हुबली में रहने वाली कीर्ति 20 साल की थीं, जब वह एक नए कैफे में अपनी माँ के साथ इंटरव्यू के लिए गईं। इससे पहले उन्होंने जहां भी नौकरी के लिए अप्लाई किया वहां से निराशा ही मिली। वजह थी उनकी दिव्यांगता। वह चल नहीं सकती थी और उनके माता-पिता के पास इतने साधन नहीं थे कि व्हीलचेयर खरीदें, इसलिए वे अपने हाथों पर चलतीं थीं। जब वह इस इंटरव्यू के लिए पहुंची तो उन्होंने कुछ भी नहीं बोला, सामने से इंटरव्यू लेने वाली लड़की ने उनसे कहा, “ कुछ भी बोलो, चाहे अपना नाम, या फिर कुछ भी? लेकिन बोलो।“
कीर्ति ने सिर्फ कहा, “आप मेरे को नौकरी पर लेते क्या? “ और सामने से जवाब आया, “अगर हम लेते तो तुम काम करोगी क्या?"
और इस तरह से कीर्ति को अपनी पहली नौकरी मिली और 'मिट्टी कैफे' को अपनी पहली स्टाफ!
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दुनिया 'मिट्टी कैफे' की
साल 2017 में दो-तीन लोगों से शुरू हुए मिट्टी कैफे के आज 9 आउटलेट हैं, जिनमें 120 लोग काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि ये सभी कर्मचारी शारीरिक या फिर मानसिक तौर पर दिव्यांग हैं। दरअसल मिट्टी कैफे, एक ऐसा कैफे है जिसका उद्देश्य दिव्यांगों को रोज़गार देना है ताकि वे अपनी ज़िंदगी सम्मान और आत्म-निर्भरता से जी पाएं।
मिट्टी कैफे को शुरू किया है कोलकाता से संबंध रखने वाली 27 वर्षीय अलीना आलम ने। अपने कॉलेज के दिनों से ही सामाजिक कार्यों के लिए सक्रिय रही अलीना ने ठान लिया था कि वह अपने समाज के लिए ही कुछ करेंगी। उन्होंने कॉलेज के दौरान दो संगठन शुरू करने में भी भूमिका निभाई, जिनके ज़रिए उन्होंने कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर हजारों छात्रों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी से मास्टर्स करने के बाद उन्होंने ठान लिया कि उन्हें अपना जीवन समाज के लिए समर्पित करना है।
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अपनी एक इंटर्नशिप के दौरान उन्हें दिव्यांग लोगों के साथ काम करने का मौका मिला। इस अनुभव ने उन्हें दिव्यांगों के लिए समाज में बराबरी की जगह बनाने के लिए प्रेरित किया। वह कहतीं हैं, "मैं चाहती थी कि कोई उन पर चैरिटी न करे बल्कि वे खुद अपना कमा कर खाएं। लेकिन सवाल था कि क्या किया जाए। इस सवाल का जवाब मुझे मिला ‘खाने’ में। खाना ऐसी चीज़ है जो किसी को भी जोड़ सकता है। बस मैंने ठान लिया कि मुझे इसके इर्द-गिर्द ही कुछ करना है।"
उन्होंने अपने कैफे का प्रपोजल बनाया और इसे अलग-अलग जगह फंडिंग और सपोर्ट के लिए भेजा। लेकिन काफी समय उन्हें कहीं से फंडिंग नहीं मिली। इसके बाद, उन्हें देशपांडे फाउंडेशन ने संपर्क किया और हुबली बुलाया। यहाँ पर एक कॉलेज में उन्हें कैफ़े शुरू करने में मदद मिली।
अलीना बताती हैं, "मुझे कहीं कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है? मैंने एक प्रिंटर से कुछ पैम्पलेट छपवाए और जगह-जगह बांट दिए कि अगर किसी भी दिव्यांग को नौकरी चाहिए तो हमसे संपर्क करे। दो-तीन दिन बाद मुझे सबसे पहला फ़ोन कीर्ति की माँ का आया।"
यहाँ हर किसी की है अपनी कहानी
अलीना आलम ने द बेटर इंडिया को बताया, "हमने एक छोटे से स्टॉल से शुरुआत की थी। पहले दिन जब कीर्ति को ऑर्डर देना था तो उनसे दो बार चाय का कप गिरा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार तीसरी बार में उन्होंने ग्राहक को चाय दी। जिस कीर्ति ने अपने इंटरव्यू में सिर्फ एक लाइन बोली थी, आज वही कीर्ति 5-6 स्टाफ की टीम को मैनेज करती हैं। उसके हाथ पहले कांपते थे लेकिन आज वह प्रोफेशनल की तरह पैसे गिनती है।"
