उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग के कोटमल्ला गांव के रहनेवाले जगत सिंह चौधरी ने बीते चार दशकों में एक ऐसे मिश्रित वन को विकसित किया है, जिसमें देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं। उनकी इस कोशिश से स्थानीय समुदायों को काफी फायदा हो रहा है।
अपने घर के आस-पास की जगहों पर तो सभी पौधे लगाते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के धार जिले के अमृत पाटीदार पिछले 36 सालों से सार्वजनिक जगहों पर पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं।
बेंगलुरु की रहने वाली सुशीला राय एक होम बेकर और केक आर्टिस्ट हैं, लेकिन इसके साथ ही, उनके जानने वाले उन्हें 'जुगाड़ क्वीन' भी कहते हैं क्योंकि, पुरानी-बेकार चीजों को नया रूप देकर फिर से इस्तेमाल में लेने में वह माहिर हैं।
वारंगल जिले में गोपालपुरम गाँव के रहने वाले राजू मुप्परापु ने एक सामान्य साइकिल में बदलाव करके इसे सौर ऊर्जा से चलने वाली साइकिल में तब्दील कर दिया है। इससे पहले भी वह कई आविष्कार कर चुके हैं।
बेंगलुरु के 9वीं कक्षा के छात्र, 14 वर्षीय ऋषभ प्रशोभ, पिछले दो सालों से जल-संरक्षण पर काम कर रहे हैं और एक साल में वह 70 लाख लीटर पानी बचाने में सफल हुए हैं।
ओडिशा के कालाहांडी में रहने वाले बिभू साहू राइस मिल के मालिक हैं। यहाँ धान की भूसी को जलाने के बाद लोगों को साँस लेने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। इसी को देखते हुए, उन्होंने कुछ अभिनव करने का प्रयास किया।
केरल के रहने वाले डॉ. जोजो जॉन ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पहले इलेक्ट्रिक कार ली और फिर सोलर सिस्टम लगवाया और आज वह न के बराबर बिजली और पेट्रोल पर खर्च कर रहे हैं!
पुणे स्थित सिस्टेमा बायो कंपनी ने बायोगैस प्लांट विकसित किया है, जिससे गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के लगभग 5,000 किसानों को एलपीजी की जरूरत नहीं पड़ रही है।