आज हम आपको उस 12 साल के बच्चे से रूबरू कराएंगे, जिसने बाढ़ में फंसे एंबुलेंस को रास्ता दिखाया। पुल पर पानी भर आया था और ड्राइवर को रास्ता समझने में परेशानी हो रही थी। ऐसे में, 12 साल के वेंकटेश ने जान की परवाह न करते हुए गाड़ी को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाया। इस साहसिक कार्य के लिए गणतंत्र दिवस (2020) के मौके पर वेंकटेश को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
"एंबुलेंस फंसा हुआ था और ड्राइवर ने मदद के लिए पुकारा। मैंने वही किया जो मुझे सही लगा।" - वेंकटेश
वेंकटेश जब बाढ़ के कारण पानी से भरे पुल पर चल रहे थे तो पानी उनकी कमर तक पहुंच चुका था। लेकिन, वीरों की तरह अपने कदम आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ाते हुए, वह एंबुलेंस पर सवार ड्राइवर को दिशा दिखा रहे थे। इस पल को याद करते हुए वह कहते हैं,
"मैं हांफते हुए खुद से कह रहा था - 'बस पहुंच गया, गिरना नहीं है। मैं अम्मा को आज की घटना के बारे में नहीं बताऊंगा, मुझे रास्ता पता है और बस थोड़ी सी दूरी तय करनी है....नहीं, मैं नहीं गिरूंगा'।"
यह घटना 11 अगस्त, 2019 की थी। इस घटना के बारे में बताते हुए वेंकटेश आगे कहते हैं, " मैं इस पुल से कई बार गुज़र चुका था और मुझे रास्ते की जानकारी थी। मुझे सिर्फ इस बात का ख्याल रखना था कि मैं एंबुलेंस के ज्यादा नज़दीक न रहूँ ताकि गलती से अगर इसका बैलेंस बिगड़ जाता तो मुझे परेशानी हो सकती थी।"
कर्नाटक के रायचुर जिले के हीरेरायाकुंपी गाँव में रहने वाले वेंकटेश ने तब चैन की सांस ली जब उन्होंने पुल के दूसरे छोर में कुछ लोगों को हाथ हिलाते देखा। एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र पर गाड़ी को दिशा दिखाने का मतलब था कि आपको भी नहीं पता कि आप कहाँ चल रहे हैं और वो भी एक पुल पर। एंबुलेंस को सुरक्षित तरीके से पार करने के बाद ही वेंकटेश के कदम रुके। एंबुलेंस में एक शव के साथ मृत व्यक्ति के रिश्तेदार और 6 बच्चे भी थे।
आसपास के लोगों ने वेकंटेश की तारीफ की और फिर वह अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया। लेकिन उसे क्या पता था कि उसके इस कारनामे का किसी ने वीडियो बना लिया था और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया था। वीडियो थोड़ी देर बाद ही वायरल हो गया और कुछ दिनों के बाद कई मीडिया चैनलों ने वेंकटेश को हीरो घोषित कर दिया। इसके बाद 26 जनवरी, 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नई दिल्ली में वेंकटेश को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाज़ा। IAS ऑफिसर पी. मणिवनन, जो श्रम विभाग के सेक्रेटरी हैं उन्होंने वेकंटेश को महिला एवं बाल विकास, भारत सरकार के तहत वीरता पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था। पी. मणिवनन ने लेटर में लिखा था -
"मुझे लगता है कि इस छोटे से छात्र को इसकी वीरता के लिए प्रोत्साहन मिलना चाहिए और इसलिए मैं वीरता पुरस्कार के लिए इसकी सिफारिश करता हूँ। मुझे उम्मीद है कि मेरी सिफारिश पर गंभीरता से निर्णय लिया जाएगा।"
वेंकटेश की हिम्मत ने उसे दोस्तों, परिवार और समाज का हीरो बना दिया था। लेकिन हीरो बनने के बाद भी उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। वह आज भी अपने दोस्तों के साथ उसी तरह क्रिकेट खेलता है और भाई-बहनों से खेल-खेल में झगड़ता भी है।
अपनी तारीफों को विनम्रता से नकारते हुए वेंकटेश ने द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए कहा -
"मैं इस अवार्ड के लिए आभारी हूँ लेकिन मुझे अभी तक नहीं पता मैं इसके लिए क्यूँ चुना गया। मैंने जो किया उसमें खतरा था पर मैंने कुछ अलग नहीं किया। ड्राइवर ने मदद मांगी और मुझे जो सही लगा मैंने किया।"
वेंकटेश ने इस घटना का जिक्र अपने माता-पिता से नहीं किया था। टीवी पर जब ये खबर दिखाई दी तब उसके माता-पिता को इस बारे में पता चला।
वेंकटेश के पिता देवेंद्र कहते हैं, "वेंकटेश अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था क्यूंकि गाँव में आई बाढ़ और लगातार बारिश के कारण स्कूल बंद कर दिया गया था। उसने अपनी माँ देवम्मा से कहा था कि वह अपना ख्याल रखेगा और आसपास ही रहेगा। ये उसकी नादानी थी क्यूंकि कोई भी दुर्घटना हो सकती थी। सुरक्षा सबसे जरूरी चीज़ है और उसने जो किया वह बाकी बच्चों के लिए सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखकर एक गलत उदाहरण साबित हो सकता है।"
जब लोगों को घर से बाहर तक निकलने के लिए मना कर दिया गया था और उस वक्त वेंकटेश ने बाहर जाकर जोखिम उठाया तो उनके माता-पिता को घबराहट हुई और उन्हें ये बात अच्छी नहीं लगी। लेकिन कुछ ही दिनों में वे भी अपने बेटे के काम की सराहना करने लगे। वेंकटेश को वीरता पुरस्कार मिलने पर वह कहते हैं,
"हम इस बात पर गर्व महसूस कर रहें हैं कि वेंकटेश ने किसी अनजान की मदद करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा। आजकल ऐसी बातें कम ही देखने को मिलती हैं जब कोई जोखिम उठाकर निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करे।"
वेंकटेश के माता-पिता की बात सच तो है कि आजकल कम ही लोग मदद के लिए आगे आते हैं लेकिन मदद से पहले सुरक्षा के बारे में सोचना सबसे ज्यादा जरूरी है। वेंकटेश ने यह कथन साबित किया कि "बच्चे मन के सच्चे होते हैं।"
संपादन - मानबी कटोच
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