व्हाट्सएप के जरिए खेती का पाठ पढ़ा रही हैं केरल की यह टीचर

“मुझे लगता है कि सरिता मैम ने हमें जो सबसे अच्छी सलाह दी है, वह है कीटनाशक के रूप में चावल के स्टार्च का उपयोग करना। स्टार्च चिपचिपा होता है जिसके कारण कीट पौधे पर चिपक जाते हैं। मुझे यह रासायनिक कीटनाशकों का एक बढ़िया विकल्प लगता है।” – अनघा, छात्रा

केरल के कोच्चि के कोकानाड में मारथोमा पब्लिक स्कूल में  सीनियर हिंदी टीचर सरिता विजयकुमार एक ऐसी टीचर हैं, जो शिक्षा क्षेत्र के प्रचलित मानदंडों और कार्यप्रणालियों का पालन करने की बजाय लीक से जरा हटकर सोचती हैं। उन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घर में बैठकर बोर हो रहे छात्रों को कुछ क्रिएटिव और अलग स्किल सिखाने का रास्ता निकाला।

सरिता विजयकुमार ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब सरकार ने लॉकडाउन लागू किया, तो मैंने देखा कि मेरे पड़ोस में बहुत सारे बच्चे बेकार बैठे थे। वे अपने दोस्तों के साथ बाहर जाकर खेल भी नहीं सकते थे। मुझे तब एहसास हुआ कि बच्चों को नए स्किल सिखाने का यह सबसे अच्छा समय है और खेती एक ऐसी चीज है जो कभी भी काम आ सकती है।” 

सरिता काफी समय से अपने घर के पिछले हिस्से में सब्जियाँ उगाती  हैं और घर की ताजी सब्जियों का लुत्फ उठाती हैं। उन्होंने यह उपयोगी कौशल अपने छात्रों को सिखाने के बारे में सोचा।

सरिता ने 9वीं कक्षा के अपने 35 छात्रों के साथ एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और पिछले एक महीने से उन्हें मुफ्त में खेती की शिक्षा दे रही हैं। यह टीचर युवा छात्रों को खेती के टिप्स और ट्रिक बताकर अपना खुद का बगीचा तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। हर दिन, बच्चे चित्रों और वीडियो के माध्यम से अपने अपडेट शेयर करते हैं और सरिता उन्हें जरूरी सलाह देती हैं।

एक आइडिया, जो सफल रहा

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स्कूल में बच्चों के साथ पौधे लगातीं सरिता

लॉकडाउन के बाद जब बच्चे घर में बंद हो गए, तब सरिता और उनके पति विजयकुमार, जो कि फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर लिमिटेड (FACT) में एक इंजीनियर हैं, ने साइंस स्ट्रीम विषयों और करंट अफेयर्स के लिए ऑनलाइन कोचिंग क्लासेस शुरू की। हालाँकि उनका विचार अपने पड़ोस में लगभग 30 बच्चों को प्रशिक्षित करने का था, लेकिन इसमें भाग लेने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती रही।

सरिता बताती हैं, हमारी ऑनलाइन कक्षा के लिए पंजीकृत छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, मुझे लगा कि बच्चे कुछ नया सीखने के लिए बहुत तत्पर हैं। तब मैंने ऑनलाइन कक्षाओं में खेती जैसी उपयोगी चीजों को शामिल करने की सोची।

प्रशासन और स्कूल के प्रिंसिपल से बात करने के बाद सरिता ने अपना व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। सबसे पहले जो समस्या आई वह थी छात्रों के घरों में जगह की कमी। वह कहती हैं, “अधिकांश छात्र अपार्टमेंट में रहते हैं और उनके पास बहुत कम जगह है। मैंने उन्हें जगह की कमी की भरपाई करने के लिए ग्रो बैग और छत पर खेती का सुझाव दिया। खेती के लिए बच्चों में बढ़ती रुचि देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। प्रत्येक दिन वे मुझे इस बात से अपडेट करते हैं कि उनके पौधे किस तरह बढ़ रहे हैं। उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्राकृतिक उर्वरकों के साथ ही वे यह भी पूछते हैं कि उन्हें पर्याप्त धूप के लिए पौधे को कहाँ रखना चाहिए।

