"ज्यादातर लोगों के लिए, अहम सवाल यह है कि अगर वे बाहर नहीं निकलते हैं, तो खाने के लिए राशन और महत्वपूर्ण दवा कहां से आएगी? हम उनकी ये समस्या दूर करना चाहते हैं।" - शिशिर जोशी
पेशे से इंजीनियर शैलेन्द्र तिवारी और आनंद कुमार ने एक ऐसा डिवाइस बनाया है जिसकी सहायता से किसानों को पता चल जाता है कि आने वाले 4-5 दिनों में उनके खेत के आसपास का मौसम कैसा होगा।
एक बड़ी टीवी कंपनी में उन्हें जॉब भी मिली। पर जब उन्हें उनका काम समझाया गया तो वह दंग रह गयीं। काजल को असेंबली लाइन में खड़े होने का काम दिया जा रहा था, जहाँ 12वीं पास लोग भी काम कर रहे थे।
68 वर्षीय महेश चूरी के इस ब्रांड की फ्रेंचाइजी लेने के लिए कतार लगी है लेकिन महेश के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण है किसानों को अतिरिक्त आय का साधन और आदिवासी महिलाओं को रोज़गार देना।
स्लम सॉकर ने पहले 'झोपड़पट्टी' फुटबॉल से स्लम में पले-बढ़े बच्चों को पहचान दिलाई और अब फुटबॉल के ज़रिए ही वे मुक-बधिर बच्चों को एक नयी पहचान दे रहे हैं!
यह कहानी है सविता डकले की, जिन्होंने न सिर्फ अपनी इस आम कहानी को अपनी मेहनत और लगन से ख़ास बनाया बल्कि अपने गाँव की दूसरी महिलाओं को भी अपने नक़्शे कदम पर चलने के लिए प्रेरित किया।
व्हाट्सअप से शुरू हुए इस बिज़नेस के लिए उनकी लागत मात्र 3, 500 रूपये रही। पहले वे सभी काम अकेले करती थीं, लेकिन अब उनके स्टाफ में सब्ज़ियां काटने के लिए 9 महिलाएं और 10 डिलीवरी एजेंट हैं!