ICSE/ISC की बोर्ड परीक्षा की तारीखों की घोषणा हो चुकी है। इनकी तैयारी से जुड़े पांच बेहद जरूरी और आसान तरीके बता रही हैं, दिल्ली-एनसीआर में रहने वाली अंग्रेजी टीचर, गगनप्रीत अहलूवालिया।
चंडीगढ़ के रहने वाले भाई-बहन, वृत्ति नरूला और पार्थ नरूला ने लॉकडाउन के दौरान, अपने खेतों में उगी जैविक स्ट्रॉबेरी को लोगों तक पहुंचाना शुरू किया था। आज अपने ब्रांड नाम ‘फ्रेशविल’ के जरिए, वे ताजा स्ट्रॉबेरी के साथ-साथ, जैम, क्रश, स्लश जैसे खाद्य उत्पाद भी लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं।
बेंगलुरु में रहने वाले 58 वर्षीय विश्वनाथ मल्लाबादी एक इको-आर्टिस्ट हैं, जो पिछले आठ सालों से इलेक्ट्रॉनिक कचरे को अपसायकल करके ज्वेलरी, पेंटिंग, मिनी बिल्डिंग, डमी रोबोट आदि बना रहे हैं।
केरल के कोल्लम जिले में कोट्टाराकरा के रहने वाले 41 वर्षीय डॉ. हरि मुरलीधरन, पिछले 10 सालों से अपने खेत में लगभग 800 विदेशी प्रजातियों के फलों के पेड़-पौधे उगा रहे हैं। जिनमें सॉनकोय, अलामा, यूगु, बिगनेय आदि शामिल हैं।
देहरादून के मोथरोवाला में रहने वाली, मालती हलदार ने लॉकडाउन में अपनी नौकरी खोने के बाद, आपदा को अवसर में बदलते हुए, अपने बचपन के सपने को पूरा करने के लिए, 'Mal_Cui' नाम से अपने एक होम किचन की स्थापना की। अब, वह पांच महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
गुजरात के जूनागढ़ में पिखोर गाँव के रहने वाले, अमृत भाई अग्रावत (75) किसानों के लिए कई तरह के आविष्कार करके, उनकी समस्याओं को हल करते हैं। अपने इन्हीं कार्यों के लिए, उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले हैं और उनके एक आविष्कार को पेटेंट भी मिला है।
गर्मियों के मौसम में, देश के कई इलाकों का तापमान 40 डिग्री को भी पार कर जाता है। जिसका असर न सिर्फ हम लोगों बल्कि पेड़-पौधों पर भी पड़ता है। इसलिए, गर्मियों के मौसम में अपने पेड़-पौधों का ख्याल रखने के कुछ जरूरी टिप्स सीखिए, गार्डनिंग एक्सपर्ट एनेट मैथ्यू से।
रांची, झारखंड की रहने वाली शोभा कुमारी, पिछले 27 सालों से हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में काम कर रही हैं। अपने संगठन ‘सृजन हैंडीक्राफ्ट्स’ के जरिए, वह हैंडीक्राफ्ट बैग और मिट्टी की गुड़िया जैसी चीज़ें बना रही हैं। उन्होंने अब तक हजार से ज्यादा महिलाओं को निःशुल्क ट्रेनिंग दी है। साथ ही, वह 40 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं।
पंजाब के फाजिल्का में गांव ढिंगावाली के रहने वाले 60 वर्षीय किसान, सुरेंद्र पाल सिंह अनाज, दलहन, तिलहन और फलों के साथ-साथ, देसी कपास की भी जैविक खेती करते हैं। वह खुद अपने कपास की प्रोसेसिंग कर, इससे त्वचा के लिए उपयुक्त जैविक कपड़े भी बनवा रहे हैं।