5वीं पास सरपंच ने जला दी शिक्षा की लौ, 50 बेटियों को स्कूल जाने के लिए किया प्रेरित

बुरहानपुर के आदिवासी बाहुल्य झांझर गांव में करीब दस साल पहले तक रूढ़िवादी सोच के चलते बेटियां पांचवीं क्लास से आगे नहीं पढ़ पाती थीं। लेकिन एक महिला ने अकेले दम पर इस आदिवासी समाज में शिक्षा की लौ जला दी है। कमलाबाई ने इन हालातों को बदलने का बीड़ा उठाया और आज गांव की 50 से ज़्यादा बेटियां स्कूल और कॉलेज तक में पढ़ाई कर रही हैं।

Kamla Bai

एक अकेला शिक्षित व्यक्ति समाज को बदलने की ताकत रखता है। इसका उदाहरण हैं मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की प्रेरणादायक महिला कमला बाई, जो खुद तो केवल पांचवीं पास हैं, लेकिन उनकी कोशिशों से उनके आदिवासी बाहुल्य गाँव की 50 से ज़्यादा लड़कियां स्कूल जा रही हैं। कई लड़कियां गांव के बाहर शहर जाकर कॉलेज में भी पढ़ाई कर रही हैं।

करीब दस साल पहले तक इस गांव की बच्चियों को छोटी उम्र में ही घरेलू कामकाज में लगा दिया जाता था और उनकी शादी हो जाती थी। वे स्कूल नहीं जाती थीं, अगर कोई बच्ची पढ़ती भी थी, तो ज़्यादा से ज़्यादा पांचवीं कक्षा तक। इसके चलते गांव में शिक्षा का स्तर बेहद खराब था।

कहाँ से हुई शुरुआत?

Kamla Bai
कमला बाई

कमला बाई ने समाज की इस कुरीति को दूर करने का बीड़ा उठाया। इसकी शुरुआत उन्होंने 2015 में की। वह गांव के हर घर में गईं और लोगों को शिक्षा का महत्व बताया। इससे भी ज़्यादा असर नहीं पड़ा, तो उन्होंने अपने घर से पहल की। अपनी दोनों बेटियों को शहर के स्कूल में भेजकर लोगों के सामने उदाहरण पेश किया। धीरे-धीरे लोगों को उनकी बातों पर भरोसा होने लगा और वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगे

आज गांव का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका है। यहां के लोग शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं। कमलाबाई बताती हैं कि बेटियों के ख़िलाफ़ इस सोच की वजह से ही उनके माता-पिता ने भी उन्हें गांव से बाहर स्कूल नहीं भेजा। इसलिए वह खुद सिर्फ़ पांचवीं तक ही पढ़ाई कर पाई थीं। इसके बाद उनकी शादी हो गई।

कमलाबाई इस गांव की सरपंच भी रह चुकी हैं। खुद उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाने का मलाल उन्हें आज भी है, लेकिन इसी ने उन्हें बदलाव के लिए प्रेरित किया और इस काम में उनके पति ने भी उनका पूरा साथ दिया।

उन्होंने अकेले गांव की बच्चियों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी उठाई और आज समाज के लिए प्रेरणादायक महिला बन गई हैं।

संपादनः अर्चना दुबे

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