जब भी हम ‘आश्रम’ शब्द सुनते हैं तो हमारे दिमाग में एक खुली-सी जगह, मिट्टी की झोपड़ियाँ, गेरुआ कपड़ों में साधू-संतों की छवि उभरती है। हमने बचपन से आश्रम के बारे में यही समझा और सुना है। लेकिन मैसूर का एक ‘आश्रम’ आपकी इस सोच को बिल्कुल बदल देगा। क्योंकि इस आश्रम में बच्चे मैकेनिकल टूल, सॉफ्टवेयर और डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल करके इनोवेशन करना सीखते हैं। जी हाँ, यह सिर्फ आश्रम नहीं बल्कि ‘साइंस आश्रम’ है।
इस साइंस आश्रम को शुरू किया है दो दोस्त और इंजीनियरिंग ग्रैजुएट्स, ध्रुव राव और रोहन अभिजीत ने। बचपन से दोस्त रहे रोहन और ध्रुव ने साल 2010 में अपनी ग्रैजुएशन पूरी की और इसके बाद कॉर्पोरेट की नौकरी ले ली। रोहन को ज्यादा दिन तक नौकरी रास नहीं आई क्योंकि यह उनका पैशन नहीं था। वहीं दूसरी, तरफ ध्रुवा ने लगभग 3- 4 साल नौकरी में निकाले।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए ध्रुव ने बताया, “रोहन ने कुछ महीनों में ही अपनी नौकरी छोड़कर मैसूर के ही एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। वह वहां बच्चों को फिजिक्स और गणित पढ़ाता था। बच्चों को पढ़ाना और उन्हें उनके प्रोफेशनल करियर के लिए मार्गदर्शन देने का अनुभव बहुत ही अलग था। रोहन से प्रेरित होकर मैंने भी अपनी नौकरी छोड़ दी और उसी स्कूल में केमिस्ट्री पढ़ाने लगा।”
यहाँ पर रोहन और ध्रुव सिर्फ शिक्षक नहीं थे बल्कि वे दोनों बच्चों को अपने स्तर पर मार्गदर्शन भी देते थे। उन्होंने अपने इस अनुभव से समझा कि रोज इजाद हो रही नयी-नयी तकनीकों ने स्थिति को बदल दिया है। वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी एक कक्षा में बच्चों से ‘बरमूडा ट्रायंगल’ के रहस्य के बारे में बात की।
दूसरे दिन, सभी बच्चे उसके बारे में पढ़कर आए थे। उनको इतनी जिज्ञासा थी कि उन्होंने इंटरनेट पर इससे संबंधित हर एक थ्योरी को पढ़ा और दूसरे दिन कक्षा में अच्छा डिस्कशन हुआ। उस दिन ध्रुव को समझ में आया कि बच्चों को ज्ञान अर्जित करने के लिए अब सिर्फ स्कूल और शिक्षकों की ज़रूरत नहीं है, बल्कि वे अब कहीं भी कोई भी विषय पढ़ सकते हैं। इसलिए शिक्षकों को भी थोड़ा बदलना होगा और बच्चों के जीवन में एक ‘फैसिलिटेटर’ की भूमिका निभानी होगी।
ध्रुव और रोहन ने ठाना कि वे कैसे बच्चों के लिए शिक्षा को और भी ज्यादा क्रियातम्क, रचनात्मक और दिलचस्प बना सकते हैं। उनका उद्देश्य छात्रों को ऐसी स्किल्स के लिए तैयार करना है जो आज नहीं तो कल एक प्रोफेशनल करियर के रूप में जानी जाएगी जैसे एक युट्यूबर।
उन्होंने आगे कहा, “हम दोनों बैठकर जब भी इस बारे में बात करते तो अपने बचपन को याद करते थे। स्कूल के बाद हमारा दिन रोहन के दादाजी के गैराज में बीतता था। वहां तरह-तरह के टूल्स थे, जिनसे हम हर रोज़ कुछ नई चीज बनाते थे। मैसूर में एक कबाड़े की दुकान है और हम दोनों वहां से कुछ न कुछ लाकर अपने इनोवेशन करते थे। हम आज के छात्रों के लिए भी वैसा माहौल बनाना चाहते थे, ताकि वे किसी भी समस्या के बारे में नहीं बल्कि उसके हल के बारे में सोचें।”
रोहन और ध्रुव की इसी सोच से साल 2014 में शुरुआत हुई ‘साइंस आश्रम’ की। उन्होंने मैसूर में एक छोटी-सी टिंकरिंग लैब से शुरुआत की, जिसमें कुछ बेसिक टूल और तकनीक उन्होंने रखे। यहाँ पर बच्चे अपने मन-मुताबिक किसी भी समस्या के हल पर काम कर सकते हैं और हर दिन कुछ नया सीखते हैं।
ध्रुव कहते हैं कि उनकी यह लैब बच्चों के लिए कोई एक्स्ट्रा ट्यूशन नहीं है बल्कि, यह बच्चों को स्कूल से बिल्कुल अलग एक दुनिया में ले जाती है। जहां वे अपनी कल्पनाओं को आकर दे सकते हैं। उन्हें अपनी दैनिक जीवन में जो भी चीजें परेशान करती हैं और उसके लिए क्या तकनीकी उपाय हो सकते हैं, हम उस पर काम करते हैं।
“जब हमने शुरू किया तो माता-पिता को समझाना बहुत मुश्किल था। क्योंकि हर कोई यही कहता था कि आपके यहाँ भेजने से बच्चों के नंबर तो अच्छे आएंगे ना? हमने किसी को भी झूठे वादे नहीं किए, सबको पहले ही बता दिया जाता कि यह कोई एक्स्ट्रा क्लास नहीं है। इस पर लोगों की एक ही प्रतिक्रिया होती कि फिर इसकी क्या ज़रूरत है,” उन्होंने आगे कहा।