कीर्ति की ही तरह यहाँ पर काम करने वाले हर एक इंसान की कहानी एकदम अलग है। अलीना ने फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को भी ट्रेन करके रोज़गार से जोड़ा है। वह अपने यहां काम करने वाले राजशेखर की कहानी बतातीं हैं कि वह ऑटिस्टिक है और अपनी माँ के साथ फुटपाथ पर एक तम्बू में रहता था। एक-दो बार वह रास्ते में ही अलीना से मिला। अलीना ने उससे बात की, और उसे पूछा कि क्या वह उनके साथ काम करेगा। दूसरे दिन से राजशेखर मिट्टी कैफे का हिस्सा बन गया और आज वह कैफ़े में असिस्टेंट मैनेजर है।
थोड़ा हटके है यह कैफ़े
यहाँ पर काम करने वाले लोगों के हिसाब से ही पूरे स्पेस को रखा जाता है। कैफ़े के मेन्यु ब्रेल लिपि में हैं, जगह-जगह पर सांकेतिक भाषा के लिए पोस्टर्स लगाए गए हैं और समझाने के लिए प्लेकार्ड्स रखे गए हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उनके यहाँ आने वाले ग्राहक उनका पूरा सहयोग करते हैं।
अलीना कहतीं हैं, "मैंने एक चीज़ सीखी है कि किसी से बात करने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप कुछ बोले हीं। अनेकों तरीके हैं जिससे आप सामने वाले को अपनी बात समझा सकते हैं। हमारे यहाँ आने वाले ग्राहक भी यही करते हैं। एक बार किसी ग्राहक को कम मिर्च वाला खाना चाहिए थे तो वह हमारे एक मुक-बधिर स्टाफ को पूरा रोने की एक्टिंग करके समझा रहे थे कि तीखा कम रखना और उसे समझ में भी आ गया। इस तरह के वाकये आपको अहसास कराते हैं कि हम सही दिशा में आगे जा रहे हैं।"
जब भी कोई व्यक्ति उनके पास जॉब के लिए आता है तो उसे पहले दो महीने इंटर्नशिप पर रखा जाता है। इंटर्नशिप के दौरान भी मिट्टी कैफे उन्हें कुछ स्टाइपेंड देता है। ट्रेनिंग के बाद उन्हें फुल-टाइम रख लिया जाता है। अलीना के मुताबिक, उनके यहाँ काम करने वाले हर एक कर्मचारी को 12 हज़ार रुपये प्रति माह से लेकर 35 हज़ार रुपये प्रति माह तक सैलरी दी जाती है। साथ ही उनके रहने और खाने-पीने का इंतज़ाम भी मिट्टी कैफे द्वारा ही किया जा रहा है। हर दिन ये लोग 700-800 ग्राहकों को हैंडल करते हैं।
मिट्टी कैफे के मेन्यु की बात करें तो उनके मेन्यु में चाय, कॉफ़ी, तरह-तरह के जूस से लेकर चाट-भेल जैसे स्नैक्स शामिल हैं। सभी डिश उनके स्टाफ द्वारा ही बनाई जाती हैं।
भविष्य की योजना
आज हुबली के अलावा बंगलुरु में भी मिट्टी कैफे के आउटलेट हैं। देशपांडे फाउंडेशन के अलावा उन्हें सोशल वेंचर पार्टनर्स, सैंडबॉक्स संविधा और इनेबल इंडिया जैसे संगठनों से भी मदद मिली है। आने वाले समय में अलीना की कोशिश है कि वह पूरे देश में 100 से भी ज्यादा मिट्टी कैफे के आउटलेट्स खोलें।
मिट्टी कैफ़े को अब तक बहुत से अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं और साथ ही, उनका नाम फोर्ब्स 30 अंडर 30 सूची में भी शामिल हुआ है।
फिलहाल, लॉकडाउन की वजह से उनकी सर्विसेज बंद हैं लेकिन वह सुनिश्चित कर रही हैं कि उनके स्टाफ को इस दौरान किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। साथ ही, वह लगभग 2000 दिहाड़ी मजदूरों और ज़रूरतमंद लोगों को खाना पहुंचा रही हैं!
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अलीना आलम से संपर्क करने के लिए आप उन्हें मिट्टी कैफे के फेसबुक पेज पर मैसेज कर सकते हैं!