इमारतों को डिजाइन करते समय पर्यावरण का ध्यान रखना हमेशा ही जितेंद्र पी. नायक की पहली प्राथमिकता रही है। हुबली के रहने वाले जितेन्द्र पेशे से एक आर्किटेक्ट हैं और पिछले 24 वर्षों से अपने काम में टिकाऊपन का विशेष ख्याल रख रहे हैं।
47 वर्षीय जितेन्द्र बताते हैं, “एक बार इस्तेमाल हो चुकी सामग्री को दोबारा से इस्तेमाल में लाना हमेशा से मेरा शौक रहा था। एक वास्तुकार होने के नाते मैंने हुबली में बहुत सी पुरानी धरोहरों का नवीकरण किया है। हमने कुछ साल पहले ध्वस्त होने की कगार पर खड़ी एक इमारत को बचाया और इसे मॉडर्न आईटी सेल में बदल दिया।”
यहाँ तक कि जब इमारतों को गिराया जाता है और अगर उस प्रोजेक्ट के आर्किटेक्ट वह खुद होते हैं तो वह हर एक ईंट और लकड़ी के टुकड़े का हिसाब-किताब रखते हैं। फिर वह उन सामग्रियों का इस्तेमाल नई इमारतें बनाने में करते हैं। इस तरह कई टन संसाधनों और कार्बन फुटप्रिंट की बचत हो जाती है।
वह हुबली स्थित अपनी आर्किटेक्चर फर्म ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर वन’ के जरिए ग्राहकों को अपनी सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। 15 सालों में इस फर्म ने पूरे कर्नाटक में 200 प्रोजेक्ट पूरे किए हैं। हालाँकि पिछले पाँच सालों से उनका ध्यान सिर्फ ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण पर रहा है।
लेकिन बाद में उन्हें लगा कि उनके ग्राहकों को इसकी बेहतर समझ और जागरूकता ना होने के कारण ग्रीन बिल्डिंग का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो सकता है।
वह कहते हैं कि, “हालाँकि हमने ऐसी बहुत सी इमारतों का निर्माण किया है जिसमें हमने ध्वस्त इमारतों के पुराने पिलर, ईंट और खंभों जैसे मैटीरियल का दोबारा इस्तेमाल किया। लेकिन हर कोई इसे खुले मन से स्वीकार नहीं कर पाता है। ज्यादातर ग्राहकों को लगता है कि वे जीवन में एक ही बार घर बनवाते हैं इसलिए वे पुरानी सामग्री का इस्तेमाल करना नहीं पसंद करते हैं। लेकिन उनकी ये सोच गलत है।”
लगभग 10 साल पहले जब जितेंद्र को अपना घर बनाना था तो उनके पास मनचाहा काम करने का मौका था। अंततः वह समय आ गया था कि वह जिस तरीके के बारे में लोगों को समझाते हैं, वही तरीका अपने घर में आजमाएँ।
2,500 वर्ग फीट की जमीन पर उन्होंने पुरानी सामग्रियों का दोबारा इस्तेमाल करके एक सुंदर घर का निर्माण किया और इस तरह कुल लागत में 40 प्रतिशत की बचत हुई!
इसके अलावा ग्रीन बिल्डिंग मैटेरियल जैसे फेरो सीमेंट स्लैब के इस्तेमाल के जरिए वह स्टील के इस्तेमाल में 80 प्रतिशत की कटौती कर पाए। यही मैटेरियल, सीमेंट के 60 प्रतिशत इस्तेमाल की भी बचत करता है।
उन्होंने घर के निर्माण और चारों ओर वेंटिलेशन के लिए अनोखी तकनीकों का भी इस्तेमाल किया। इस तकनीकि से घर में किसी एसी की जरूरत नहीं पड़ती है!
