बुजुर्गो को टेक्नोलॉजी से जोड़कर, दूर कर रहे है उनका अकेलापन, स्कूल के ये दो छात्र!

श्री राम स्कूल, मौस्लारी, गुडगाँव के दो छात्रों ने कुछ वालंटियर्स के साथ मिल कर एक ऐसा स्कूल प्रोजेक्ट शुरू किया जो समाज के एक ऐसे वर्ग के चेहरे पर मुस्कान ला रहा है, जिन्हें भाग दौड़ की ज़िन्दगी में अमूमन नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है।

श्री राम स्कूल, मौस्लारी, गुडगाँव के दो छात्रों ने कुछ वालंटियर्स के साथ मिल कर एक ऐसा स्कूल प्रोजेक्ट शुरू किया जो समाज के एक ऐसे वर्ग के चेहरे पर मुस्कान ला रहा है, जिन्हें भाग दौड़ की ज़िन्दगी में अमूमन नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है।

सुयेशा दत्ता और विभोर रोहतगी, IB करिकुलम के इन दो छात्रों को जब स्कूल के लिए एक प्रोजेक्ट करना था, तब इन दोनों ने यह विचार किया कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए सो सिर्फ एक प्रोजेक्ट तक सिमित न रह कर कुछ नया हो, किसी के जीवन में बदलाव हो या किसी के चेहरे की मुस्कान हो।

अपनी शिक्षिका अमृता साईं मारला से बात करने के उपरान्त इन लोगों ने “सिल्वर सर्फर प्रोग्राम” की शुरुआत करने की ठानी। इस प्रोग्राम द्वारा वे उस वर्ग को छूना चाहते थे, जिन्होंने समाज को दिया तो बहुत कुछ है पर हमसे वापिस लेना अक्सर भूल जाते हैं। इन छात्रों ने यह महसूस किया था कि आज की टेक्नोलोजी की रफ़्तार में हमारे ग्रैंड पेरेंट्स ( दादा- दादी / नाना – नानी ) कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। ये बच्चे अपने प्रोजेक्ट द्वारा इस दूरी को कम करना चाहते थे।

इसी सोच से जन्म हुआ ग्रैंड पेरेंट्स के लिए कंप्यूटर साक्षरता प्रोग्राम का जिसका नाम रखा गया  “सिल्वर सर्फर प्रोग्राम”।

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सुयेशा (बांयें ) और विभोर (दांयें ) अपनी टीचर के साथ

सुयेशा ने हमें बताया,

“काम की व्यस्तता के कारण मेरे माता पिता को अक्सर बाहर जाना पड़ता है। इसी कारण मेरा अधिकतर बचपन अपने नाना-नानी के साथ गुज़रा है। हालांकि अब मेरे नानाजी इस दुनिया में नहीं रहे, पर मैं आज भी उनसे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करती हूँ।  यह प्रोग्राम इन दोनो के लिए मेरी तरफ से एक भेंट है। दूसरों के दादा=दादी / नाना-नानी के चेहरे की मुस्कान देख कर मुझे लगता है, शायद इस से मेरे नानाजी की आत्मा को ख़ुशी मिले।”

स्कूल की मदद से इस प्रोग्राम की शुरुआत मई २०१५ में की गयी। अब तक करीबन ५० ग्रैंड पेरेंट्स को शिक्षित कर चूका यह प्रोग्राम इन लोगो की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर डिजाईन किया गया है। इस के द्वारा उन्हें ईमेल आई डी बनाना, ई मेल करना, फेसबुक और ट्विटर से परिचित कराना, स्मार्ट फ़ोन और टेबलेट के एप्प्स ( व्हाट्स एप्प, ट्विटर, ग्रोफेर्स, फ्लिप्कार्ट आदि) का प्रयोग करने के अलावा बिल भुगतान और नेट बैंकिंग भी सिखाई जाती है।

सिल्वर सर्फर प्रोग्राम के नाम के पीछे की सोच के बारे में सुयेशा हँसते हुए बताती है,

