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5000+ बच्चों के लिए विज्ञान को मजेदार बना रहा है मैसूर का यह 'आश्रम'!

By निशा डागर

ध्रुव और रोहन का बचपन पढ़ाई के साथ-साथ रोहन के दादाजी के गैराज में भी बीता। जहां वे दोनों पुरानी चीजों को नया रूप देते थे और वहीं से उन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए यह 'आश्रम' शुरू करने की प्रेरणा मिली!

लोगों के ताने और पत्थर की मार खाकर भी इंजीनियर 'अप्पा' ने लिया 55 HIV+ बच्चों को गोद!

By निशा डागर

HIV+ बच्चों को गोद लेने की वजह से लोगों को लगता था कि महेश खुद HIV+ हैं। इसलिए वह जहाँ भी जाते उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता। लेकिन जब महेश को उनके काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो वही लोग उनके स्वागत में रेलवे स्टेशन पर पहुंचे।

पानी से भरा एक पुल, बीच में फंसी एंबुलेंस, फिर 12 साल के बच्चे ने दिखाई राह!

वेंकटेश वीरता पुरस्कार मिलने से खुश है, लेकिन वह अब भी कहता है कि उसने सिर्फ वही किया जो हर इंसान को करना चाहिए - 'एक दूसरे की मदद'!

पूर्व नौसेना अफसर ने शुरू किया 'पेट भरो प्रोजेक्ट', सिखा रहे हैं पेस्टीसाइड-फ्री खाना उगाना!

By निशा डागर

पेस्टीसाइड-फ्री होने के साथ-साथ यह तकनीक मिट्टी-फ्री भी है, यानी आपको इन सब्ज़ियों को उगाने के लिए मिट्टी की ज़रूरत नहीं है!

सुबह 4 बजे उठकर सब्जी बेचनेवाली ललिता बन गई हैं एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की स्टेट टॉपर!

ललिता, इसरो के चीफ, के. सिवान को अपना रोल मॉडल मानती हैं। उनका सपना है कि वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनें।

केवल 10 रूपये में दवा भी और इलाज भी, यह 79 वर्षीय डॉक्टर नहीं हैं किसी मसीहा से कम!

By निशा डागर

"मैंने गरीबी देखी है और मुझे पता है कि कुछ बहुत ज़रूरी दवाइयों के भी पैसे ना जुटा पाना कैसा होता है।"

मात्र 99 रुपये में पाएं 300 लीटर शुद्ध पानी!

By निशा डागर

निरंजन का कहना है कि उनके फिल्टर की मांग भारत के अलावा, श्रीलंका, नेपाल, न्यूज़ीलैंड, मलेशिया, अबु धाबी, क़तर जैसे 50 से ज्यादा देशों में है।

एक सब्ज़ी, चाहो तो खा लो, चाहो तो सजा लो! बूझो क्या?

By निशा डागर

सीमा प्रसाद ने अब तक 68 ग्रामीण महिलाओं को इस सब्ज़ी से क्राफ्ट बनाने की मुफ्त ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है!

बंगलुरु: इस डॉक्टर के प्रयासों ने एक डंपयार्ड को बदला दादा-दादी पार्क में!

By निशा डागर

लोगों को कचरा न फेंकने के लिए समझाना बहुत ही मुश्किल काम था। अगर उन्हें रोका जाता तो वे उल्टा डॉ. अग्रवाल से ही बहस करते कि अगर यहाँ न फेंके तो कहाँ फेंके?