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मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.

जे डी अंकल का स्केच!

By मनीष गुप्ता

[जे डी अंकल सरीखे लोग हर शहर में होते हैं. इस शीर्षक के दो मतलब हैं. पहला कि यह कविता जे डी अंकल का स्केच है. दूसरा मतलब है उनका बनाया हुआ स्केच] 

मदारी!

By मनीष गुप्ता

इतनी कहानी है. आज शनिवार की चाय के साथ आपको एक एब्स्ट्रैक्ट सी कविता 'सलमा की लव स्टोरी' दिखाता हूँ. ये कविता कागज़ पर नहीं हो सकती आपको देखनी ही पड़ेगी.

कौवा है, घड़ा है, कंकड़ है, पानी है 

By मनीष गुप्ता

* 'धूप में घोड़े पर बहस' यह केदारनाथ सिंह की एक प्रसिद्ध कविता है. आज शनिवार की चाय में यह कविता आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता फिल्मकार / अभिनेता रजत कपूर :

मेरे दिल की राख कुरेद मत

By मनीष गुप्ता

उस दिन मिरैकल हुआ - बशीर साहब के चेहरे पर चमक आई, उन्होंने अपनी शरीके हयात की गोद में रखे अपने सर को हौले से हिलाया और एक हलकी सी मुस्कराहट के ज़रिये फ़रमाया कि वो सुन और समझ पा रहे हैं.

फ़ैज़ साहब से जलन!

By मनीष गुप्ता

महबूब के रुमान को तो हम सबने महसूस किया ही है, लेकिन सब नहीं जानते कि इन्क़िलाब का रुमान भी बहुत सुरीला होता है, दिलकश होता है। फ़ैज़ साहब इन दोनों रुमानों में ताउम्र डूबे रहे तो इनसे जलना लाज़मी तो है न ?

हसीन हो कहानी

By मनीष गुप्ता

आज की शनिवार की चाय महानगर की धड़कन से परे एक सुदूर गाँव में पकी है. किसी की तेरहवीं है. जीवन कितनी जल्द बीत जाता है. आज का वीडियो एक मीठा सा विरह गीत है.

सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी [मुस्लिम ताज बीबी का कृष्ण प्रेम]

By मनीष गुप्ता

भगवान आपका अपना मुआमला है किसी को हक़ नहीं कि आपको सिखाये कि किस तरह से पूजा करनी है. न आपका हक़ बनता है किसी के धर्म, कर्म, विश्वास पर प्रश्नचिन्ह लगाने का!

आवारागर्द लड़कियाँ

By मनीष गुप्ता

नारी-विमर्श में पुरस्कार प्राप्त कवि अपनी पत्नियों को नौकरानी बना कर अपना काम बजा लेने वाली ही समझते हैं. 'उच्छृंखल नदी हूँ मैं' लिखने वाली कवियित्रियाँ एक साँस घुटते रिश्ते में जी रही होती हैं..

तुम्हारे कमरे में!

By मनीष गुप्ता

मैं दोहराता हूँ कि प्रेमी के समर्पण से कुछ हासिल नहीं होता. प्रेम में अपने पूर्ण समर्पण की अवस्था में ही व्यक्ति की उन्नति छुपी होती है.