जितेन्द्र बताते हैं, “जब अपना खुद का घर बनाने की बारी आयी तो मैंने सोचा कि क्यों न इसे एक बेहतरीन उदहारण के तौर पर पेश किया जाए।“
ग्रीन बिल्डिंग विजन
जितेंद्र ने अपने सबसे पहले काम के अनुभव से पुरानी इमारतों को बचाने और अवशेषों के महत्व एवं उपयोगिता को जाना और समझा।
हुबली स्थित बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से आर्किटेक्चर में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जितेंद्र अहमदाबाद आ गए जहाँ उन्होंने केबी जैन और एसोसिएट्स के तहत एक साल तक काम किया। यहीं से उन्होंने अपसाइकलिंग सीखी और मैटीरियल को दोबारा इस्तेमाल करने की संभावना का पता चला।
सही सामग्री का उपयोग करना
संयुक्त परिवार में रहने के बाद जितेंद्र ने 2010 में अपना घर बनाने का फैसला किया। तब उन्हें लगा कि ग्रीन बिल्डिंग बनाने के लिए उन्हें अपने ज्ञान का इस्तेमाल करने का यह बेहतर मौका है। जिस जमीन पर उन्हें अपना घर बनाना था वह मुख्य शहर से 2 किमी दूर थी। लेकिन कुछ सालों में आसपास का क्षेत्र विकसित हो गया।
ग्रीन आर्किटेक्चर से लोगों को रूबरु कराने के लिए टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल मैटीरियल का इस्तेमाल करना उनका मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने निर्माण सामग्री के लिए वायर मेश और सीमेंट मोर्टार से पहले से निर्मित सीमेंट स्लैब जिसे फेरोसीमेनेंट कहा जाता है, का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इससे न सिर्फ निर्माण कार्य में आसानी हुई बल्कि इसके हल्के वजन के कारण निर्माण तेजी से हुआ। बेशक, जितेंद्र का घर नौ महीने में बनकर तैयार हो गया।
प्री-कास्ट स्लैब का उपयोग भवन के विभिन्न हिस्सों में और ज्यादातर छत के लिए किया गया है। ग्रीन आर्किटेक्ट जितेन्द्र ने इस सामग्री के उपयोग के कुछ अन्य फायदों के बारे में भी बताया है।
वह कहते हैं, “चूंकि यह पहले से ही एक कारखाने में निर्मित होता है इसलिए निर्माण के दौरान ज्यादा क्योरिंग करने (पानी डालने) की भी जरुरत नहीं पडती है जबकि सीमेंट से बनने वाले घरों में ठीक से क्योरिंग करना बहुत जरूरी होता है। इस तरह फेरोसीमेंट के इस्तेमाल करने से ज्यादा पानी की बर्बादी नहीं होती है। जबकि अगर आप परंपरागत ढंग से सीमेंट से घर बनवा रहे हैं तो 21 दिनों तक दीवारों पर पानी छिड़कना जरूरी है। इससे लगभग एक दिन में 3,000 लीटर पानी की बर्बादी होती है!
इससे इमारत की नींव के लिए लगभग 80 प्रतिशत स्टील की बचत हो जाती है। निर्माण के दौरान सीमेंट और पत्थरों का कम इस्तेमाल किया जाता है जिससे ज्यादा प्रदूषण भी नहीं होता है।
इसके अलावा निर्माण कार्य में पहले से इस्तेमाल हो चुकी लकड़ियों का भी दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। जितेन्द्र बताते हैं कि, “जब मशीनरी बाहर से आयात की जाती है, तो इसे इन मोटी अल्पाइन लकड़ी के लॉग में बदल दिया जाता है ताकि यह रास्ते में क्षतिग्रस्त न हो। एक बार इन्हें इस्तेमाल करने के बाद निकाल लिया जाता है। मुझे बेंगलुरू में एक स्क्रैप लकड़ी का व्यापारी मिला जो इसे कबाड़ के भाव में 32 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच रहा था।”
इसकी तुलना में अगर उन्होंने फ्रेश लकड़ी खरीदने का फैसला किया होता तो इससे 10 गुना कीमत अधिक लगती और पर्यावरण पर बोझ अलग से पड़ता। इससे उन्हें अपने खर्चों में 40 प्रतिशत की कमी लाने में मदद मिली। इस लकड़ी का उपयोग घर के चारों ओर तारों को छिपाने में भी किया गया।
