कई बार पढ़ाई-लिखाई और नौकरी के चक्कर में हमें अपने घर से दूर जाना पड़ता है। कश्मीर के रहने वाले फयाज़ अहमद डार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। पहले, पढ़ने और फिर बाद में नौकरी के सिलसिले में वह देश के दूसरे राज्यों और विदेश में रहे। लेकिन अपनी मिट्टी से वह ज्यादा समय तक दूर नहीं रह पाए और कश्मीर वापस आकर पहले Eco Village की शुरुआत की।
साल 2010 में जब फयाज़ अहमद डार कश्मीर वापस आए, तो उनके पास केवल एक ही मकसद था। वह अपनी जगह और वहां के लोगों के लिए काम करना चाहते थे। वह कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना चाहते थे।
फयाज़ का जन्म और पालन-पोषण कश्मीर के गांदरबल में हुआ। उन्हें अपनी जड़ों और परवरिश पर हमेशा से बहुत गर्व था। स्कूली शिक्षा के बाद, आगे की पढ़ाई और नौकरियों के कारण उन्हें अपने राज्य से बाहर जाना पड़ा। हालाँकि इससे उन्हें विभिन्न देशों और संस्कृतियों के बारे में जानने का अच्छा मौका मिला, लेकिन उनके मन के एक कोने में कश्मीर हमेशा से धड़कता रहा।
अपनी जगह और लोगों के प्रति उनका प्यार इतना गहरा था कि वे ज्यादा दिन दूर रह नहीं पाए और कश्मीर वापस आ गए। वापस लौटने के बाद, उन्होंने गांदरबल जिले में ‘साग’ नाम के एक इको-विलेज का निर्माण किया है। साल 2016 में खोला गया, यह कश्मीर का पहला और एकमात्र इकोलॉजिकल सस्टेनेबल विलेज है।
सिर्फ टूरिज़्म नहीं, जीवन जीने का नया नज़रिया देना है मकसद

सिंध नदी के किनारे बनाया गया साग इको विलेज, कश्मीर की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत को बचाने और बढ़ावा देने के लिए एक अनूठी पहल है। साथ-साथ यह सस्टेनबल जीवन के महत्व को भी बताता है।
करीब 1.5 एकड़ में फैले इस इको-विलेज में रहने के लिए सुंदर मिट्टी के घर हैं। यहां एक ऑर्गेनिक खेत भी है। खेत में उगाई जाने वाली ताज़ी फसल का इस्तेमाल यहां की रसोई में किया जाता है। इसके अलावा, यहां जीरो वेस्ट कॉन्सेप्ट का पालन किया जाता है। यानि कोई भी चीज़ कचरे में नहीं जाती है। इससे सस्टेनेबल टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है।
यहां आने वाले मेहमानों के मनोरंजन का भी भरपूर ख्याल रखा जाता है। इसके अलावा, साग में छात्रों के लिए रेजिडेंशिअल और एजुकेश्नल कैंप, वर्कशॉप और ट्रेनिंग की भी सुविधाएं हैं। यहां तक कि सस्टेनेबल और इको-फ्रेंडली जगह बनाने में रुचि रखने वाले लोगों के लिए कंस्लटेशन सर्विस भी दी जाती है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए फयाज़ डार बताते हैं, “साग इको विलेज में केवल सस्टेनेबल मनोरंजन की जगह बनाने की कोशिश नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ियों, विशेष रूप से कश्मीर की युवा पीढियों को ऐसी व्यवस्था में ढालने का एक प्रयास है, जिससे उन्हें अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास हो और साथ ही बेहतर जीवन जीने की दिशा में उनका मार्गदर्शन हो सके।”
दिल्ली की नौकरी को अलविदा कह, शुरू किया Eco Village
फयाज़ बताते हैं कि उन्हें अनेक संस्कृतियों और लोगों के बारे में काफी अच्छी जानकारी थी। उन्होंने बताया, “मैंने विभिन्न क्षेत्रों में आठ से दस ऑर्गेनाइजेशन्स में काम किया। काम के सिलसिले में काफी यात्रा भी की। मेरी यात्रा ने मुझे विभिन्न संस्कृतियों को समझने में मदद की और उन अनुभवों ने मुझे अपनी जगह और जन्मभूमि के लिए कुछ करने की आवश्यकता का एहसास कराया।”
फयाज़ ने होम्योपैथिक डिस्पेंसरी में एक असिस्टेंट के रूप में काम करने से शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कई सेक्टर में काम किया, खुद को अपडेट किया और बाद में यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया एजुकेशनल फाउंडेशन (USIEF) के लिए एक एडमिनिस्ट्रेटिव एंड प्रोजेक्ट ऑफिसर बन गए।

