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वृक्षारोपण

पश्चिम बंगाल का वह गाँव, जहाँ लोगों ने अपने खून-पसीने से बंजर पहाड़ पर उगा दिया जंगल

साल 1997 तक, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला के झारबगड़ा गाँव एक समय 50 किलोमीटर के दायरे में हर ओर से बंजर जमीनों से घिरा हआ था। लेकिन, आज यहाँ के करीब 387 एकड़ जमीन पर घने जंगल लगे हुए हैं और यह कई प्रकार के पशु-पक्षियों का घर है।

मिलिए 26 की उम्र में 40 हजार पौधे लगाने वाले उत्तराखंड के इस युवा से

उत्तराखंड के नैनीताल जिला के नाई गाँव के रहने वाले चंदन सिंह नयाल की उम्र कम है, लेकिन उनके इरादे बेहद ऊंचे। चंदन ने जब देखा कि चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही है और जमीन सूख रही है तो उन्होंने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया।

11 साल, 40 हज़ार पेड़ और एक 'पागल' हीरो: मिलिए चित्रकूट के ट्री-मैन से!

By निशा डागर

भैयाराम यादव की कड़ी मेहनत और विश्वास ने सूखाग्रस्त क्षेत्र कहे जाने वाले बुंदेलखंड की 50 एकड़ भूमि पर आज एक घना जंगल उपजा दिया है!

4000+ बच्चों को करवाई सरकारी नौकरी की तैयारी, फीस के बदले करवाते हैं 18 पौधारोपण!

By निशा डागर

Bihar में समस्तीपुर जिले के रोसड़ा प्रखंड/ब्लॉक में ढरहा गाँव के रहने वाले राजेश कुमार सुमन पिछले 11 सालों से गरीब बच्चों को मुफ़्त में सरकारी नौकरियों की तैयारी करवा रहे है। उनके यहाँ पढ़ने आने वाले सभी बच्चों को सबसे पहले 18 पौधे लगाने होते हैं और फिर वे 3-4 साल तक पौधों की देखभाल करने का संकल्प करते हैं।

'एक एकड़ में 12 हज़ार पेड़' : मुंबई शहर के बीचो-बीच हो रहा है यह कमाल!

महाराष्ट्र के मुंबई में, 'ग्रीन यात्रा' नामक एनजीओ पूरे शहर भर में एक ख़ास जापानी 'मियावाकी तकनीक' से कम समय में घने जंगल उगा रहा है। इनका मिशन, साल 2025 तक 10 करोड़ पेड़ लगाना है और फ़िलहाल, साल 2019 में उन्होंने 10 लाख पेड़ लगाने की पहल शुरू की है |

महाराष्ट्र: इस गाँव के किसान तेंदुओं के पानी पीने के लिए बना रहे हैं टैंक!

By निशा डागर

महाराष्ट्र के पुणे में खेड़ा तालुका के रंमाला गाँव में एक किसान, निलेश शिवाजी शिंदे ने बेजुबान जंगली जानवरों के लिए एक पहल की शुरुआत की है। उन्होंने उनके लिए पानी के टैंक बनाये जहाँ हर दो दिन में पानी भरा जाता है ताकि इन जानवरों की प्यास बुझ सके।

जादव मोलाई पयंग : भारत का 'फारेस्ट मैन', जिसने अकेले 1,360 एकड़ उजाड़ ज़मीन को जंगल बना दिया!

By समीर बहादुर

वह १६ वर्ष का था जब असम में बाढ़ ने तबाही मचाई थी| पयंग ने देखा कि जंगल और नदी किनारों के इलाकों में आने वाले प्रवासी पक्षियों कि गिनती धीरे धीरे कम हो रही है, घर के आसपास दिखने वाले सांप भी गायब हो रहे हैं| इस कारण वह बेचैन हो उठा|