आमदनी बहुत नहीं, पर लावारिस बेज़ुबानों को 20 वर्षों से खाना खिलाते हैं सुजीत

बेजुबानों की भावना हम नहीं समझेंगे तो फिर कौन सुनेगा। हमने उन्हें प्रकृति के विपरित मनुष्य पर निर्भर बना दिया है। आवारा जैसा नाम दे दिए हैं, जो कि बहुत ही गलत भाव है।

आमदनी बहुत नहीं, पर लावारिस बेज़ुबानों को 20 वर्षों से खाना खिलाते हैं सुजीत

कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। इसका असर भारत पर भी हुआ है। सोशल डिस्टेंशिंग को ध्यान में रखते हुए एहतियातन पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई, जिसकी अंतिम तारीख फिलहाल तीन मई है। इस दौरान अगर सबसे ज्यादा दिक्कत किसी को हो रही है तो वे हैं बेजुबान जानवर।

सड़कों पर लोगों की आवाजाही बंद है इस कारण से भटकने वाले इन जानवरों को खाना भी नसीब नहीं हो रहा है। लेकिन बिहार के दरभंगा जिला के सुजीत चौधरी को इनकी फिक्र है और वह सड़कों पर इन बेजुबानों के लिए खाना लेकर निकल जाते हैं।

bihar man serves stray animals
सुजीत चौधरी

20 वर्षों से कर रहे हैं बेसहारा पशुओं की सेवा

दरभंगा जिला के दुलारपुर गांव निवासी सुजीत चौधरी यह काम कोई पहली बार नहीं कर रहे हैं। वह इसे मानवता मानकर लगभग 18-20 वर्षों से इस काम में जुटे हैं। उनका मानना है कि मनुष्य ने पशुओं को उपभोग का साधन बना दिया है। हम प्रकृति के स्वभाव के विपरित इनका इस्तेमाल करते हैं। मनुष्य वर्षों पहले अपनी जरूरत के हिसाब से जानवरों को जंगल से ले आया। जैसे जिस कुत्ते का काम शिकार करना था, उसे हमने पालतू बना दिया। गाय को हमने अपने उपभोग के लिए खूंटे से बांध दिया। सुजीत का मानना है कि हम अगर उन्हें ले आए हैं, तो उनकी देखभाल भी हमारा ही कर्तव्य है। और मैं लगभग दो दशक से वह यही करने की कोशिश कर रहे हैं।

‘किसी को भी खाना खिलाना हमारा पहला कर्तव्य है’

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सुजीत चौधरी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मनुष्य सामाजिक जीव है और मानवता हमें सिखाती है कि किसी भी जीव की देखभाल कराना हमारा धर्म है और उसे खाना खिलाना पहला कर्तव्य। मैं बस मानवता का पालन करते हुए कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हूं। बेजुबानों की भावना हम नहीं समझेंगे तो फिर कौन सुनेगा। हमने उन्हें प्रकृति के विपरित मनुष्य पर निर्भर बना दिया है। आवारा जैसा नाम दे दिए हैं, जो कि बहुत ही गलत भाव है।“

पशु तस्करी के खिलाफ लगातार काम

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सुजीत कई राज्यों में पशुओं की तस्करी से लेकर सेवा का काम करते हैं। सुजीत चौधरी का कहना है कि वह बीएसएफ और एसएसबी के साथ मिलकर पशु तस्करी के खिलाफ लगातार काम करते हैं। वह बिहार, बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में पशुओं के लिए काम करने के लिए जाते हैं। उनका कहना है कि अभी तक उन्होंने बीएसफ और एसएसबी के साथ मिलकर करीब 1.5 से 2 लाख गौवंश, 7-8 हजार कुत्तों और लगभग 600 ऊंटों की रक्षा की है। वह पशुओं की रक्षा के साथ-साथ स्थानीय लोगों में जागरुकता फैलाने का भी काम करते हैं। रेस्क्यू किए गए जानवरों की देखभाल में उन्हें स्थानीय लोगों की मदद मिलती है।

पहले लोगों से मदद मांगने में शर्म आती थी

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उनका कहना है कि इस सभी काम के लिए जाहिर सी बात है कि पैसों की जरूरत होती है। पहले तो हमें लोगों से मदद मांगने में शर्म आती थी। लेकिन फिर धीरे-धीरे कुछ लोगों का साथ भी मिला। मेरे पास जो भी पैसे होते मैं इस काम में लगा देता हूं। जानवरों की देख-रेख के लिए शेल्टर होम की जरूरत थी, लेकिन मैंने पहले से बने शेल्टर होम का ही इस काम में इस्तेमाल किया। पहले महीने में एक-दो केस आते थे, लेकिन आज स्थिति बदली है। मेरे पास सुझाव मांगने के लिए दूसरे राज्यों से भी कई फोन आते हैं। मैं रोजाना तकरीबन आठ से दस नए केस पर काम करता हूं। मेरा सपना है कि देश का हर जानवर सुरक्षित रहे।

घरवालों के खिलाफ जाकर उन्होंने इस राह को चुना

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सुजीत चौधरी

एक सामान्य परिवार के सुजीत चौधरी के लिए इस राह को चुनना आसान नहीं था। उनका कहना है कि आज भी परिवार के लोग उपरी मन से ही उन्हें इस काम के लिए समर्थन दे रहे हैं।

सुजीत कहते हैं, "उनकी इच्छा थी कि मैं भी औरों की तरह कमाता और भौतिक सुख-सुविधा का उपभोग करता। हमारे जेब में भी पैसे रहते। लेकिन मेरे लिए ये सब प्राथमिकता नहीं है। जीवन जीने के लिए जितना आवश्यक है उतना मैं आसानी से रोजी-रोटी से कमा लेता हूं।"

सुजीत के जीवन में उनके माता-पिता के साथ-साथ उनकी बहन सविता ठाकुर और दिवंगत भाई सुनील चौधरी का अहम योगदान है। उन्होंने ही पटना में उन्हें पढ़ाया। B.Com के बाद सुजीत ने एमआर से लेकर विभिन्न न्यूज चैनल और अखबार के लिए मार्केटिंग का काम किया।

सुजीत ने दरभंगा के सीएम साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट (साइंस) की पढ़ाई की। इसमें उनका विषय जंतु विज्ञान था। उनका डॉक्टर बनने का सपना था। पढ़ाई के दौरान वह अपने विषय से संबंधित तरह-तरह ती पेंटिंग बनाया करते थे। इतना ही नहीं, वह दूसरों की भी इस काम में मदद करते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पिता बैंक से रिटारयर हुए थे। उन्हें किसी तरह की पेंशन नहीं मिलती थी। ऐसी परिस्थिति में भाई ने उन्हें पढ़ाया। उन्होंने B.Com के बाद मार्केटिंग से जुड़ी नौकरी की।

लॉकडाउन के दौरान सुजीत जैसे लोगों की कहानी बहुत मायने रखती है। दरअसल हम जरूरतमंदों की सेवा तो करते हैं लेकिन उन बेजुबानों जानवरों की सेवा नहीं करते, जो भूख से परेशान हैं। सुजीत की यह पहल बताती है कि हमें सामान्य दिनों में भी जितना संभव हो, पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए।

सुजीत से संपर्क करने के लिए आप 9470251718 पर कॉल कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें -बेज़ुबान और बेसहारा जानवरों के दर्द को समझकर उन्हें नयी ज़िन्दगी दे रही हैं डॉ. दीपा कात्याल!


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