गोबर से शुरू किया कारोबार, बना रहे 20 तरह के इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स

products making from cow dung

मध्य प्रदेश के विजय पाटीदार, नीता दीप बाजपेई और अर्जुन पाटीदार ने मिलकर 'गोशिल्प इंटरप्राइजेज' की शुरुआत की है, जिसके जरिए वे गोबर से इको फ्रेंडली मूर्तियां और होम डेकॉर बना रहे हैं।

भारत में दूध अगर ‘सफेद सोना’ है, तो गोबर भी ‘हरा सोना’ कहा जाता है। क्योंकि जिस तरह दूध को प्रोसेस करके अलग-अलग तरह के उद्यम लगाए जा सकते हैं, वैसे ही गोबर से भी कई तरह के उद्यम शुरू किए जा सकते हैं। पिछले कुछ सालों में, सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ आम लोगों ने भी इस बारे में ध्यान देना शुरू किया है। इसलिए अब गोबर से खेतों के लिए खाद, रसोई के लिए बायोगैस और चूल्हे के लिए सिर्फ उपले नहीं बल्कि और भी कई अलग-अलग चीजें बनाई जा रही हैं।

मध्य प्रदेश के तीन युवाओं ने मिलकर गोबर से मूर्तियां, राखियां और होम डेकॉर का सामान बनाना शुरू किया है। उन्होंने अपने इस उद्यम को नाम दिया है- गोशिल्प इंटरप्राइजेज। 

कैसे आया आईडिया?

यह कहानी है भोपाल के रहने वाले विजय पाटीदार, नीता दीप बाजपेई और मंदसौर के अर्जुन पाटीदार की, जिन्होंने मिलकर इस उद्यम को शुरू किया है। दिलचस्प बात यह है कि फिलहाल इन तीनों के लिए यह स्टार्टअप उनका साइड बिज़नेस है, जिसे वह अपनी नौकरी या दूसरा कोई काम करते हुए कर रहे हैं। 

एनआईटी भोपाल से मास्टर्स करने वाले विजय, एक स्टार्टअप के साथ बतौर कंसलटेंट काम कर रहे हैं। वहीं, अर्जुन एक पशु चिकित्सक हैं और अपनी प्रैक्टिस करते हैं। नीता एक आर्टिस्ट हैं और अलग-अलग पेंटिंग्स और टेराकोटा की चीजें बनाती हैं। इन तीनों ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए अपने सफर के बारे में बताया। 

Cow Dung Products by Goship enterprises
गोबर से बनी चीजें

विजय ने बताया, “मेरा परिवार भले ही पिछले काफी सालों से भोपाल में रह रहा है। लेकिन हम आज भी अपने गांव से जुड़े हुए हैं। मैंने पढ़ाई के बाद कुछ समय बतौर सहायक प्रोफेसर काम किया। लेकिन मैं जैविक खेती करते हुए एक आत्मनिर्भर ज़िंदगी जीना चाहता था और इसलिए पिछले चार-पांच सालों से इस क्षेत्र में अपनी रिसर्च शुरू कर दी थी। मेरा मानना है कि जब आप कुछ नया करते हैं, तो हमेशा आपके पास आय के अलग-अलग विकल्प होने चाहिए, ताकि अगर आप एक में सफल न हो पाएं तो दूसरे से आपका घर चलता रहे।” 

कैसे पड़ी ‘गोशिल्प’ की नींव?

यही कारण था कि विजय जैविक खेती के साथ-साथ, इससे जुड़े अलग-अलग व्यवसायों पर भी रिसर्च कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने गौशालाओं का भी भ्रमण किया और जाना कि कैसे पशुधन के गोबर से भी अच्छी कमाई की जा सकती है। उन्होंने कहा, “हमने हमेशा सुना है कि गायों को गौशाला पहुंचा दीजिए, वहां उनकी अच्छी देखभाल होगी। लेकिन क्या हम कभी खुद गौशाला में जाकर देखते हैं कि क्या चल रहा है? कैसे हम गायों से मिलने वाले गोबर को ही इस्तेमाल करके गौशालाओं का खर्च आराम से निकाल सकते हैं।”

