हिमाचल में कांगड़ा के सोहरन गाँव के रहने वाले 73 वर्षीय रिटायर्ड कर्नल प्रकाश चंद राणा, हल्दी, अदरक, लहसुन जैसी फसलों के साथ मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। साथ ही, वह अपनी उपज को प्रोसेस करके हल्दी पाउडर, पांच तरह के अचार और दो तरह के शहद सीधा ग्राहकों को उपलब्ध करा रहे हैं।
अहमदाबाद में रहने वाले भाद्री और स्नेहल ने अपनी फर्म tHE gRID Architects के तहत, मिट्टी, हल्दी और जूट का इस्तेमाल करते हुए, ‘मिट्टी के रंग’ नाम से एक रेस्टोरेंट को बनाया, जो इको-फ्रेंडली होने के साथ ही, 50 फीसदी सस्ता भी है।
गुजरात के देवपुरा गाँव में रहने वाले चिंतन शाह MBA कर चुके हैं पर आज वह अपने खेत में केले, हल्दी, अदरक, सब्ज़ियाँ और गेहूं जैसी फसलें उगाकर लाखों कमा रहे हैं।
पहले किसानों को उनकी ताजा मिर्च का 50 रुपये प्रति किलो तो सूखी मिर्च का 150 रुपये प्रति किलो दाम मिलता था, लेकिन इसी मिर्च के पाउडर का दाम उन्हें 700 रुपये प्रति किलो मिल रहा है।
थमैया ने दो नारियल के पेड़ों के बीच एक चीकू का पेड़ लगाया। नारियल और चीकू के बीच उन्होंने एक केले का पेड़ लगाया। नारियल के पेड़ों के नीचे, उन्होंने सुपारी और काली मिर्च लगाए और बीच में उन्होंने मसालों के पौधे लगाए। जमीन के नीचे भी उन्होंने हल्दी, अदरक, गाजर, और आलू उगाए और इस तरह के कई प्रयोगों और पेड़-पौधों की उपज से आज वह एक सफल किसान हैं।