“ मैं कार्टून्स की फैन रही हूँ  और सिल्वर सर्फर मेरा पसंदीदा सुपर हीरो रहा है। मैंने एक सुपर हीरो को कहते सुना था, ‘ज़रूरी नहीं की सारे सुपर हीरो के पास उड़ने के लिए पंख हो ।’ यह बात मुझे छु गयी। मैं मानती हूँ, हमारे जीवन में हमारे नाना-नानी या दादा-दादी ऐसे ही एक सुपर हीरो हैं जो हमें सारी तकलीफों से बचाते है। इसी सोच के साथ हमने इस प्रोग्राम का नाम सिल्वर सर्फर रखा। जब मैं दूसरे दादा-दादी को कंप्यूटर सिखाती हूँ तो वे भी मुझसे इस नाम के पीछे की वजह पूछते हैं और मैं मुस्कुरा के बस इतना ही कहती हूँ – क्यूंकि आपको उड़ने के लिए पंख की ज़रूरत नहीं है।”

इस प्रोग्राम की शुरुआत करने और इसे संचालित करने में आयी बाधाओं के बारे में विभोर बताते हैं कि उनके लिए इसका प्रचार करना और लोगों को जागरूक करना एक चुनौती थी।

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एक क्लास के दौरान विभोर एक ग्रैंडपैरेंट को समझाते हुए

इससे निपटने के लिए इन लोगों ने कई तरह के पोस्टरों के द्वारा प्रचार किया और एक फेसबुक पेज की भी रचना की। धीरे धीरे इनकी कोशिश सफल हुई और लोग उनके इस पहल की ओर आकर्षित हो , इससे जुडने की इच्छा जाहिर करने लगे। शुरुआत करने के बाद ग्रैंड पेरेंट्स को सिखाने में कुछ छोटी परेशानियाँ भी आया करती थी क्योंकि उनके पास सीखने के लिए बहुत कुछ था पर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अनुभव बहुत कम था। इसमें संयम रखकर धीमी गति से उन्हें हर छोटी चीज सिखानी पड़ती थी।

दिल छूने वाले एक अनुभव के बारे में ये हमें बताते हैं कि एक बार एक विदेशी महिला इनसे फेसबुक सीखने आयी और वे फेसबुक द्वारा अपने ३० साल पुराने स्कूल के मित्रों से जुड़ना चाहती थी।

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सिल्वर सर्फर्स

उनकी मदद से जब हमने उन दोस्तों को खोज निकाला तो थोडा समय लेकर भी वे अधिकतर लोगों को पहचान गयी। उन सबसे जुड़ कर वह बहुत भावुक हो गयी और उनके इस अनुभव ने हमारे दिल को बहुत सुकून दिया।

इन बच्चों ने फ़िलहाल अपनी परीक्षाओं के कारण इस प्रोग्राम को अल्पविराम लगाया है, पर यह आगे भी इसे जारी रखने की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि इस प्रोग्राम को वे उन दादा दादी / नाना नानी तक ले कर जाएँ जो समाज और परिवार से कट चुके हैं। इनकी कोशिश है कि सिल्वर सर्फर प्रोग्राम का अगला चरण वृद्ध आश्रम के बुज़ुर्गों के बीच शुरू  किया  जाए ताकि वे इसका उचित लाभ उठा सकें और टेक्नोलॉजी की इस विस्तृत दुनिया में अपने अकेलेपन को भूल पाएं।

इन छोटी आँखों में पल रहे बड़े-बड़े सपने निश्चित ही समाज को एक नयी दिशा दिखा रहे हैं। एक ऐसी दिशा जो एकल परिवार के फैशन में गुम गयी थी। नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से जोड़ने की यह कोशिश जब हमारे देश के भविष्य, इन बच्चों की ओर से आती दिखती है तो यह यकीन हो चलता है कि समय बदल रहा है, एक बेहतर समाज की ओर ,एक बेहतर भविष्य की ओर!

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