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साहित्य

स्त्री वेदना से अनअवगत समाज की सोच को झकझोरती मन्नू भंडारी की कहानी - 'मुक्ति'!

By मानबी कटोच

मृत्यु-मुखी पति की सेवा करती पत्नी की पीड़ा के ज़रिये मन्नू जी ने समाज का वह चेहरा सामने रखा है, जिसमें स्त्री को केवल सेवक के रूप में देखा जाता है और यह भुला दिया जाता है कि वह भी एक मानव है, जिसे पीड़ा होती है, जो थकती भी है और जिसे भूख भी लगती है!

किस्से-कहानियां, हिन्दी में बच्चों की दुनिया!

By निशा डागर

साहित्य के पन्नों से में पढ़िए बच्चों के लिए लिखी गयीं खास हिंदी किताबों के बारे में। इन किताबों से न सिर्फ़ बच्चे आसानी से हिंदी सीख सकते हैं, बल्कि उनकी रूचि किताबें पढ़ने में भी बढ़ सकती है। इन किताबों में, मेरी बिंदी, रंग- रंगी कामिनी, समय का खटोला, पंचतंत्र की कहानियां आदि शामिल हैं।

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय : जिसने एक भाषा, एक साहित्य और एक राष्ट्र की रचना की!

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1883 को पश्चिम बंगाल में मिदनापुर में हुआ। उनके पिता डिप्टी अधिकारी थे। उन्होंने वकालत की पढ़ाई की। पर बाद में, उन्होंने बंगाली पत्रिका, 'बंगदर्शन' प्रकाशित करना शुरू किया। अपने उपन्यास, 'आनंदमठ' में उन्होंने 'वन्दे मातरम्' लिखा था, जो भारत का राष्ट्रीय गीत है।

'झाँसी की रानी' को जन-मानस तक पहुँचाने वाली सुभद्रा!

By निशा डागर

16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक एक गाँव में जन्मीं सुभद्रा कुमारी चौहान हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। राष्ट्रीय चेतना के प्रति सजग इस कवियत्री के काव्य में आपको 'वीर रस' की आभा मिलेगी। उनकी कविता, 'झाँसी की रानी' के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

जानकी वल्लभ शास्त्री: एक कथाकार के जीवन की अनकही कहानी!

By निशा डागर

5 फरवरी 1916 में बिहार के मैगरा गाँव में जन्में जानकी वल्लभ शास्त्री को जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' एवं कवयित्री महादेवी वर्मा के बाद छायावाद युग का पांचवा महत्वपूर्ण रचनाकार माना जाता है। उनका पहला गीत 'किसने बाँसुरी बजाई' बहुत लोकप्रिय हुआ था।

हिन्दी कविता को एक नयी उड़ान देने वाले 'उन्‍मुक्‍त गगन के पंछी' शिवमंगल सिंह 'सुमन'!

By निशा डागर

शिवमंगल सिंह का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगेरपुर में हुआ था। वे मशहूर हिंदी लेखक व कवि थे। अध्यापन के अलावा विभिन्न महत्त्वपूर्ण संस्थाओं और प्रतिष्ठानों से जुड़कर उन्होंने हिंदी साहित्य में योगदान दिया। 27 नवंबर 2002 को उनका निधन हो गया था।

साहित्य के पन्नो से - ज्ञानरंजन की कहानी 'पिता'!

By मानबी कटोच

ज्ञानरंजन की अधिसंख्य कहानियों में स्पष्ट दिखने वाली वैयक्तिकता रचनात्मकता के ही रास्ते जिस सफलता से सामाजिक हो जाती है, वह उनकी निजी और खास विशेषता है। आज पढ़ते हैं, उनकी इन्हीं कहानियों में से एक - पिता!

गजानन माधव मुक्तिबोध: वो आग जिसकी चिंगारी मरने के बाद और भड़की!

By निशा डागर

गजानन माधव 'मुक्तिबोध' का जन्म 13 नवंबर 1917 को श्योपुर (शिवपुरी) जिला मुरैना, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। साल 1953 में उन्होंने साहित्य लेखन शुरू किया। मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मुक्तिबोध की रुचि अध्ययन-अध्यापन, पत्रकारिता, समसामयिक राजनीतिक एवं साहित्य के विषयों पर लेखन में थी।

सुदामा पाण्डेय 'धूमिल': हिंदी साहित्य का वह कवि जिसने जनतंत्र की क्रांति को शब्द दिए!

By निशा डागर

सुदामा पांडेय 'धूमिल' का जन्म 9 नवंबर 1936 को उत्तर-प्रदेश वाराणसी के निकट गाँव खेवली में हुआ था। उन के पिता शिवनायक पांडे एक मुनीम थे व माता रजवंती देवी घर-बार संभालती थी। अपनी लेखनी के चलते उन्हें 'धूमिल' उपनाम मिला। इन्हें हिंदी साहित्य का 'एंग्री यंग मैन' भी कहा जाने लगा।

मुंबई: बस्ता टांगकर फिर से स्कूल पहुंचे 72 वर्षीय मुकुंद चारी, जानिए क्यों!

By निशा डागर

मुंबई के मुकुंद चारी ने 72 साल की उम्र में फिर एक बार स्कूल में दाखिला लिया है और कक्षा 7वीं से पढाई शुरू की है। मुंबई में ग्रांट रोड निवासी मुकुंद सिक्यॉरिटी गार्ड के रूप में रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने 1950 के दशक में मराठी मीडियम स्कूल से पढ़ाई की थी।