छत्तीसगढ़ के बस्तर के रहनेवाले दीना नाथ राजपूत, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। लेकिन, 2018 से ‘भूमगादी महिला कृषक’ NGO के ज़रिए, वह 6000 से अधिक महिला किसानों की जिंदगी बदल चुके हैं।
बिहार के दरभंगा जिला के बलभद्रपुर गांव में रहनेवाली पुष्पा झा ने साल 2010 में मशरूम की खेती शुरू की थी। शुरुआत में उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन आज हर दिन हजारों की कमाई हो रही है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
भोपाल, मध्य प्रदेश की रहने वाली एक सफल महिला किसान, प्रतिभा तिवारी ने, न सिर्फ किसानों को जैविक खेती से जोड़ा, बल्कि उनकी उपज खरीदकर अपनी फ़ूड कंपनी 'भूमिशा ऑर्गेनिक्स' की भी नींव रखी, जिससे वह लाखों कमा रही हैं।
ओडिशा में बारगढ़ जिले के गोड़भगा में रहने वाली जयंती प्रधान एक प्रगतिशील महिला किसान हैं। जानिए कैसे, दूसरे किसानों के खेत से मिली बेकार पराली से उन्होंने अपने मशरूम की खेती को आगे बढ़ाया।
केरल में एर्नाकुलम जिले के एक गाँव की रहने वाली 46 वर्षीया सुलफत मोइद्दीन अपने घर की छत पर अलग-अलग तरीकों से जैविक खेती कर रही हैं और इस उपज से वह प्रतिमाह 20 हजार रुपए तक की कमाई कर लेती हैं।
महाराष्ट्र के नासिक में रहने वाली सविता लभडे, पति की मौत के बाद क़र्ज़ में डूबी हुईं थीं। हिम्मत न हारते हुए उन्होंने खेती की और अपना मसालों का बिज़नेस भी शुरू किया। आज वह 'साधना जनरल स्टोर' की मालकिन हैं।
सीता देवी ने कीवी की खेती करने की ठानी तो उन्हीं के गाँव के कुछ लोग उनके हौसले को तोड़ने की साजिश में जुट गए। कुछ कहते थे कि ऐसी फसल कहां होती है, जिसे जानवर नुकसान न पहुंचाएं और कुछ का कहना था कि कीवी विदेशी फल है, परंपरागत फसलों के क्षेत्र में इसकी पैदावार रंग ही नहीं लाएगी।
सुधा को डेयरी क्षेत्र में सराहनीय काम करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से लगातार 4 बार गोकुल पुरस्कार भी मिल चुका है। सुधा आज गाँव की दूसरी महिलाओं को भी डेयरी का संचालन करना सिखा रही हैं।
भारत ने घर में या फिर खेतों में बिना वेतन के काम करने वाली महिलाओं के काम की मैपिंग करने का फैसला किया है। जिसमें इनके काम को भी रोजगार के नजरिये से देखा जायेगा। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस, जनवरी 2019 से एक वर्ष का घरेलू सर्वेक्षण आयोजित करेगा इनके काम को मापने के लिए।