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शनिवार की चाय

मुझसे पहली सी मोहब्बत

By मनीष गुप्ता

मैं कतई नहीं मानता कि ये एक आग का दरिया है और डूब के जाना है. मोहब्बत तो दूध-शहद की नदी है.. रमणीय यात्रा है. हाँ लहरें तेज़ हो जाती होगीं, रास्ते में चलती होंगी शोरीली आँधियाँ, ओले कभी खाने से भरे होंगे कभी ख़ाली झोले कभी उछल कर सर पर बैठ जाओगे, कभी तुनक कर चार दिन नहीं बोले

दिल के हैं बुरे लेकिन अच्छे भी तो लगते हैं

By मनीष गुप्ता

आसान सा लेख है पर अगर मन भारी हो गया हो तो माफ़ी. इलाज के तौर पर ये वीडियो हाज़िर है.. देखें परवीन कैफ़ की नशा ला देने वाली मासूमियत को.. कहती हैं..

बाल की खाल के कबाब!

By मनीष गुप्ता

आग्रह है कि संस्कृति बचाने के नारे लगाने की बजाय उसका आनंद लें. हमारी लोक-संस्कृति की इतनी मीठी, मसालेदार बानगी - हमारा सदियों पुराना गीत. लाखों लोग अभिभूत हुए, उन्हें अपनी अपनी आँचलिक भाषाओं पर प्यार आया, उनका प्रयोग करने की झिझक टूटी

रूमी से मिले?

By मनीष गुप्ता

रूमी : हम तो सब कुछ ढूँढ रहे हैं - पैसा, नाम, काम, कर्म, भगवान, दोस्त, प्रेमी, सुख, पहाड़, समुद्र, तैरना, उड़ना, टूटना, जुड़ना.. पर क्या ये सब हमें ढूँढ रहे हैं?'

मृत्यु : आख़िरकार है क्या?

By मनीष गुप्ता

अपनी हानि पर शोक ठीक है लेकिन जो गया उसके लिए तो एक नया अध्याय आरम्भ हुआ है. हम उसे जाने दें.. अच्छे से विदा करें ताकि नए अध्याय में वह आसानी से रम सके.

बाबा बुल्ले शाह दा टूथपेस्ट!

By मनीष गुप्ता

बाबा बुल्ले शाह दा टूथपेस्ट - एक कटाक्ष है हमारे आज के बाबाओं पे जो सादगी भूल चुके है. मनीष गुप्ता हर बार ई तरह अपने सहज भाव से एक बड़ी बात कह जाते है.

हम वही काट रहे हैं जो बोया है!

By मनीष गुप्ता

(अ)सभ्यता का आरम्भ /का अंत... हमारी बदलती सम्भयता पर मनीष गुप्ता की दिल दहला देने वाली कविता सुनिए। साथ ही पढ़िए कैसे आम आदमी अपनी ही कुपरिस्तिथि का ज़िम्मेदार है.