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नेहा रूपड़ा

नेहा ने समाज कार्य में स्नातकोत्तर किया है। वह पिछले लगभग 8-10 वर्षों से विविध गैर-सराकारी संगठनों के साथ कार्यरत हैं। नेहा की रुचि प्राथमिक शिक्षा, किशोरी स्वास्थ्य और जेंडर मुद्दों में है।

एक वन अधिकारी की कोशिशों ने बांस को बनाया ब्रांड और फिर गाँव में खुल गया मॉल

By नेहा रूपड़ा

गुजरात के विसदालिया गाँव को बांस के काम के लिए देश भर में पहचान दिलाने में भारतीय वन सेवा के अधिकारी पुनित नैयर की अहम भूमिका रही है!

45 सालों से जंगल में आदिवासियों के बीच रहकर उनकी ज़िन्दगी सँवार रहे हैं यह पूर्व वायु सेना कर्मी

By नेहा रूपड़ा

विलास मनोहर आज से 45 साल पहले जब आदिवासियों के गाँव हेमकलसा पहुंचे थे तब वहाँ मिट्टी की दो-तीन झोपड़ियाँ ही थीं लेकिन आज उनकी मेहनत से वहाँ अस्पताल, पक्के घर व पशुओं के लिए एक अनाथालय खुल चुका है।

इनसे सीखें: जब डगर-डगर पर हो अगर-मगर तो कैसे जिएँ अपने सपनों को

By नेहा रूपड़ा

यह कहानी है महज 3 महीने में अपने माँ-पिता से अलग हुई और 8 साल की उम्र में भाई बहनों की ज़िम्मेदारी निभाने वाली माया बोहरा की, जिन्होंने अपनी शिक्षा के लिए अपनों से ही बगावत की और आज वह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम कर रही हैं।

57 वर्षों में 7 पहाड़ों को काटकर बनाई 40 किमी सड़क, मिलिए 90 वर्षीय भापकर गुरूजी से

By नेहा रूपड़ा

गुरूजी ने पहाड़ काटकर ऐसा रास्ता बनाया, जिससे 29 किमी० की दूरी मात्र 10 किमी० में सिमट कर रह गयी। जिस रास्ते से साइकिल भी नहीं गुजर सकती थी अब वहाँ से बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ गुज़रती हैं।

कभी दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर यह आदिवासी महिला, आज हैं मशरूम खेती की मास्टर ट्रेनर!

By नेहा रूपड़ा

पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर की रहने वाली सुशीला के गाँव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उनके पास चाय के बागान में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना ही एक मात्र विकल्प था लेकिन फिर भी उन्होनें हार नहीं मानी!

पति थे बीमार, बेटे को भी खो चुकी थीं पर संघर्षों को चीरकर ऐसी लिखी अपनी दास्तान!

By नेहा रूपड़ा

दादी का मानना है कि लड़कियों का पढ़ना और खुद के पैरों पर खड़ा होना बेहद ज़रूरी है। उन्हें स्कूटी से लेकर कार तक सबकुछ चलाना आना चाहिए ताकि वे किसी पर निर्भर न रहें।