इसके अलावा इंटीरियर डिजाइनर और जितेंद्र की पत्नी आशा नाइक ने अपने फर्नीचर बनाने के लिए भी स्क्रैप लकड़ी का इस्तेमाल किया।
पर्यावरण के अनुकूल घर का निर्माण
आर्किटेक्ट होने के नाते इमारत के निर्माण में काम आने वाली कुछ जरूरी ट्रिक्स जितेंद्र को मालूम है। घर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कोई एसी नहीं है और यह वास्तुकला की क्लाइमेटोलॉजी का कमाल है।
जितेंद्र ने बताया कि दक्षिण और पश्चिम दिशा की दीवारें अधिक धूप को अवशोषित करती हैं जिससे पूरी इमारत अंदर तक गर्म हो जाती है। इससे बचने के लिए उन्होंने बाँस की झाड़ियों की दीवार लगाकर इन दीवारों को बचाने का फैसला किया। इससे दीवारों पर छाया रहती है और घर गर्म नहीं होता है। यह घर के अंदरूनी हिस्सों को कम से कम दो डिग्री तक ठंडा रखता है। घर का एक और पहलू जो सामने आता है वह है बिना प्लास्टर वाली दीवारें।
जितेन्द्र बताते हैं कि उन्होंने दीवारों को प्लास्टर करने से क्यों परहेज किया। वह कहते हैं कि “इमारतों में प्लास्टर का इस्तेमाल केवल सुंदरता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह किसी भी तरह से इमारत को कोई मजबूती नहीं प्रदान करता है। इससे सिर्फ गर्मी बढ़ती है और समय के साथ दीवारों को फिर से प्लास्टर करने की चिंता बढ़ती है। इसलिए प्लास्टर न करने से हमें सामग्री और मेहनत कम खर्च करनी पड़ी।”
घर को डिजाइन करते समय जितेंद्र का पूरा ध्यान बेहतर वेंटिलेशन पर था। उन्होंने एयर सर्कुलेशन के लिए ‘फ़नल इफ़ेक्ट’ के नाम से जानी जाने वाली विंडो और ओपनिंग का इस्तेमाल किया। जिसमें अगल-बगल लगी दो सतहें उनके बीच की हवा को खिंचती हैं, जो हवा या हवा की गति को बढ़ाने में मदद करता है।
घर में हवा की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए उत्तर और पूरब की तरफ सुराखें खोली गई हैं। इन दीवारों के अनुकूल उन्होंने स्प्लिट विंडो भी बनाई है, जिससे घर पूरी तरह हवादार बनता है।
इसके अलावा फ्लोर पर एक छोटा सा चौकोर खुला एरिया है जो इमारत को दो मंजिले में बांटता है। यह स्प्लिट खिड़कियों के माध्यम से दोनों तरफ से हवा आने में मदद करता है।
ऊर्जा की बचत को ध्यान में रखते हुए घर के चारों ओर बड़ी खिड़कियाँ लगी हैं जिससे पूरे दिन घर में प्राकृतिक रोशनी आती है।
इसके अलावा पानी को संग्रहित करने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के साथ एक सोलर हीटिंग और पावर सिस्टम की व्यवस्था भी है।
यदि आप जितेंद्र से चुनौतियों के बारे में पूछेंगे तो आपको पता चलेगा कि या प्रोजेक्ट उनका पैशन था और इसमें उनकी मेहनत साफ़ झलकती है। ग्रीन बिल्डिंग पर सालों तक काम करने के बाद वह अब जानते हैं कि किसी भी बाधा से कैसे निपटा जाए।
ग्रीन होम में रहने वाले किसी भी सदस्य को इसके निर्माण के दौरान पर्यावरण का जितना ख्याल रखा गया है, उसके महत्व को समझना चाहिए।
अपनी बात खत्म करते हुए वे कहते हैं कि, “जब आप रसोई में जाते हैं, तो वहाँ मौजूद सामग्री देखकर आप तय करते हैं कि क्या बनाना है। आर्किटेक्चर में भी हम यही तरीका अपनाते हैं। हमारे पास जो कुछ मौजूद है, हमें उसका इस्तेमाल करना चाहिए। इसके साथ ही इस धारणा को तोड़ना चाहिए कि नई सामग्रियों के उपयोग से ही अच्छा घर बनता है। इन सामग्रियों का उपयोग करके भी सुंदर से सुंदर घर का निर्माण किया जा सकता है।”
मूल लेख-ANGARIKA GOGOI
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