जैसे-तैसे उनके पास कुछ बच्चे आने लगे। बच्चे यहाँ जो भी सीखते, उसके एक्सपेरिमेंट्स भी करते। बहुत बार अपने साइंस प्रोजेक्ट्स को एडवांस्ड तरीके से करके स्कूल में लेकर जाते। इन बच्चों में आत्म-विश्वास और सोचने की क्षमता तो बढ़ी ही, साथ ही, एक अलग नज़रिए से उन्होंने ज़िंदगी को देखना शुरू किया।
ध्रुव बताते हैं कि उनका एक छात्र तो अपने स्कूल में ‘साइंटिस्ट’ के नाम से मशहूर भी हो गया था। इस सबको देखते हुए धीरे-धीरे और भी छात्र उनके पास आने लगे। उन्होंने इन बच्चों के लिए एक करीकुलम डिज़ाइन किया, जिसमें अलग-अलग विषयों के मॉड्यूल और वर्कशॉप होते हैं। साइंस आश्रम में मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रोग्रामिंग- इन सभी विषयों पर बच्चों को पढ़ाया जाता है।
उनके मुताबिक, वे अपने छात्रों को सबसे पहले अपने आस-पास कोई समस्या खोजने के लिए कहते हैं और फिर उन्हें उसका हल ढूँढना होता है। इसके करने के लिए बच्चे आश्रम से में मौजूद कोई भी टूल या तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन शर्त यह है कि उन्हें एक सीमित बजट (वर्चुअल) दिया जाता है और उन्हें इसी बजट में अपने प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाली चीजें खरीदनी होती हैं।
बच्चे अपनी एक शीट बनाते हैं कि उन्हें क्या-क्या आइटम चाहिए और बहुत बार अगर वे किसी आइटम का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो उसे वापस करके अपना रिफंड ले सकते हैं। बच्चों के लिए उपलब्ध टूल्स में शामिल है- टेलेस्कोप, 3डी प्रिंटर, जिग्सॉ मशीन, बोल्ट कटर, ड्रिलिंग मशीन और अन्य कुछ ज़रूरी चीजें!
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उनके प्रोग्राम्स का असर देखकर, बहुत से स्कूल मैनेजमेंट ने उन्हें अपना प्रोग्राम उनके स्कूल पर शुरू करने के लिए कहा। आज उनका प्रोग्राम देशभर के 45 स्कूलों में चल रहा है और 5 हज़ार से ज्यादा बच्चे उनके साइंस आश्रम से जुड़े हुए हैं। पहले सिर्फ ध्रुव और रोहन खुद बच्चों को वर्कशॉप कराते थे लेकिन आज उनकी टीम में 27 लोग हैं।
उनकी टीम हर एक स्कूल में बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी अपने प्रोग्राम की ट्रेनिंग देती है। ध्रुव कहते हैं कि उनके प्रोग्राम का असल असर तब दिखता है जब उनके छात्र नए-नए इनोवेशन करते हैं। उनके एक छात्र ने अपने आईपॉड को चार्ज करने के लिए एक शूज चार्जर बनाया ताकि जॉगिंग करते समय उसका आईपॉड चार्ज होता रहे।
वहीं, एक और छात्र ने अपने कुत्ते के लिए एक कूलर डिज़ाइन किया है, तो एक ने अपने लिए एक स्पेशल हॉटकेस बनाया है ताकि वह कहीं भी अपना खाना गर्म कर सके। ये सभी इनोवेशन भले ही बहुत साधारण हैं लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि बच्चे बहुत कम उम्र से अपनी जिज्ञासाओं को हक़ीकत में बदलना सीख रहे हैं।
“हम सिर्फ इन बच्चों को राह दिखा रहे हैं और हौसला देते हैं बाकी सभी कुछ इन बच्चों की मेहनत का कमाल है। इसी तरह हमारे एक छात्र ने नासा के लिए एक स्पेस होटल का डिज़ाइन बनाया था, जिसके लिए उसे अवॉर्ड भी मिला। हमारे छात्रों की यही उपलब्धि हमें अहसास कराती हैं कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं,” उन्होंने कहा।
ध्रुव और रोहन ने ‘साइंस आश्रम’ की शुरुआत बहुत ही कम फंडिंग से की थी। लेकिन जैसे-जैसे उनके काम का असर दिखने लगा तो उन्हें एक इन्वेस्टर से 2 करोड़ रुपये की इन्वेस्टमेंट मिली। इसके बाद, वह अपना स्तर बढ़ा पाए और अब उनकी योजना है कि वह ऑनलाइन प्रोग्राम शुरू करें। साथ ही, उनका उद्देश्य भारत के सरकारी स्कूलों से जुड़ना भी है।
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फ़िलहाल, साइंस आश्रम मैसूर के अलावा हैदराबाद, बंगलुरु, कुर्ग, मुंबई और पुणे जैसे शहरों तक पहुंचा है। ध्रुव कहते हैं कि अगर कोई भी स्कूल अपने यहाँ उनका प्रोग्राम शुरू कराना चाहता है या फिर इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें dhruva@scienceashram.com पर ईमेल कर सकते हैं!
संपादन – अर्चना गुप्ता
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