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बिहार में गरीब बच्चों को मुफ़्त कोचिंग दे रहा है न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से पढ़ा यह छात्र!

By निशा डागर

मास्टर्स करने के दौरान किसलय को न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिला। पढ़ाई पूरी होने के बाद उनके पास ढेरों मौके थे जहां वे किसी भी बड़े से बड़े गणितज्ञ के साथ काम कर सकते थे। लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग अपने देश के भविष्य के लिए करने की ठानी।

पुरानी किताबों के बदले हेल्मेट; दोस्त की मौत ने बनाया इस इंजीनियर को 'हेल्मेट मैन'!

By निशा डागर

बिहार के कैमूर जिला के रहने वाले राघवेंद्र कुमार ने सड़क दुर्घटना में अपने एक दोस्त को खो दिया और तभी से उन्होंने 'हेल्मेट' बाँटने की मुहिम शुरू की।

बिहार का पहला खुला शौच-मुक्त गाँव अब है बेफ़िक्र-माहवारी गाँव भी; शिक्षकों ने बदली तस्वीर!

बिहार में केवल 15-25 साल की केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ही सुरक्षित रूप से अपने माहवारी का प्रबंधन करती है। ऐसे में इस तरह के सकारात्मक पहल हमें एक नए भविष्य की उम्मीद दिलाते हैं, जहाँ किशोरियों को भी बिना किसी भेद-भाव के अपने अधिकार मिले और वे लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकें!

4000+ बच्चों को करवाई सरकारी नौकरी की तैयारी, फीस के बदले करवाते हैं 18 पौधारोपण!

By निशा डागर

Bihar में समस्तीपुर जिले के रोसड़ा प्रखंड/ब्लॉक में ढरहा गाँव के रहने वाले राजेश कुमार सुमन पिछले 11 सालों से गरीब बच्चों को मुफ़्त में सरकारी नौकरियों की तैयारी करवा रहे है। उनके यहाँ पढ़ने आने वाले सभी बच्चों को सबसे पहले 18 पौधे लगाने होते हैं और फिर वे 3-4 साल तक पौधों की देखभाल करने का संकल्प करते हैं।

खुद किताबों के अभाव में बड़ा हुआ यह पत्रकार अब आपकी रद्दी को बना रहा है ग्रामीण बच्चों का साहित्य!

By निशा डागर

बिहार में गोपालगंज जिले के लुहसी गाँव से ताल्लुक रखने वाले जय प्रकाश मिश्र, 'फाउंडेशन ज़िंदगी' के संस्थापक हैं। इस फाउंडेशन के बैनर तले, साल 2014 से वे कबाड़ और अन्य लोगों से किताबें इकट्ठा करके, बिहार के गांवों में सामुदायिक लाइब्रेरी खोल रहे हैं। उनका उद्देश्य ज़रुरतमंदों तक किताबें पहुँचाना है।

मॉडलिंग छोड़,14 सालों से लड़ रहे हैं छुआछूत की लड़ाई; मल उठाने वालों को दिलवाया सम्मानजनक काम!

By निशा डागर

बिहार में खगड़िया जिले के परबत्ता गाँव से ताल्लुक रखने वाले संजीव कुमार ने हमेशा से दिल्ली में पढ़े-लिखे और मॉडलिंग में करियर बनाया। लेकिन अपने गाँव में डोम समुदाय की दयनीय स्थिति ने उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। पिछले 14 सालों से वे बिहार में छुआछुत जैसी सामाजिक कुरूति के खिलाफ़ लड़ रहे हैं।

दुर्घटना के बाद कभी हाथ और पैर काटने की थी नौबत, आज हैं नेशनल पैरा-एथलेटिक्स के गोल्ड विजेता!

By निशा डागर

बिहार के 24 वर्षीय पैरा- एथलीट शेखर चौरसिया भी उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने हर एक चुनौती से लड़कर अपना रास्ता बनाया है। उन्होंने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अलग- अलग पैरा-एथलीट चैंपियनशिप में गोल्ड व सिल्वर मेडल जीते हैं।

22 वर्षीय छात्र ने ली स्लम के बच्चों की ज़िम्मेदारी, आईआईटी के लिए तैयार करना है लक्ष्य!

By निशा डागर

22 वर्षीय श्री निवास झा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से एम. ए कर रहे हैं। मूलतः बिहार के मधुबनी से ताल्लुक रखने वाले श्री निवास का परिवार भोपाल में रहता है। साल 2015 में भोपाल के अन्ना नगर स्लम में रहने वाले बच्चों के जीवन में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए उन्होंने 'आरोह तमसो ज्योति' पहल की शूरुआत की।

तिलका मांझी: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला स्वतंत्रता सेनानी!

By निशा डागर

तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में 'तिलकपुर' नामक गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। साल 1857 में मंगल पांडे के विद्रोह से भी पहले साल 1770 में उन्होंने आज़ादी की लड़ाई शुरू की थी। कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें 'प्रथम स्वतंत्रता सेनानी' होने का सम्मान दिया है।

बिहार: 14 साल की उम्र में बनाई 'फोल्डिंग साइकिल,' अपने इनोवेशन से दी पोलियो को मात!

By निशा डागर

बिहार के पश्चिमी चंपारण के एक गाँव से ताल्लुक रखने वाले संदीप कुमार बचपन से ही पोलियो ग्रस्त हैं और भारतीय डाक सेवा में डाक सहायक के तौर पर कार्यरत हैं। इसके साथ ही, संदीप एक इनोवेटर हैं। उन्होंने एक 'फोल्डिंग साइकिल' बनाई, जिसके लिए साल 2009 में उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने सम्मानित किया।