Placeholder canvas

जे डी अंकल का स्केच!

[जे डी अंकल सरीखे लोग हर शहर में होते हैं. इस शीर्षक के दो मतलब हैं. पहला कि यह कविता जे डी अंकल का स्केच है. दूसरा मतलब है उनका बनाया हुआ स्केच] 

चेहरे पे टँगी मूँछें
हनुमानी प्रयासों की अधजली पूँछें
मार्क्सवादी नारों की सीख –
यह है कि
गरम पानी से गरारे
करने चाहिए घर आकर.
और यह भी
कि झण्डे उठाने हैं अगर
तो पहले से ही
दर्द की गोली लेकर जाया जाए

 

कुल जमा बीस तीस किताबों का विरसा
(बाकी चमचे चुरा ले गए)
बीड़ी के अद्धे
और रम के पौव्वे
घिसी हुयी चप्पलें
खादी के झीने होते आये
कुरतों के पहाड़
जो कमरे के कोनों में
मूढ़े को रीढ़ बनाकर
हर हफ्ते खड़े हो जाते हैं.
पड़ोसन के गाल छूने के बच्चे ख्वाब
जो आधी रात होते ही बड़े हो जाते हैं,
दाढ़ी की सुफ़ैदी
(उससे ज़्यादह बेतरतीबी)
इतनी है कि बस में सीट देने
अब बच्चे खड़े हो जाते हैं.

 

सड़ जाते हैं गैस के पास पड़े लहसुन,
और ब्लड प्रैशर की गोली
शराब के साथ उतार ली जाती है
साल में एकाध बार मौली भी
बाँध लेते हैं – हमारे जेडी अंकल
कभी चढ़ी में
(या उतरी में)
मौलवी से कहते हैं कि
साले नरक में जाएगा
क़ौम को गुमराह करता है
तेरा अल्ला खुश होता है क्या?
मंदिरों में भी इनका घुसना मना है
स्कूलों में भी.
हेडमास्टर ने तो FIR
कराने की धमकी दे रखी है.

 

‘खरा और
प्रतिभावान तो है भई
उसमें क्या संदेह है,’ कहते हैं
शहर के ‘मान्य बुद्धिजीवी’,
लेकिन पता नही ंअपने आप
को क्या समझता है?”
बस घमंड ले डूबा
इसके संपादन ने
तूफान मचा दिया था एक ज़माने में
बड़े-बड़े लोग वहाँ छपने के लिए मरते थे
जी हजूरी करते थे
अब उसके दरवाज़े
मूतने भी नहीं जाते

 

एक पागल दयाबाई
नंगी घूमती थी जो
से भी कुछ चक्कर था इनका
कभी कभी इनके कमरे में
चली जाती
फिर मर गयी.
अच्छा हुआ
जैसे चौराहा धुल गया
जैसे इंडियन कॉफी हाउस बंद हुआ
और बरिस्ता खुल गया
जैसे पुरानी मिल भी गयी
पुराना पुल भी गया
बुलबुल-ए-मौहल्ला भी गयी
और मजनूँ की असली औलाद
बकुल भी गया..

 

मुफ़्त की मय अब भी पीते हैं जेडी
लेकिन फ़ाकामस्ती रंग लाये
ऐसे तो कोई गुमान नहीं
ऐनक को कभी बदला जाए
इतने भोले अरमान नहीं
“अब चार दिनों का चूल्हा है
और बची खुची सी चक्की है
महिने भर का आटा लायें
जेडी ऐसे इंसान नहीं”

 

‘अबे तुम शे’र नहीं कहा करो’

“अरे खड़बुद्धि, ये चौपाई है
कम्बख़्त बरसों में आई है
लो! एक बनाना और ज़रा
ऐसे भी ख़स्ता जान नहीं ”

‘होशियारी झाड़ोगे महाराज
तो दारु नहीं पिलायेंगे कभी’
* * *
एक दिन चौराहे पर चीखकर उन्होंने कह दिया
“सुनो सुनो जे डी का ऐलान
सुनो सुनो
न हो हैरान
सुनो सुनो सब देकर कान
हुआ है ज्ञान
कि बेटा जेडी
कल ले लो समाधी”

 

उड़ गयी शहर में
चौबीसों घंटे पुलिस और
जागरुक जवान इन पर
नज़र रखते हैं

 

उनका खानापीना
दुरुस्त है आजकल
फल-फूल भी पहुँचाता है कोई
अंग्रेजी भी.
डॉक्टर घर लौटते देख आता है उन्हें
चायवाला पैसे नहीं माँगता

 

अखबार खड्डे पर चिपकाकर
कोयले से दयाबाई का स्केच
बना रहे हैं बड़ा सा–

 

मुझे पूरा अंदेशा है
कि जैसे ही स्केच पूरा होगा
जेडी अंकल समाधी ले लेंगे

 

और ये
उनके
और हमारे शहर के लिए
अच्छा ही होगा

 

#शनिवार_की_चाय. आज के वीडियो का उन्वान है – चुप हैं मुक्तिबोध

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

“NOTE: The views expressed here are those of the authors and do not necessarily represent or reflect the views of The Better India.”

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X