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#शनिवार_की_चाय

26 जनवरी : इतिहास का उपयोग क्या हो?

By मनीष गुप्ता

इतिहास को समझने के लिए इंसान में विवेक भी हो, वरना जिसका जो जी चाहेगा इतिहास को घुमा फिरा कर अपना उल्लू सीधा करने निकल पड़ेगा।

तुम्हें नहलाना चाहती हूँ!

By मनीष गुप्ता

मैं उस ख़त को लेकर मुंडेर पर जा कर बैठ गया सुबह की चाय के साथ. वो बरसात का मौसम था. मुझे कहीं जाना नहीं था तो मैं बैठा ही रहा. बरसात बीती तो शिशिर आया. फिर शरद, बसंत, हेमंत, ग्रीष्म और फिर से वर्षा.

आपके भीतर की कोयल कैसी है?

By मनीष गुप्ता

फ़ेसबुक जन्य डिप्रेशन के 70% लोग शिकार हैं. सोशल मीडिया की मछलियाँ अपनी पींग में कम खिलती हैं, दूसरों की डींग में अधिक गलती हैं. चमक-दमक एकमात्र गहना है. लोग लगातार जो नहीं हैं वह दिखने के लिए मरे जा रहे हैं.

वन नाइट स्टैंड!

By मनीष गुप्ता

जब एक आदमी और औरत स्वेच्छा से किसी को चुनते हैं तो वे फ़रिश्ते प्रतीत होते हैं. लेकिन संबंधों पर काम न करने की वजह से बोझिलता आ जाती है जिसे वे अपना प्रारब्ध मान बैठते हैं.

'चिर अभिलाषा / चोर अभिलाषा'

By मनीष गुप्ता

प्रेम का तो मकसद ही आपको आपकी ख़ुद की ज़िन्दगी में चलायमान रखना है. आपकी क्षमता का विकास ताउम्र होता रहे - यही प्रेम का लक्ष्य है. मनीष गुप्ता की लिखी एक कविता सुन लें : 'चिर अभिलाषा - चोर अभिलाषा'

ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती : दुष्यंत कुमार [इंक़लाब की आवाज़ और टूटे हुए साज़ का दर्द भी]

By मनीष गुप्ता

आज शनिवार की चाय में मनोज बाजपेयी प्रस्तुत कर रहे हैं दुष्यंत कुमार जी की एक आग में बघारी हुई रचना! और पढ़िए मनीष गुप्ता क्या कहते है दुष्यंत कुमार के बारे में!