वह बताते हैं कि साल 2009 में उन्होंने अपनी दिल्ली की नौकरी को अलविदा कह दिया और यूएस के एक कोर्स में दाखिला लिया। बाद में वह यूएस से कश्मीर वापस लौट आए। वह कहते हैं, “मेरी जीवन यात्रा ने मुझे यह समझने में मदद किया कि कश्मीर में पालन-पोषण किस स्थिति में होता है और कैसे हममें से ज्यादातर लोग अपनी सुरक्षा के कारण कई क्रिएटिव चीजें छोड़ देते हैं।”
यह भी पढ़ेंः 800 पेड़ों के बीच किसान भाईयों ने बनाया इको फ्रेंडली फार्म स्टे, वह भी एक भी डाली काटे बिना
कैसे हुई Sagg Eco Village की शुरुआत?
फयाज़ कहते हैं कि, उन्होंने यहां वापस लौटकर युवा लोगों के साथ काम करने का फैसला किया, ताकि उनके साथ अपने अनुभव साझा कर सकें और उनका मार्ग दर्शन कर सकें। फयाज ने मूल सस्टेनेबिलिटी रीसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर नाम के एक गैर-लाभकारी पहल के साथ शुरुआत की। जहां उन्होंने कई गैर सरकारी संगठनों के साथ कोलेबोरेट किया और युवाओं की जरूरतों को समझने की कोशिश करते हुए कई पार्टिसिपेटरी रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम किया।
वह बताते हैं कि सबसे पहले रिसर्च प्रोजेक्ट का टाइटल ‘नीड्स असेसमेंट ऑफ यूथ’ था, जहां उन्होंने कश्मीर, लद्दाख और जम्मू में एजुकेशनल इंस्टिट्यूट के छात्रों से बातचीत की और उनकी समस्याओं को समझने और उनके समाधान खोजने की कोशिश की।
उन्होंने बताया, “इस प्रोजेक्ट के माध्यम से, हमने यह कल्पना करने की कोशिश की कि हम सभी किस तरह के समाज में रहना चाहते हैं और इसे हमारे प्रयासों से कैसे संभव बनाया जा सकता है? लोग अक्सर सह-अस्तित्व, आत्मनिर्भरता, स्थिरता, गरिमा, समानता, समावेशिता आदि के बारे में बात करते हैं। लेकिन ऐसी कोई जमीनी या व्यावहारिक पहल नहीं थी, जो इन सभी का उदाहरण दे सके। इसलिए, हमने इसे खुद करने का फैसला किया और इस तरह साग इको-विलेज का जन्म हुआ।”
बदहाल ज़मीन के टुकड़े की बदल दी तस्वीर

फयाज बताते हैं, साग शब्द का अर्थ कश्मीरी में ‘पोषण’ होता है। 2013 में उन्होंने साग को स्थापित करने के लिए जमीन खरीदी। वह बताते हैं कि तलहटी में यह एक बंजर जमीन का टुकड़ा था। पानी और बिजली जैसी कोई बुनियादी सुविधा नहीं थी और यह पूरी तरह से चट्टानों और कांटों से भरा हुआ था।
लेकिन फयाज़ को विश्वास था कि वह इसे किसी सफल चीज़ में बदल सकते हैं। वह कहते हैं, “धीरे-धीरे और लगातार, अपने वॉलंटियर्स और कर्मचारियों की मदद से, हम जमीन को आज की स्थिति में बदलने में सक्षम हुए।”
कश्मीरी संस्कृति और विरासत का सही सार प्रस्तुत करने वाले इकोफ्रेंड्ली बिजनेस को शुरु करने में फयाज़ को करीब तीन साल का समय लगा। उन्होंने इसे खोलने के लिए अपनी बचत और अपने दोस्तों और परिवार से उधार लिए। शुरुआत में उन्होंने करीब 60 लाख रुपये का निवेश किया।
साग में अब एक इको-कल्चरल, मनोरंजक और एजुकेश्नल फार्म और कैंपिंग सुविधा है। फयाज़ बताते हैं कि पुराने समय की तरह ही यहां मिट्टी के घर और कॉटेज बनाए गए हैं और इन घरों में लकड़ी और बेंत का उपयोग करके सजावट की गई है। इसके अलावा, यहां खाना परोसने के लिए जितने भी बर्तन इस्तेमाल होते हैं, वे भी मिट्टी के ही हैं।
क्या-क्या हैं सुविधाएं?
फयाज़ बताते हैं, “निर्माण के लिए आवश्यक सभी सामग्रियों को स्थानीय रूप से सोर्स किया गया है और यहां तक कि यहां इस्तेमाल किया जाने वाला फर्नीचर भी स्थानीय लकड़ी का उपयोग करके कारीगरों द्वारा बनाया गया है।”
व्यक्तिगत रूप से छुट्टियां मनाने और मनोरंजन के लिए एक जगह के अलावा, साग में कई तरह के इवेंट, रिट्रीट, सोशल गैदरिंग, सैर, ट्रेक, वर्कशॉप, इको-थेरेपी, आर्ट थेरेपी और मड थेरेपी सेशन भी होते हैं। यहां कश्मीर और बाहर से आए लोगों के लिए, ऑर्गेनाइजेशन को ट्रांसफॉर्मेशन एजुकेशन, वर्क, डेवलपमेंट एंड लीडरशिप कपैसिटी बिल्डिंग एंड कंसल्टिंग प्रोग्राम कराने की सुविधा भी है।

