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‘जहाँ चाह, वहाँ राह’ यह कहावत आपने बहुत बार सुनी होगी, लेकिन झारखंड स्थित जरमुंडी ब्लॉक के राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, डुमरथर के प्रिंसिपल डॉ. सपन कुमार ने इसे सच कर दिखाया है। उन्होंने जब देखा कि कोरोना संक्रमण की आशंका को दखते हुए बच्चे विद्यालय नहीं आ पा रहे हैं और ऑनलाइन शिक्षा पाने के लिए उनके पास स्मार्ट फोन और बेहतरीन मोबाइल नेटवर्क जैसे संसाधन नहीं हैं, तो उन्होंने स्कूल को ही उनके घर तक ले जाने का फैसला कर लिया।
अभिभावकों की इजाजत से उनके घरों की दीवार पर थोड़ी-थोड़ी दूरी के साथ ब्लैक बोर्ड बनवा दिए गए, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके। इन्हीं ब्लैक बोर्ड पर छात्र, शिक्षक के पढ़ाए पाठ लिखते हैं और सवालों के जवाब भी लिखते हैं। डॉ. सपन कुमार खुद कम्युनिटी लाउड स्पीकर के ज़रिए बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं।
डुमरथर में एक किलोमीटर की परिधि में चार जगह चल रही इन विशेष कक्षाओं में इस वक्त 295 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
सपन कुमार ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद हो गए तो बच्चों की शिक्षा प्रभावित होने लगी। कोरोना संक्रमण की वजह से यह कुछ तय नहीं था कि स्कूल कब तक खुलेंगे। दूसरे अधिकांश बच्चों के पास ऐसे संसाधन नहीं थे, जिनसे ऑनलाइन पढ़ाई संभव हो पाती। ऐसे में 'शिक्षा आपके द्वार' का आइडिया दिमाग में आया।”
सपन कुमार कहते हैं कि विचार तो मन में आ चुका था, लेकिन इसे सभी को बताना था और बच्चों के अभिभावकों की सहमति और सहयोग की आवश्यकता थी। उन्होंने कहा, “सबसे पहले मैंने टीचर्स से अपना विचार साझा किया। इसके बाद सभी अभिभावकों और ग्रामीणों की बैठक बुलाई और उन्हें अपने इरादे से अवगत कराया। अभिभावक बच्चों की पढ़ाई तो चाहते थे, लेकिन यह नहीं चाहते थे कि बच्चे कोरोना संक्रमण के शिकार बने। इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाना बेहद आवश्यक था।”
सारे मसलों पर ठीक तरह से सोच विचार के बाद तमाम अभिभावक और ग्रामीण सपन कुमार का साथ देने के लिए तैयार हो गए। यहाँ तक कि गाँव के पढ़े लिखे युवक-युवतियों ने भी इस अभियान में साथ आने और छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में सहयोग देने की बात कही और 'शिक्षा आपके द्वार', समुदाय के साथ अभियान का शुभारंभ हो गया।
दूरस्थ जनजातीय इलाके में स्थित गाँव में अपने इनोवेशन से शिक्षा प्रदान कर रहे 44 वर्षीय सपन कुमार के मुताबिक सामुदायिक सहयोग से इन कक्षाओं को चलते हुए तीन महीने हो गए हैं। छोटे बच्चों का पठन-पाठन डुमरथर के ऊर्जा से भरे युवाओं के हवाले है। स्कूल के चार टीचर इन कक्षाओं को पढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। वह बताते हैं कि सुविधा को देखते हुए कक्षा एक और दो के बच्चों को उनके घर के सबसे नजदीक बैठाया जाता है। वह कहते हैं कि जब तक कोरोना संक्रमण काल चल रहा है वह इन कक्षाओं को इसी तरह संचालित करेंगे या फिर जब तक सरकार इन कक्षाओं को बंद करने के लिए नहीं कहती, तब तक यह इसी प्रकार संचालित होती रहेंगी।
दुमका के डीसी राजेश्वरी बी ने सपन कुमार की पहल की तारीफ की है। उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर एकाउंट से ट्वीट किया है। आज देश भर में सपन कुमार के इस कदम की सराहना हो रही है।
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सपन कुमार का कहना है कि बच्चे देश का भविष्य हैं और उनकी पढ़ाई पर किसी तरह की आंच न आए, इसी बात का ख्याल रखा है। वह कहते हैं, “मुझे खुशी इसी बात की है कि बच्चों की पढ़ाई किसी भी स्थिति में प्रभावित नहीं हुई। खऱाब वक्त में समस्या के बारे में शोर मचाने से कुछ नहीं होता। इससे बेहतर है कि उसका हल निकाला जाए और उसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। हमने बस हल निकालने की कोशिश की है।”
( डॉ. सपन कुमार से उनके मोबाइल नंबर 7004176951 पर संपर्क किया जा सकता है)
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