स्वस्थ रहना हर कोई चाहता है और इसके लिए आपको अपनी जीवनशैली में बहुत बड़े बदलाव नहीं करने होते हैं। बस आपको कुछ छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने की जरुरत होती है, जिसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी है अच्छा खाना। आज हम आपको बेंगलुरु की एक ऐसी ही कामकाजी महिला की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो पिछले 18 सालों से अपने परिवार के लिए शुद्ध और जैविक साग-सब्जियां उगा रही हैं। साथ ही होम कंपोस्टिंग करके कचरा प्रबंधन करने में भी योगदान दे रही हैं।
हम बात कर रहे हैं बेंगलुरु में रहनेवाली मीनाक्षी अरुण की। मीनाक्षी पिछले 20 सालों से आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं। इसके साथ-साथ वह अपने घर में बागवानी करके, अपने परिवार को स्वस्थ और जैविक खाना भी खिला रही हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए, उन्होंने अपने बागवानी के सफर के बारे में बताया।
मीनाक्षी को बागवानी शुरू करने की प्रेरणा अपनी माँ और दादी से मिली। मीनाक्षी बताती हैं कि उन्होंने साल 2002 में गार्डनिंग करना शुरू किया था। उस समय वह अपने परिवार के साथ अपार्टमेंट में रहती थीं। वह कहती हैं, “पहले हम अपने घर के पास एक छोटे से फार्म से सब्जियां लेने जाते थे। एक दिन हम वहाँ जल्दी पहुँच गए, तो देखा कि वे सीवेज के पास अपनी सब्जियां उगाते हैं। इसके बाद मुझे लगा कि हमें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है कि हम क्या खा रहे हैं। इसलिए मैंने तय किया कि इसका हल खुद ही ढूँढ़ना होगा।”
इसके बाद उन्होंने अपने अपार्टमेंट की बालकनी और छत पर गार्डनिंग करना शुरू किया। उन्होंने पुदीना, पालक, धनिया जैसी पत्तेदार सब्जी से शुरुआत की थी और धीरे-धीरे वह कई तरह की मौसमी सब्जियां और फूल उगाने लगीं। देखते ही देखते उनके बगीचे में गमलों और पौधों की संख्या बढ़ने लगी। वह कहती हैं कि अपार्टमेंट में लगभग दस साल रहने के बाद, जब वह अपने घर में शिफ्ट हुईं, तब उनके पास 400 गमले थे।
घर को बनाया ‘फूड फारेस्ट’
मीनाक्षी कहती हैं कि उन्होंने अपने कैंपस में गार्डन को सबसे ज़्यादा महत्व दिया है। यही वजह है कि उनका बगीचा 1300 वर्ग फ़ीट जगह में फैला हुआ है। साग-सब्जियों के साथ-साथ वह आज कई तरह के फल, फूल और जड़ी-बूटियों के पेड़-पौधे भी उगा रही हैं। मीनाक्षी इस तरह से बागवानी करती हैं कि उन्हें सालभर अपने किचन गार्डन से सब्जियां मिलती रहें। उनके रसोई की लगभग 90% जरूरत गार्डन से ही पूरी हो जाती है। वह मौसम के हिसाब से अलग-अलग समय पर स्थानीय सब्जियों के बीज लगाती हैं।
उन्होंने बताया, “मैं इन दिनों टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च, बैंगन, भिंडी, आलू, लौकी, तोरई, करेला, फलियां जैसी सब्जियों के साथ-साथ, करी पत्ता, हल्दी, अदरक, रोजमेरी, लेमन ग्रास जैसे मसाले और जड़ी-बूटियां भी उगा रही हूँ। ज्यादातर मैं लोकल किस्म की सब्जी ही उगाती हूँ और कोशिश करती हूँ कि देसी (ओपन पोलिनेटेड) बीजों से ही बागवानी करूँ।”
