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उतार-चढ़ाव तो सभी की ज़िंदगी में आते हैं, लेकिन बहुत कम लोग होते हैं, जो मुश्किलों से कुछ सीखकर आगे बढ़ते हैं। ग्रेटर फरीदाबाद के रहने वाले 81 साल के पंकज बंगा के जीवन में भी एक बड़ा दुखद मोड़ आया, जब साल 2013 में उनकी बहन वीणा गुप्ता को कैंसर हो गया था।
हालांकि, इस बुरे वक्त से उन्होंने काफ़ी कुछ सीखा और कैंसर मरीज़ों की मदद करने का संकल्प लिया। आज वह इस बीमारी से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों के लिए एक मजबूत सहारा बनकर मिसाल पेश कर रहे हैं। पंकज AIIMS सहित कई कैंसर हॉस्पिटल्स में जाकर मरीज़ों की मदद करते हैं। इस काम में उनकी बेटी प्रियंका बंगा भी उनका साथ दे रही हैं।
मूलरूप से रेवाड़ी के रहनेवाले पंकज, साल 1995 में नेशनल अकेडमी डिफेंस ऑफ प्रॉडक्शन में डायरेक्टर पद से रिटायर हुए और उसी साल फरीदाबाद में आकर बस गए। 2013 में बहन को कैंसर डिटेक्ट हुआ था और साल 2015 में ऑपरेशन के बाद पता चला कि उन्हें सारकोमा नामक कैंसर है।
कैंसर मरीज़ों की मदद के लिए बनाई अपनी संस्था
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बहन को दर्द में देखना उनके लिए बहुत मुश्किल था। वह इस पीड़ा को कम तो नहीं कर सकते थे, लेकिन इसे क़रीब से महसूस करने के बाद ही उन्होंने कैंसर पीड़ितों की मदद करने का ज़िम्मा उठाया।
साल 2018 में उन्होंने सारकोमा कैंसर केयर फाउंडेशन के नाम से एक संस्था का गठन किया। आज पंकज बंगा जांच से लेकर कैंसर अस्पताल में इलाज तक के लिए ज़रूरतमंदों की जितनी हो सके उतनी मदद करते हैं।
उन्होंने बताया कि उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां हैं। एक बेटी दिव्यांग है, जबकि दूसरी बेटी प्रियंका अमेरिका में जॉब करती थीं। जब पंकज ने यह काम करने की ठानी, तो उनकी बेटी विदेश की नौकरी छोड़ उनके साथ कैंसर पीड़ितों की मदद करने देश लौट आईं।
एक हज़ार से ज़्यादा कैंसर मरीज़ों का बने सहारा
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पंकज बंगा और उनकी बेटी प्रियंका बंगा मिलकर सारकोमा कैंसर फाउंडेशन चला रहे हैं। उन्होंने इसमें अन्य लोगों को भी जोड़ा है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा कैंसर मरीज़ों की मदद हो सके। अभी तक वे लगभग एक हज़ार से ज़्यादा मरीज़ों की किसी न किसी तरह से मदद कर चुके हैं।
पेशेंट को अस्पताल में ले जाना, उनकी जांच करवाने और रियायती दरों पर दवाएं दिलवाने में उन्हें बहुत शांति मिलती है। पंकज अपनी बेटी के साथ मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई जगहों पर कैंसर के इलाज के लिए कैंप लगवा चुके हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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