राजस्थान के गर्म इलाके में, जहाँ पौधे उगाना लगभग नामुमकिन जैसा लगता है, ऐसे में बाड़मेर के आनंद माहेश्वरी ने अपने घर पर 150 से अधिक किस्म के हजारों पौधे उगाए हैं, वह भी खाली डिब्बों और प्लास्टिक बैग्स में।
पटना की अमृता सौरभ यूं तो बचपन से अपने पिता को गार्डनिंग करते देखती थीं, लेकिन ससुराल आकर उन्होंने अपना खुद का गार्डन बनाना शुरू किया और कई देशी-विदेशी सजावटी पौधों से यहां हरियाली फैला दी। अब वह दूसरों के गार्डन डिज़ाइन करने का भी काम कर रही हैं।
सूरत के डॉक्टर दम्पति जिगना और राहुल शाह के टेरेस गार्डन में सब्जियां और फल का उत्पादन किसी खेत से कम नहीं होता, क्योंकि उन्होंने बेहतर पोलीनेशन के लिए छत पर सरसों के पौधे भी उगाए हैं।
सूरत की 67 वर्षीया डॉ. मोहिनी गढिया ने नौकरी से रिटायर होने से पहले गार्डनिंग को अपना दूसरा काम बना लिया। एक साल पहले जब उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया तब घर में लगे पेड़-पौधों ने ही, उन्हें फिर से ठीक होने में मदद की।