स्कूल में खेती

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सरिता समय समय पर बच्चों को ज्ञान देती रहतीं हैं।

खेती में बच्चों की रुचि को देखते हुए सरिता अपने स्कूल में खेती से जुड़ी गतिविधियाँ शुरू कर रही हैं। पिछले दस वर्षों से सरिता स्कूल परिसर में विभिन्न प्रकार की सब्जियों, जड़ी-बूटियों और फलों की खेती कराती हैं, जिसमें छात्र बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने प्लास्टिक की थैलियों और इस्तेमाल किए गए पेन को इकट्ठा करके स्कूल में एक रीसाइक्लिंग पहल भी शुरू की है। जमा वस्तुओं को या तो फिर से उपयोग के लायक बनाया जाता है या रीसाइक्लिंग सेंटर में ले जाया जाता है।

इसके अलावा, सरिता शहर में एक मीडिया हाउस द्वारा शुरू किए गए स्टूडेंट एम्पावरमेंटर फॉर एनवॉयरमेंटल डेवलपमेंट (SEED) प्रोग्राम की स्कूल कोऑर्डिनेटर हैं। इस पहल का उद्देश्य छात्रों के बीच पर्यावरण की रक्षा के लिए ग्रीन कल्चर और जागरूकता पैदा करना है।

सरिता के साथ इसी प्रोजेक्ट से जुड़े मार थोमा पब्लिक स्कूल के सेवानिवृत्त शिक्षक बेन्ज़ी थॉमस बताते हैं, “इस पहल का हिस्सा होने के नाते स्कूल ने हर हफ्ते 8वीं और 9वीं कक्षाओं के लिए एक पीरियड निर्धारित किया है। इस पीरियड में हम छात्रों को खेती के विभिन्न तरीकों, ग्राफ्टिंग तकनीकों के बारे में बताते हैं। साथ ही उन्हें पौधों के लिए रोजमर्रा की आवश्यक जरूरतों का ध्यान रखने के बारे में बताते हैं।

लॉकडाउन फॉर्मिंग

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अपनी बेटी सैंड्रा के साथ सरिता

सरिता दो दशकों से अधिक समय से खेती कर रही हैं। 12 वीं में पढ़ने वाली अपनी बेटी सैंड्रा और अपने पति के सहयोग से उन्होंने अपने घर के पास सिर्फ 35 सेंट की जमीन में हरी मिर्च, टैपिओका, पालक और टमाटर की खेती करने में कामयाबी हासिल की है।

वह बताती हैं, “ऑनलाइन कक्षाओं के बाद मुझे अपने घर के आसपास छोटे खेतों की देखभाल करने में लगभग 2 घंटे लगते हैं। घर पर ही खेती करने की वजह से मुश्किल से ही कभी मुझे सब्जियाँ खरीदने के लिए बाज़ार जाना पड़ता है।

सरिता अक्सर अपने खेती के अनुभव को छात्रों के साथ साझा करती हैं और प्राकृतिक उर्वरकों और खादों को बनाने के लिए अनोखे सुझाव और तकनीक बताती हैं।

सरिता के छात्रों में से एक अनघा ने ऑनलाइन फॉर्मिंग क्लास और उनके द्वारा बताए गए अनोखे टिप्स के बारे में टीबीआई से बात करते हुए कहा कि, “ मैम ने हमें जो कुछ सीखाया है, उसमें से मुझे जो सबसे अच्छा लगता है, वह है, कीटनाशक के रूप में चावल के स्टार्च का उपयोग करना। स्टार्च चिपचिपा होता है जिसके कारण कीट पौधे पर चिपक जाते हैं। मुझे यह रासायनिक कीटनाशकों का एक बढ़िया विकल्प लगता है।

सरिता बताती हैं , “एक टीचर होने के नाते मैं ऑनलाइन फार्मिंग क्लास के जरिए हमारे पाठ्यक्रम में एक कमी को भरने की कोशिश कर रही हूँ। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि आज की पीढ़ी इस तरह के कौशल के प्रति रुचि दिखा रही है।

सरिता के प्रयास और बच्चों को जागरूक करने की इस पहल को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

मूल लेख-

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