गौशालाओं के भ्रमण के दौरान ही विजय की मुलाक़ात अर्जुन और नीता से हुई। अर्जुन पहले से ही गौशालाओं से जुड़कर गोबर के उत्पाद जैसे खाद और धूपबत्ती पर काम कर रहे थे। वहीं, नीता कई बार गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों को कुछ न कुछ ट्रेनिंग देने के लिए आती थीं।

अर्जुन कहते हैं, “मैंने नागपुर में खादी ग्रामोद्योग से गोबर के अलग-अलग उत्पाद बनाना सीखा, ताकि इससे अच्छा रोजगार उत्पन्न हो सके। बतौर डॉक्टर काम करने के साथ-साथ, गौशालाओं से जुड़कर गांवों में महिलाओं और किसान समूहों को गोबर के रोजगार से जोड़ना शुरू कर दिया। इसी दौरान मैं विजय जी और नीता जी के संपर्क में आया। हमने आपस में विचार-विमर्श किया और ‘गोशिल्प’ की नींव रखी।” 

Team of Goshilp enterprises
शुरू किया गोबर से कारोबार

कम लागत, ज्यादा कमाई 

विजय कहते हैं, “मैंने 2020 से पूरी तरह से जैविक खेती से जुड़ने का फैसला किया था। लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण मैं गांव नहीं जा पाया। ऐसे में, मैंने एक स्टार्टअप के साथ जॉब शुरू कर दी। साथ ही, लॉकडाउन के दौरान हमने अपने उद्यम का काम भी शुरू किया। हम तीनों ने शुरुआत में सिर्फ 10-10 हजार रुपए की फंडिंग से काम शुरू किया।

हमने पहले छोटे-छोटे प्रोडक्ट्स जैसे स्वस्तिक, ओम, छोटी मूर्तियां आदि बनानी शुरू की और फिर धीरे-धीरे इन्हें मार्किट किया गया। दिवाली के मौके पर भोपाल में जगह-जगह लगे मेलों में अपनी स्टॉल लगाई, जहां हमारे प्रोडक्ट्स को अच्छी प्रतिक्रिया मिली। गोबर से बने हमारे इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स की कीमत 50 रु से 2000 रु तक है।” 

नीता कहती हैं कि उनका पायलट प्रोजेक्ट काफी सफल रहा। इसलिए उन्होंने अपने उद्यम को ‘गोशिल्प’ के नाम से रजिस्टर करा लिया।

बनाए रखना है जीरो-इन्वेस्टमेंट बिजनेस

उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य अपने बिज़नेस को जीरो-इन्वेस्टमेंट बनाए रखने का है। इसलिए हमने कहीं से कोई बड़ी फंडिंग नहीं ली है। बल्कि हर महीने अपनी बचत में से ही हम इसमें पैसे लगाते हैं। सबसे अच्छी बात है कि अब तक जो भी लागत लगी है, उसे वापस कमाने के साथ-साथ हमें 60 हजार रुपए का फायदा ही हुआ है। अगर कहें कि हमने कुल 60 हजार रुपए लगाए, तो हमारी कमाई लगभग डेढ़ लाख रुपए तक हुई है।”

Women making products from cow dung
महिलाओं को मिला रोजगार

उनके मुताबिक, सबसे ज्यादा खर्च उन्हें सांचे बनवाने के लिए करना पड़ा। उन्होंने अलग-अलग प्रोडक्ट्स के लिए सांचे तैयार कराए हैं, जिसमें उनकी ज्यादा लागत आई। लेकिन यह सिर्फ के बार की इन्वेस्टमेंट थी। अब वह कम से कम लागत में अच्छा कमा पा रहे हैं। साथ ही, 50 ग्रामीणों को उन्होंने रोजगार दिया हुआ है, जिसमें ज्यादातर महिलाएं हैं। अर्जुन ने कहा कि वह जिन दो-तीन गौशालाओं से जुड़े हैं, वहां पर महिला सहायता समूहों को गोबर की खाद या लकड़ी बनाने का काम दिया जाता है। 

