ड्राईवर पिता ने देखा था एक सपना, बेटे ने IIM-अहमदाबाद में दाख़िला पाकर किया उसे पूरा!

IIM Ahmedabad

गुजरात के आनंद शहर में रहने वाले हितेश सिंह को भारत के बेहतरीन कॉलेजों में से एक, IIM Ahmedabad में एडमिशन मिल गयी है।

गुजरात के आनंद शहर में रहने वाले हितेश सिंह को भारत के बेहतरीन कॉलेजों में से एक, IIM Ahmedabad में एडमिशन मिल गयी है। यह बात जब मुझे पता चली, तो मुझे ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ। मैंने सोचा कि आख़िर भारत के  लाखों छात्र यहाँ पढ़ते होंगे, और हितेश उन्हीं लाखों में से एक होंगे, तो 22 वर्षीय हितेश की कहानी में ऐसा क्या है?

पर जब मैंने उनके जीवन के बारे में और उनके यहाँ तक पहुँचने के संघर्ष के बारे में उनसे जाना, तो मुझे पता चला कि हितेश वाकई में लाखों में एक हैं!

आप भी सुनिए हितेश की प्रेरक कहानी और जानिये कि वह क्या है, जो उन्हें भीड़ से अलग करता है।

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हितेश सिंह

बिहार के भागलपुर जिले के एक छोटे से गाँव राजौन में हितेश के पिता पंकज सिंह का जन्म हुआ। इनका परिवार खेती किया करता था और उसी पर सभी की आजीविका निर्भर थी। पंकज सिंह और उनके भाईयों की शादी के बाद परिवार बढ़ चुका था, पर खेती से उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, कि उसमें सबका निर्वाह ठीक से हो पाए। ऐसे में केवल दसवीं तक पढ़े, पंकज सिंह अपनी पत्नी सरिता देवी को गाँव में ही छोड़, काम की तलाश में 1989 में आनंद शहर आ गए।

यहाँ आकर, उन्होंने रु.600 महीना की तनख्वाह पर चौकीदार की नौकरी कर ली। 1995 में उन्होंने अपनी पत्नी को भी अपने पास बुला लिया। पंकज की इस नौकरी से परिवार का पालन पोषण ठीक-ठाक चल रहा था। पर जब इनके दो बेटे बड़े होने लगे, तो इन्हें लगा कि अब बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ चौकीदार की नौकरी से गुज़ारा नहीं हो पायेगा। ऐसे में पंकज ने ड्राइविंग सीखी, ताकि उन्हें एक बेहतर नौकरी मिल पाए। उधर सरिता ने भी परिवार की आमदनी में हाथ बंटाने के लिए कपड़े सीलने का काम शुरू कर दिया।

जल्द ही उनका बड़ा बेटा हितेश स्कूल जाने लगा था। पैसों की कमी के कारण हितेश को पास ही स्थित एक मिशनरी स्कूल में भर्ती कराना पड़ा, जो गुजराती माध्यम में था। अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए सरिता देवी ने भी गुजराती सीखनी शुरू कर दी और हितेश का सही मार्गदर्शन किया।

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कुछ समय बाद पंकज को भी एक ड्राईवर की नौकरी मिल गयी। बच्चों की शिक्षा में कोई कमी न हो इसके लिए ये दोनों पति-पत्नी शाम को समोसे भी बेचने लगे।

“मुझे आज भी याद है, मेरी माँ रात के 2-3 बजे उठकर समोसे तैयार करती थी और मेरे पापा शाम को काम से वापस आकर उन समोसों को तलते थे और फिर बेचने जाते थे। वो दोनों रात को ज्यादा से ज्यादा 4-5 घंटे ही सो पाते थे, लेकिन उन्होंने हमें अपनी तकलीफों का कभी अहसास नहीं होने दिया,” हितेश ने बताया।

अपने माता-पिता के इस त्याग और संघर्ष का हितेश बहुत आदर करते थे और इसीलिए, उन्होंने जितना हो सके उतना पढ़-लिखकर अपने माता-पिता का ऋण चुकाने की ठान ली थी। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे हितेश को पांचवी में पहली बार अव्वल आने पर स्कॉलरशिप मिली। यहीं से उनकी समझ में आ गया था कि पढ़ाई-लिखाई से ही उनकी आर्थिक स्थिति बदल सकती है, और वे और ज्यादा मेहनत करने लगें।

जब हितेश दसवीं में थे, तब किस्मत ने करवट बदली और उनके पिता की मुलाक़ात गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल) के मैनेजिंग डायरेक्टर, श्री. आर.एस सोढी से हुई। सोढी ने पंकज सिंह को अपने निजी ड्राईवर के तौर पर नौकरी दे दी और उनके अच्छे काम को देखते हुए उन्हें 2011 में अमूल में स्थायी नौकरी मिल गयी।
सोढी मार्केटिंग की दुनिया में काफ़ी चर्चित हैं और अक्सर उन्हें लेक्चर देने के लिए आइआइएम अहमदाबाद में आमंत्रित किया जाता था। ऐसे में उनका ड्राईवर होने के नाते पंकज भी कई बार IIM-A जाते रहते थे।

जब पंकज वहां की बड़ी-बड़ी इमारतों और स्मार्ट छात्रों को देखते, तो उनके मन में आता कि काश कभी उनके बच्चे भी यहाँ पढ़ पाते। उन्हें लगता भी कि हितेश में इतनी काबिलियत है, कि वो ऐसे कॉलेज में जा सकता है। पर इस सपनों की दुनिया से जब वे हकीकत में पहुँचते, तो उन्हें लगता कि शायद ऐसे बड़े-बड़े कॉलेजों में तो सिर्फ बड़े घरों के ही बच्चे जा सकते हैं।