इसके अलावा, मीनाक्षी के बगीचे में लगभग 40 तरह के फलों के पेड़ भी हैं, जिनमें आम, अमरुद, चीकू, केला, आंवला, नींबू, नारियल, वाटर एप्पल, स्टार फ्रूट, कटहल आदि के पेड़ शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि इस बार उन्हें अपने बगीचे से लगभग 100 किलो आम की उपज मिली है। हर हफ्ते उन्हें बगीचे से लगभग पांच किलो सब्जियां मिलती हैं। वह कहती हैं, “मेरा परिवार भी बागवानी में सहयोग करता है। कई बार फल इतने ज्यादा होते हैं कि मुझे अपने पड़ोसियों और सहकर्मियों को बाँटने पड़ते हैं, लेकिन इस बार कोरोना और लॉकडाउन के कारण मैं ज्यादा कुछ बाँट नहीं पाई। इसलिए इस बार मैं फलों की प्रोसेसिंग करने की कोशिश कर रही हूँ, जैसे आम से पाउडर, अचार आदि बनाने की कोशिश कर रही हूँ।”
जनवरी के महीने में उन्हें अपने बगीचे से लगभग 24 किलो हल्दी की उपज भी मिली थी, जिससे उन्होंने जैविक हल्दी पाउडर और कच्ची हल्दी का अचार बनाया। इसी तरह, उन्हें अपने घर में किसी पूजा या अन्य शुभ आयोजन के लिए फूल, बाहर से नहीं खरीदने पड़ते हैं।
घर पर बनाती हैं कई तरह के खाद
बागवानी करने के साथ- साथ, मीनाक्षी अपनी रसोई और बगीचे के जैविक कचरे से खाद भी बनाती हैं। वह कहती हैं कि वह लीफ कंपोस्टिंग, वर्मीकंपोस्टिंग जैसे तरीकों से घर पर ही जैविक खाद बनाती हैं। उनका कहना है, “अपने बगीचे के लिए, मैं सभी तरह के खाद खुद ही तैयार करती हूँ। संतरा, नींबू आदि के छिलकों से बायोएंजाइम बनाती हूँ, जो बागवानी के साथ-साथ, घर की साफ़-सफाई के लिए भी अच्छे होते हैं। इसके अलावा, सूखे पत्तों से मैं पाइप में खाद बनाती हूँ। साथ ही केंचुआ खाद भी तैयार करती हूँ।”
मीनाक्षी हर तीन-चार महीने में अपने बगीचे के लिए 300 किलो से ज्यादा जैविक खाद तैयार कर लेती हैं। बागवानी करने वाले लोगों से वह खुद खाद तैयार करने की अपील करती हैं। वह कहती हैं, “बहुत से लोग खाद बनाने की जहमत नहीं उठाना चाहते हैं, जबकि यह बहुत ही आसान काम है। कोई भी पौधा लगाने से पहले आप गमले में सूखे पत्ते डाल दें और ऊपर से मिट्टी। इससे गमले में ही धीरे- धीरे एक अच्छा पॉटिंग मिक्स तैयार हो जाता है। इसके अलावा बगीचे में कीटों से बचाव के लिए सब्जियों के पौधों के पास कुछ गेंदे के पौधे लगा दें, क्योंकि कीट फूलों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं।”
मीनाक्षी अपने बगीचे में सहफसली भी करती हैं। इसके अंतर्गत, वह एक गमले या कन्टेनर में तीन-चार अलग-अलग तरह के पौधे लगाती हैं। जैसे भिंडी, टमाटर, पालक, मेथी और तुलसी एक साथ एक कंटेनर में लगाना। उनका कहना है कि कुछ पौधे एक-दूसरे के लिए अच्छे होते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि बागवानी करने से लोग अपनी जीवनशैली में बहुत से बदलाव कर सकते हैं। जैसे घर में मौजूद जैविक चीजों को फिर से इस्तेमाल करना, दूसरे सूखे कचरे जैसे इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को रीसायकल के लिए देना। इसी तरह वह अपनी जीवनशैली को ‘जीरो वेस्ट’ और ‘केमिकल फ्री’ बनाने में जुटी हैं।
मीनाक्षी कहती हैं कि उनका परिवार कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। अगर प्लास्टिक इस्तेमाल होती भी है, तो पूरी जिम्मेदारी से इसका प्रबंधन किया जाता है। इस तरह, मीनाक्षी न सिर्फ अपने परिवार को अच्छा और पौष्टिक खाना खिला रही हैं, बल्कि पर्यावरण की दिशा में भी बेहतर काम कर रही हैं।
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संपादन- जी एन झा
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