आठवीं की पढ़ाई के बाद दामोदर गाँव से बाहर पढ़ने के लिए गए। अपनी पढ़ाई पूरी कर जब वह गाँव लौटे तो उन्होंने देखा कि जहाँ हरे-भरे पेड़ हुआ करते थे, अब वहां सिर्फ ठूंठ हैं। बस उसी दिन से उन्होंने जंगल की रक्षा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया!
"इस क्षेत्र में काम करने का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू था उनको विश्वास दिलाना कि मैं सच में एक डॉक्टर हूँ और दूसरा ब्रेन हमरेज के रोगियों का इलाज करना वो भी जगह व बिजली जैसी मूल सुविधा के बिना।"
अपने देश-दुनिया के असल सौंदर्य को देखने-समझने, उसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सीधी-सरल जीवनचर्या से मिलने के लिए गाँव-देहात आज भी सबसे आदर्श मंजिल हैं। और शहर से गांव तक के इस सफर में क्या पता कब-कहाँ आपका अपना अतीत मिल जाए! कौन जाने, किस मोड़ पर कोई ठहरा-सा पल दिख जाए।