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हरा-भरा वातावरण, शुद्ध हवा और जैविक खाना, इंसान की सेहत के लिए कितना फायदेमंद है, इसका अंदाजा आपको गुजरात के पद्माकर फरसोले से मिलकर हो जाएगा। उनकी 61 साल की बेटी शीला फरसोले, अपने पिता के बारे में बताती हैं, "आज भी उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। सालों से, वह हमारे लिए घर में ही ताज़ी फल-सब्जियां उगाने (Home Vegetable Gardening) का काम कर रहे हैं।" हालांकि उनके घर में कुछ सालों से एक माली भी आ रहा है, ताकि गार्डनिंग में उनकी मदद हो पाए।
लेकिन इस उम्र में भी गार्डन की सारी जिम्मेदारी वह खुद ही उठाते हैं। चाहे वह सब्जियां तोड़ना हो, कम्पोस्ट तैयार करना हो या फिर पौधे की कटाई का ध्यान रखना। शीला खुद भी बॉटनी पढ़ाती थीं। वह कहती हैं, "मेरे बॉटनी पढ़ने के पीछे भी मेरे पिता का हाथ रहा है। उनसे पेड़-पौधों के बारे में सुन-सुनकर ही मेरी रूचि इस विषय में हो गई थी। हालांकि उनको इस विषय में आज भी मुझसे ज्यादा ज्ञान है।"
30 साल पुराने इस गार्डन में हैं हज़ारों पौधे
इस 30 साल पुराने गार्डन के कारण, उनके घर में बिल्कुल प्राकृतिक माहौल बना रहता है। घर में लगे चीकू, सीताफल, सेतुर (शहतूत), अनार, अंजीर, अमरूद और जामुन जैसे फलों के पेड़ पर कई पक्षी आकर बैठते हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए पद्माकर बताते हैं, "यूँ तो मुझे हमेशा से पौधों का शौक़ रहा है। हालांकि किराये के मकान में कभी ज्यादा पौधे लगाने का मौका नहीं मिला। लेकिन साल 1985 में, जब मैंने खुद का घर बनवाया, तब जाकर मैं ढेरों पौधे लगा पाया।"
उनके 425 स्क्वायर यार्ड के प्लॉट के तकरीबन आधे हिस्से में घर है और आधे में गार्डन, जिसमें उन्होंने हजारों पौधे लगाए हैं। बड़े पेड़ों के अलावा, उन्होंने कैक्टस की कई किस्में, फूलों के पौधे, अंगूर और मौसमी सब्जियों की लताएं आदि भी लगाई हैं। उनका मानना है कि इस तरह के सुन्दर और हरे-भरे वातावरण में रहने से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।
बचपन से मिली थी बागवानी की ट्रेनिंग
पद्माकर, वैसे तो किसान के बेटे हैं, लेकिन उनकी पूरी पढ़ाई वर्धा जिले के गाँधी आश्रम 'सेवाग्राम' में हुई थी। इसलिए उन्हें खेतों में काम करने का मौका कभी नहीं मिला। वह बताते हैं, "हमें सेवाग्राम में श्रम से जुड़ी कई गतिविधियां कराई जाती थीं, जिसमें बागवानी भी शामिल थी। इसलिए बचपन से मिट्टी तैयार करने और पौधे रोपने जैसी जानकारियां तो मुझे थीं हीं।"
पेशे से शिक्षक रहे पद्माकर ने रिटायरमेंट के बाद अपना सारा समय बागवानी को देने का फैसला किया। 75 साल की उम्र तक उन्होंने कोई माली भी नहीं रखा था। वह खुद ही, इतने बड़े बगीचे को संभालते थे। उन्हें फूलों का बेहद शौक़ है, इसलिए उन्होंने अपनी बागवानी की शुरुआत भी फूलों के पौधों से ही की थी। जब भी वह कोई नई किस्म का पौधा देखते, तो उसके बारे में जानकारी लेते और खुद ही इधर-उधर से बीज आदि लाकर उसका छोटा पौधा तैयार करते।
उनके घर में आज 15 किस्मों के फूलों के पौधे हैं। इसके अलावा, उन्होंने पीपल, बबूल जैसे पौधों की बोनसाई भी तैयार की है। वह कहते हैं, "मैंने आम का पौधा भी लगाने का प्रयास किया था, लेकिन उसमें कीड़े लग गए। इसलिए मेरे पास आम का पौधा नहीं है। बाकि मैंने जो भी पौधा लगाया, मुझे उसमें हमेशा सफलता मिली है।"
सालभर में तैयार करते हैं, 1000 किलो कम्पोस्ट
उनके गार्डन में, सभी सब्जियां बिल्कुल जैविक तरीके से उगाई जाती हैं। जिसके लिए खाद भी वह खुद ही तैयार करते हैं। घर से निकले कचरे के साथ-साथ, वह सोसाइटी के पेड़ों से गिरे पत्तों का उपयोग भी खाद बनाने में करते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी सोसाइटी में लगभग 100 पेड़ लगे हैं। पेड़ से गिरे पत्तों को जमा करने के लिए, उन्होंने सोसाइटी में ही एक गड्ढा बनवाया है, जिसमें वह ये सारे पत्ते इकट्ठा करके कम्पोस्ट बनाते हैं।
घर के किचन से निकले गीले कचरे से अलग कम्पोस्ट तैयार होती है। इस तरह, वह साल में 1000 किलो कम्पोस्ट तैयार कर लेते हैं। उनका कहना है, "खुद कम्पोस्ट तैयार करने से, साल में 5000 रुपये की बचत होती है। क्योंकि मुझे बाहर से कुछ भी नहीं लेना पड़ता, ऊपर से सोसाइटी में सफाई भी रहती है।"
गांधीवादी विचारों से हैं प्रेरित
पद्माकर, बचपन से ही सेवाग्राम में रहे हैं। जहां, उन्हें गाँधीजी के विचारों को जानने का मौका मिला। जिसकी वजह से उन्हें, हमेशा कुछ न कुछ करते रहना अच्छा लगता है। वह कहते हैं, "हमें आश्रम में सिखाया जाता था कि खाली कभी नहीं बैठना। यही वजह है कि मैं हमेशा नई चीज़ें सीखता रहता हूँ। रिटायर होने बाद भी मैं कई संस्थाओं के साथ जुड़ा था। लेकिन पिछले 10 सालों से मैं अपना सारा समय बागवानी को ही दे रहा हूँ।" इस उम्र में भी वह नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। पिछले साल उन्होंने स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाया था, जिसमे ढेरों फल उगे थे।
उनके घर सीताफल और केले इतने ज्यादा उगते हैं कि वह इसे लोगों में बाँट देते हैं। वह, इन पौधों को अपना सच्चा दोस्त बताते हैं। क्योंकि ये बिना ज्यादा अपेक्षा के आपको सालभर फल-फूल-सब्जियां और ताज़ी हवा देते हैं।
आशा है, आपको भी पद्माकर फरसोले की बागवानी से प्रेरणा जरूर मिली होगी। अगर आप भी उनके जैसे तंदुरुस्त और खुशहाल जीवन चाहते हैं, तो अपने घर में कम से कम एक पौधा जरूर लगाएं।
हैप्पी गार्डनिंग!
संपादन- अर्चना दुबे
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