाई, 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास में बहुत सी जानें बचाने के लिए अपनी परवाह नहीं की।

इस स्वतंत्रता सेनानी के प्रयासों के कारण बना था काकोरी शहीद स्मारक!

By निशा डागर

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रामकृष्ण खत्री का जन्म वर्तमान महाराष्ट्र के जिला बरार के चिखली गाँव में 3 मार्च 1902 को हुआ था। उन्हें 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' संगठन का दायित्व सौंपा गया। काकोरी कांड में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 18 अक्टूबर 1996 को उनका देहांत लखनऊ में हुआ।

यथार्थ के कवि निराला की कविता और एक युवा का संगीत; शायद यही है इस महान कवि को असली श्रद्धांजलि!

By निशा डागर

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 को ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसीडेंसी के मिदनापुर में हुआ था, हालांकि उन का परिवार उत्तर प्रदेश से था। उन्होंने कविता, कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं। वे छायावाद के प्रमुख स्तंभ थे। उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को हुई।

दुर्गा भाभी : जिन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेज़ो को चटाई थी धूल!

By निशा डागर

दूर्गा देवी वोहरा अका दुर्गा भाभी- जिन्होंने खुद गुमनामी की ज़िन्दगी जीकर भी देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी। दुर्गा देवी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान न केवल महत्वपूर्ण गतिविधियों को अंजाम दिया बल्कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन पर भी इनका गहरा प्रभाव रहा।

भगिनी निवेदिता: वह विदेशी महिला जिसने अपना जीवन भारत को अर्पित कर दिया!

By निशा डागर

भगिनी निवेदिता का भारत से परिचय स्वामी विवेकानन्द के जरिए हुआ था। 28 अक्टूबर, 1867 को जन्मीं निवेदिता का वास्तविक नाम 'मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल' था। एक अंग्रेजी-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द की शिष्या- मार्गरेट ने 30 साल की उम्र में भारत को ही अपना घर बना लिया।