यहां आने वाले लोगों की वर्कशॉप मुख्य रूप से बिजनेस, ऑर्गेनिक खेती, खाद, अपसाइक्लिंग, फूड प्रोसेसिंग, हैंडक्राफ्ट आदि पर केंद्रित होती है।
श्रीनगर के परसा महजूब कहते हैं, “साल 2020 में, मैंने उनके लीडरशिप कार्यक्रम में भाग लिया, जो एक रेजिडेंशिअल कार्यक्रम था। इसलिए, मैं अक्टूबर से दिसंबर तक हर महीने दो-तीन दिनों के लिए साग का दौरा करता था। यह एक जीवन बदलने वाला अनुभव था और मैं इस जगह से भावनात्मक रूप से जुड़ गया।”
यह भी पढ़ेंः कारीगरों ने छोड़ा काम फिर कैसे तैयार हुआ मिट्टी का यह होम स्टे, जहां आते हैं कई सेलिब्रिटी
इस Eco Village में रुकने के क्या हैं चार्जेज़?
साग में कुछ समय बिता चुकीं 21 वर्षीया युवा महिला कहती हैं, “मैंने 2019 में कश्मीर लौटने से पहले अपने जीवन के लगभग 18 साल बेंगलुरु में बिताए। लेकिन मुझे साग के माध्यम से कश्मीरी संस्कृति के बारे में और जानने का मौका मिला। इसके अलावा, यह जगह स्वदेशी रूप से बनाई गई है और उन्होंने हर पहलू में कश्मीरी संस्कृति को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश की है।”
साग इको-विलेज जब भी कोई इवेंट आयोजित करता है, तो वहां यह युवा महिला वॉलन्टियर करती हैं। वह कहती हैं, “मैं सुनिश्चित करती हूं कि मैं उनकी पहल का हिस्सा बनूं, क्योंकि वह जिस उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं वह बहुत सार्थक है। हमारे जैसे संघर्ष वाले क्षेत्र में रहते हुए, हमारे पास ऐसी जगह नहीं है, जहां हम वास्तव में उस तरह से विकसित हो सकें, जिस तरह से साग कश्मीर में लोगों को विकसित करना चाहता है।”
फयाज का कहना है कि युवाओं को ध्यान में रखते हुए साग में आने वालों के लिए किराया काफी किफायती रखा गया है। वह बताते हैं, “हम रात भर ठहरने के लिए 500 रुपये लेते हैं, जिसमें नाश्ता भी शामिल है। वहीं डॉरमेट्री में रहनेवालों के लिए किराया प्रति व्यक्ति 700 रुपये है। यहां तक कि माइंडसेट सेशन जैसे शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए केवल 299 रुपये का भुगतान करना पड़ता है और छात्रों के लिए चार दिन और तीन रात के रेजिडेंशिअल कैंप के लिए प्रति व्यक्ति 5,000 रुपये देने पड़ते हैं।”
कितनी होती है कमाई?

फयाज़ के पास एक ऑर्गेनिक खेत भी है, जहाँ ताज़ी और ऑर्गेनिक सब्जियों, मसालों और जड़ी-बूटियों की खेती करते हैं। वह बताते हैं कि साग विलेज में खाद, ऑर्गेनिक खेती आदि का अभ्यास करके जीरो वेस्ट कॉन्सेप्ट को बढ़ावा देने की कोशिश की जाती है।
यहां प्राकृतिक सामग्रियों का इस्तेमाल करते हुए पारंपरिक व्यंजन तैयार करके बेचते हैं। वह कहते हैं, “हमारे खेतों में जो उगाया जाता है, उसका इस्तेमाल हमारी रसोई में किया जाता है। साथ ही यहां स्थानीय लोगों के लिए कई तरह के वर्कशॉप कराए जाते हैं, जहां उन्हें कई तरह के प्रोडक्ट, जैसे-अचार, जैम, हाथ से बने साबुन आदि बनाना सिखाया जाता है।”
फयाज़ चाहते हैं कि यहां स्थानीय लोगों की भागीदारी भी हो। इसके लिए उन्होंने स्थानीय लोगों के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था भी की है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी मनोरंजक और एजुकेशनल कैंप में कम से कम 20 से 25 प्रतिशत स्थानीय भागीदारी हो।
हालांकि, कोविड के समय यहां का कारोबार धीमा हो गया था, लेकिन अब धीरे-धीरे यह रास्ते पर आ रहा है। वर्तमान में फयाज़ की मासिक आय करीब 5 लाख रुपये है।
अधिक जानकारी के लिए आप उनकी वेबसाइट पर विज़िट कर सकते हैं।
मूल लेखः अंजली कृष्णन
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः कूड़े के ढेर को बदला मिनी जंगल में, चूने, मिट्टी और रिसाइकल्ड चीज़ों से बनाया आर्ट विलेज
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: