सामान्य सब्जियों के अलावा घर के एक कमरे में रहकर गुजरात की पुष्पा पटेल और पीनल पटेल मशरूम की खेती कर रही हैं। वे इससे खाखरा और आटा जैसे कई प्रोडक्ट्स तैयार करके बढ़िया मुनाफा भी कमा रही हैं।
हरियाणा के जींद में ईगराह गांव के रहने वाले अशोक कुमार वशिष्ठ, एक प्रगतिशील किसान हैं। मात्र दसवीं तक पढ़े अशोक पिछले कई सालों से मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं।
डॉ. पूजा दुबे पाण्डेय एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट हैं और इंदौर में अपनी कंपनी, 'Biotech Era Transforming India' (BETi) के जरिए मशरूम पर काम करने के साथ-साथ, पराली से इको फ्रेंडली पैकजिंग भी बना रही हैं।
2013 के उत्तराखंड आपदा की वजह से देहरादून की हिरेशा वर्मा के जीवन में भी एक बड़ा बदलाव आया। आपदा में बेसहारा हुई महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए, उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की और अपने साथ कई लोगों को ट्रेनिंग दी। आज उनकी कंपनी विदेश तक मशरूम पहुंचा रही है।
उत्तर प्रदेश में जौनपुर के रहनेवाले, 62 वर्षीय रामचंद्र दूबे पहले ऑटो चलाया करते थे, लेकिन पिछले चार सालों से वह किसानों से मशरूम खरीदकर उनसे खाने की चीज़ें बनाते हैं और लाखों का मुनाफा हैं।
जमशेदपुर के राजेश कुमार, पिछले लॉकडाउन से पहले अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आये थे। उन्होंने घर में ही मशरूम की खेती शुरू की, जिससे आज वह हर महीने अच्छी कमाई कर रहे हैं।
ओडिशा में बारगढ़ जिले के गोड़भगा में रहने वाली जयंती प्रधान एक प्रगतिशील महिला किसान हैं। जानिए कैसे, दूसरे किसानों के खेत से मिली बेकार पराली से उन्होंने अपने मशरूम की खेती को आगे बढ़ाया।