चेन्नई के अन्ना नगर बी सेक्टर स्थित सरोजा थियागराजन का आवास शहर के अन्य घरों से काफी अलग है। यह घर प्रकृति के बेहद करीब है। पूरे परिसर में आपको अलग-अलग प्रजाति के पेड़-पौधे देखने को मिलेंगे।
उनके घर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नजर पड़ती है खूबसूरत शाखाओं से घिरे बिल्डिंग के आलीशान मुख्य भाग पर और यही कुछ दूर पर लाल रंग के फूलों वाले जंगल भी घर की सुन्दरता में चार चांद लगा देते हैं। 80 वर्षीया सरोजा ने इन फूलों को अपने जीवन के शुरूआती दिनों में लगाया था।
परिसर में प्रवेश करते ही रंगीन मछलियों और सफेद वाटर लिली (निम्फिया नौचली) के साथ तालाब में कमल के फूलों पर आपकी नजर टिकी रह जाएगी। बगीचे में लगे गुड़हल और एडेनियम की अनूठी किस्मों से लेकर बरामदे की ग्रिल्स से लटके जार और हर कोने में गमले में लगे कई तरह के पौधे आँखों को सूकून देते हैं।
यह 16 साल की कड़ी मेहनत और धैर्य का एक सुखद नतीजा है। यह सब लगभग 60 साल पहले शुरू हुआ जब वह अपनी शादी के बाद चेन्नई आई थी।
सरोजा ने द बेटर इंडिया को बताया, “16 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई और मैं अपने पति के साथ चेन्नई चली गई। उस समय हम आईसीएफ (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) कॉलोनी के पास रह रहे थे। वहाँ सीमित जगह में छोटे-छोटे डिब्बों में हमने पौधे लगाए। तब से लेकर अब तक इस घर में 500 से अधिक पौधे लगा चुकी हूं।”
अन्ना नगर, चेन्नई की गार्डन क्वीन
तमिलनाडु के नागापट्टिनम के पास कीज़ वेलुर में जन्मीं सरोजा ने बताया कि परिसर में इस तरह पेड़-पौधों को लगाने में वर्षों लगे हैं। उन्होंने कहा, “मैं एक ऐसे परिवार में पली-बढ़ी हूँ जिसकी जड़ें हमेशा मिट्टी से जुडीं थीं। इसलिए कृषि और इन सभी चीजों से मेरा खास लगाव रहा है। इसके अलावा मेरे एक शिक्षक का मानना था कि पर्यावरण के बारे में जागरूकता संपूर्ण शिक्षा के लिए जरूरी है, इसलिए वह नियमित रूप से मुझे बागवानी में शामिल करने लगे। मुझे लगता है कि यहीं से मेरी रुचि एक जुनून में बदली और मेरी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही आज मुझे यह पहचान मिली है।”
जैसे-जैसे साल बीतते गए सरोजा का जुनून बढ़ता गया और उनके पति भी उनका साथ देने लगे। चेन्नई निवासी सरोजा कहती हैं, “सेवानिवृत्ति के बाद वह चाहते थे कि मैं इसे गंभीरता से लूँ। हर महीने हम पौधों के लिए एक निर्धारित राशि अलग रखते थे। मैं पौधों के बारे में और अधिक सीखते रहना चाहती थी। इसलिए मैं शहरी बागवानी के बारे में अधिक जागरूकता फैलाने और चर्चा करने के लिए हर साल गार्डन पार्टी आयोजित करती हूँ।”
आज, वह इस क्षेत्र के प्रसिद्ध बागवानी विशेषज्ञों में से एक हैं और ऑर्गेनिक टैरेस गार्डनिंग (ओटीजी) की एक प्रमुख सदस्य हैं जो जैविक बागवानी के शौकीन लोगों का समूह है। इसकी शुरूआत लगभग एक दशक पहले खेती और बागवानी की जैविक तकनीक के बारे में आवश्यक जानकारी फैलाने के इरादे से की गई थी।
“मुझे अपने पौधों की वजह से कभी अकेलापन महसूस नहीं होता“
सरोजा कहती हैं, “मेरे पास एडेनियम की 100 से अधिक किस्में, 10 किस्मों की सब्जियां और साग, बोनसाई, गुलाब और 20 किस्मों के गुड़हल के पौधे हैं।
मेरे बगीचे में गिरे हुए गुड़हल के फूलों को लेने अक्सर बॉटनी पढ़ने वाले छात्र और आस-पड़ोस के स्कूलों के शिक्षक आया करते हैं। मैं चाहती हैं कि ये सभी मेरे घर आएं ग्रीन होम का दौरा करें।”
उन्होंने अपने घर में एक कंपोस्टिंग सेक्शन भी बनाया है जिसमें पौधों के लिए जैविक खाद बनाने के लिए गीले कचरे और बगीचे के कचरे का उपयोग किया जाता है।
सरोजा कहती हैं, “पौधों के बारे में लोगों को बताना और शिक्षित करना मुझे उत्साहित करता है।”
2015 में, सरोजा को बागवानी में उनके योगदान के लिए तमिलनाडु बागवानी विभाग पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बाद में 2019 में, उन्हें अन्ना यूनिवर्सिटी में लक्ष्मी ऑर्गेनिक अवार्ड मिला।
उन्होंने कहा, “मेरे पति का 2012 में निधन हो गया। मेरे बच्चे बाहर रहते हैं। लेकिन, मैं अपने पौधों की वजह से कभी अकेला महसूस नहीं करती हूँ। मुझे पता है कि वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे।”
मूल लेख- ANANYA BARUA
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