23 वर्षीय विशाल श्रीवास्तव, सिंगरौली के रहनेवाले हैं और उनकी माँ एक स्कूल टीचर हैं। बड़े ही सादगी से उनकी माँ ने उन्हें बड़ा किया है। बचपन से विशाल आस-पास की समस्याओं को देखते हुए बड़े हुए हैं। इसलिए वह हमेशा सोचते रहते थे कि कैसे अपने स्तर पर वह छोटी-छोटी समस्याओं को हल कर सकते हैं? अपनी इसी सोच के कारण वह पौधे लगाने और हरियाली फैलाने (Greenery) जैसे कुछ न कुछ काम करते भी रहते हैं।
ग्वालियर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान, जब वह साल 2019 में मराठवाड़ा के कई सूखा प्रभावित गावों में गए, तो उन्होंने वहां के लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश की और कुछ लोकल NGO के साथ मिलकर मदद के काम में जुट गए।
विशाल बताते हैं, “तब अक्सर मराठवाड़ा की ख़बरे पढ़ने को मिलती थीं। जब मैंने वहां जाकर उन इलाकों के हालात देखे, तो मैंने सोचा कि किस तरह मैं अपने तरफ से कुछ मदद कर सकता हूं और कुछ NGO से सम्पर्क भी किया। मैंने किसानों की मदद के लिए अपने कॉलेज का एक ग्रुप बनाया था और करीब 15 से 20 हजार रुपये जमा भी किए थे।”
कैसे शुरू हुआ पौधे लगाने (Greenery) का सिलसिला?
जब विशाल मराठवाड़ा में काम कर रहे थे, उसी समय वह ‘प्रयास’ नाम के एक NGO से भी जुड़े। यह संस्था मुख्यतः पौधरोपण (Planting Trees) का काम करती है, जिसके लिए वह मियावकी तकनीक अपनाते हैं। इसी NGO के साथ जुड़ने के बाद, विशाल ने मियावाकी तकनीक भी सीखी।
विशाल को यह तकनीक इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इसपर ही ध्यान देना शुरू किया। वह घूम-घूमकर सरकारी ऑफिस में मियावाकी तकनीक की विशेषताएं बताने लगे।
विशाल खुद ही ऐसी जगह देखते थे, जहां कम पौधे हैं। फिर वहां का प्लान तैयार करते थे और उसे कलेक्टर ऑफिस तक ले जाते थे। चूँकि वह यह काम अपनी ख़ुशी से करते हैं, इसलिए इसके लिए वह कभी पैसों की मांग भी नहीं करते। धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना शुरू हुआ और एक के बाद एक प्रोजेक्ट्स उन्हें मिलने लगे।
उन्होंने, पिछले दो सालों में जबलपुर, कटनी और ग्वालियर में करीब डेढ़ लाख पेड़ लगवाए हैं। फिलहाल वह खंडवा, छतरपुर, शिवपुर में भी पेड़ लगाने की तैयारी कर रहे हैं। विशाल बताते हैं, “हम पेड़ लगाते समय कई बातों का ध्यान देते हैं, जैसे कुछ पौधे सिर्फ हरियाली (Greenery) के लिए लगाते हैं। वहीं, कुछ फल वाले पौधे लगाते हैं, जिससे आस-पास की महिलाओं को रोज़गार मिल सके और पौधों की देखभाल भी ठीक से हो सके। हम ग्रामीण इलाकों में ज्यादा पौधे लगाते हैं, जिसमें पंचायत से भी हमें सहयोग मिल जाता है।”
पढ़ाई के साथ कैसे करते हैं यह काम?
आसान शब्दों में कहें, तो विशाल सरकारी प्लांटेशन प्रोजेक्ट्स के लिए फ्रीलांसिंग का काम कर रहे हैं। वह बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि अब तक उन्होंने जितने भी पौधे लगाए हैं, सभी पौधे अच्छे बड़े पेड़ हो गए हैं और शायद ही कोई पौधा खराब हुआ हो।
पौधे लगाने (Greenery) के साथ-साथ विशाल अपने आस-पास के गावों और स्कूलों की दशा सुधारने के लिए, देश की बढ़िया से बढ़िया NGO को सम्पर्क करते हैं। हाल ही में वह गुवाहाटी की ‘अक्षर फाउंडेशन’ नाम की एक NGO के साथ मिलकर, मध्यप्रदेश के 100 स्कूलों को डिजिटलाइज़ करने में मदद कर रहे हैं। इसके ज़रिए वह स्कूल में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) को सुचारु रूप से चलाने की कोशिश करेंगे।
कई कंपनियों ने दिया है जॉब का ऑफर
विशाल कहते हैं, “मुझे पहले से इंजीनियरिंग में ज्यादा रुचि नहीं थी। लेकिन परिवारवालों के लिए मैंने एडमिशन ले लिया था और अब मुझे ग्रासरुट स्तर पर काम करने में बड़ा मज़ा आ रहा है। मुझे यह देखकर बड़ी ख़ुशी होती है कि जिस दो फ़ीट के पौधे को मैंने लगाया था, वह 15 फ़ीट का बड़ा पेड़ हो गया और हरियाली (Greenery) फैला रहा है।”
फिलहाल, विशाल को कैंपस प्लेसमेंट के तहत, तीन से चार कंपनियों में नौकरी भी मिल चुकी है, जिसमें से वह ऐसी नौकरी का चयन करने वाले हैं, जहां उन्हें पौधे लगाने का समय भी मिल सके।
विशाल हमेशा कोशिश करते हैं कि अपने काम से स्थानीय लोगों को भी रोजगार दे सकें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सरकारी नीतियों का फायदा पंहुचा सकें।
आने वाले समय में विशाल अपनी नौकरी के साथ एक कंसल्टेंसी फर्म के जैसे भी काम करना चाहते हैं, जिससे वह सरकारी अफसरों की ग्रासरुट लेवल पर नीतियों को लागू करने में मदद कर सकें।
संपादनः अर्चना दुबे
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