इन महिला समूहों में से ही उन्होंने कुछ ऐसी महिलाओं को चुना, जो अच्छी चित्रकारी कर लेती हैं या किसी भी तरह की कलात्मक रुचि रखती हैं। इन महिलाओं को ‘गोशिल्प’ से जोड़कर नीता ने ट्रेनिंग दी और अब ये सभी महिलाएं उनके लिए लगभग 20 तरह के प्रोडक्ट तैयार करती हैं। 

बना रहे प्राकृतिक और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स 

गोशिप के सभी प्रोडक्ट्स प्लास्टिक और पीओपी जैसे हानिकारक चीजों से बने प्रोडक्ट्स का इको फ्रेंडली विकल्प हैं। क्योंकि उनके प्रोडक्ट्स में गोबर के अलावा और भी जो सामग्री इस्तेमाल होती हैं, वह सभी पर्यावरण के अनुकूल और प्राकृतिक हैं। इस प्रक्रिया के बारे में अर्जुन ने बताया, “सबसे पहले गोबर के उपले/कंडे बनाए जाते हैं। हमारी कोशिश है कि हम सबसे ज्यादा उपले सर्दियों के मौसम में बनाएं। क्योंकि इस मौसम की धूप में सूखने वाले उपलों की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी होती है। इन उपलों के सूखने के बाद, इन्हें पलवराइज कर पाउडर बनाया जाता है। फिर इसे बारीक छननी से छाना जाता है, ताकी गुणवत्ता में कोई कमी ना रहे।”

इस पाउडर को छानने के बाद, इसमें ग्वार गम और मैदा लकड़ी का पाउडर मिलाया जाता है। ये दोनों ही प्राकृतिक चीजें हैं और अच्छे बाइंडिंग एजेंट का काम करते हैं। इन तीनों चीजों को अच्छे से मिलाकर पेस्ट बनाया जाता है। इस पेस्ट को सांचों में डालकर प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। तैयार प्रोडक्ट्स को सूखाने के बाद, ताजा गोबर से फिनिशिंग दी जाती है और फिर हर्बल रंगों से सजाया जाता है।

प्राकृतिक होने के साथ-साथ, ये प्रोडक्ट्स मजबूत भी होते हैं, जो गिरने पर टूटते नहीं हैं और कई सालों तक आपके घर में रह सकते हैं। अगर कभी आपको इन्हें डीकम्पोज भी करना हो, तो आप इनसे आसानी से खाद बना सकते हैं।  

Products made from Cow Dung
गोबर से बन रहे खूबसूरत उत्पाद

ज्यादा मुनाफा नहीं, ज्यादा रोजगार देना है लक्ष्य

अर्जुन का कहना है कि उन्हें अब तक लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने दिवाली और जन्माष्टमी के मौके पर अच्छा कारोबार किया। उन्होंने कहा, “फ़िलहाल, हमारा फोकस बहुत ज्यादा मुनाफे पर नहीं है। हम चाहते हैं कि इस काम को कम से कम लागत में करते हुए हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे सकें। साथ ही, ग्रामीण अंचल में रहने वाले लोगों के लिए एक सस्टेनेबल बिज़नेस मॉडल बना सके। अगर बड़े स्तर पर यह काम पहुंचेगा, तो प्रोडक्ट्स की कीमत भी कम होगी और कमाई भी बढ़ेगी।” 

बहुत से लोग जिस गोबर को कचरा समझकर इसे खाली जगहों में फेंकते रहते हैं, उनके लिए गोशिल्प एक बेहतरीन उद्यम का विकल्प दे रहा है। 

विजय कहते हैं कि अगर कोई यह काम करना चाहता है, तो उनकी टीम उन्हें ट्रेनिंग भी दे सकती है। अगर आप इस उद्यम के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो 9977555385 या 89827241105 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

तस्वीर साभार: विजय पाटीदार और अर्जुन पाटीदार

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