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इधर हितेश ने दसवीं में एक बार फिर कमाल कर दिखाया था। उन्हें इतने अच्छे नंबर मिले कि आनंद के सबसे अच्छे कॉलेज में पढ़ने के लिए उन्हें स्कॉलरशिप मिल गयी। इस कॉलेज में ज़्यादातर संपन्न परिवार के बच्चें ही आते थे, पर हितेश ने हमेशा की तरह अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर ही रखा।

“मैंने जहाँ से ग्यारवी और बारहवीं की है, उस स्कूल के आधे से ज्यादा बच्चे बारहवीं के बाद ही विदेश चले गए। उस समय मुझे लगता था, कि ये बच्चे कितने लकी है, पर आज लगता है कि मैं उनसे भी ज्यादा लकी हूँ, कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले जिन्होंने लाख मुश्किलों के बावजूद मुझे यहाँ तक पहुँचाया,” हितेश कहते हैं।

बारहवीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स में 97 पर्सनटाइल पाने के बाद हितेश ने आनंद एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के एसएमसी कॉलेज ऑफ़ डेरी साइंस से डेरी टेक्नोलॉजी में बी.टेक करने का फ़ैसला लिया।

ऐसा इसलिए क्यूंकि उनके पिता के इस क्षेत्र से जुड़े होने की वजह से हितेश को इसके बारे में काफ़ी जानकारी थी। उन्हें पता था कि इस कोर्स को बहुत कम लोग करते हैं और इसलिए इसे करते ही नौकरी मिलने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती, जिसकी हितेश को सख्त ज़रूरत थी। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि राज्य स्तर पर इस कोर्स को फंड किया जाता है, जिसकी वजह से इसकी फीस प्रति समेस्टर केवल 6000 रूपये थी। इसमें से भी हितेश को स्कॉलरशिप की वजह से रियायत मिल जाती, और उन्हें केवल 3000 रूपये ही भरने पड़ते थे।

डेरी टेक्नोलॉजी में इंजीनियरिंग करते हुए, हितेश को यह समझ में आया कि दरअसल गाय पालने वाले और दूध पहुंचाने वाले अनपढ़ किसानों में मार्केटिंग की समझ न होने की वजह से उन्हें इसका मुनाफा ही नहीं हो पाता। वे चाहते थे कि आगे चलकर वे मैनेजमेंट से जुड़े और इस बात का कोई हल निकाले।

“मेरे माता-पिता दोनों ही किसान परिवार से हैं। जब भी मैं पढ़ने में कोई ढिलाई करता, तो मेरे पापा कहते कि ‘पढ़ ले नहीं तो गाँव वापस जाकर खेती करनी पड़ेगी।’, मेरी माँ कहती, ‘पढ़ेगा नहीं तो गाय चरानी पड़ेगी।‘ ये सुनकर मैं अक्सर सोचता कि आखिर किसान बनने में या गाय चराने में क्या बुराई है, पर धीरे-धीरे मेरी समझ में आया कि किसानी या पशु-पालन में आय कम होने की वजह से इन कामों को करने से लोग कतराते हैं,” हितेश गंभीर होते हुए कहते हैं।

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2018 में हितेश ने अपने कॉलेज में टॉप किया। उन्हें पाँच गोल्ड मैडल भी मिले और कैम्पस में ही उन्हें एक अच्छी नौकरी भी मिल गयी। पर हितेश पर अभी भी डेरी की मार्केटिंग में बदलाव लाने का भूत सवार था। इसलिए नौकरी के साथ-साथ उन्होंने मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के लिए CAT की तैयारी शुरू कर दी।

अब हितेश सुबह आठ बजे से शाम के चार बजे की शिफ्ट में नौकरी पर जाते और वापस आकर CAT की पढ़ाई करते।
हितेश का कहना है कि इंजीनियरिंग के आख़िरी सेमिस्टर में उन्होंने CAT के लिए एक कोचिंग क्लास लगाई थी, पर इंटर्नशिप के काम का समय और कोचिंग का समय एक जैसा होने की वजह से वो क्लास में नहीं जा पाए। पर यहाँ पर दिए हुए स्टडी-मटेरियल उनके बहुत काम आये। साथ ही उन्हें Quora और www.insideiim.com जैसी वेबसाइट से भी बहुत मदद मिली।

हितेश का कहना है, “यूपीएससी या किसी भी प्रशासनिक परीक्षाओं के मुकाबले CAT काफ़ी आसान है। इसमें बहुत ज्यादा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है, पर आपका बेस क्लियर होना चाहिए।“

हर दिन केवल 3-4 घंटा पढ़कर हितेश ने CAT, 96.12 परसेंटाइल से पास किया, जिसके बाद उन्हें IIM अहमदाबाद में फ़ूड एंड एग्री बिसनेस मैनेजमेंट के दो साल के कोर्स के लिए दाखिला मिल गया है।

“जब मैंने पापा को बताया कि मेरा नाम IIM अहमदाबाद की लिस्ट में है, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्होंने मुझसे 3-4 बार पूछा कि क्या सच में ऐसा हुआ है? मैंने उनसे कहा कि हाँ पापा आपका सपना पूरा हो गया है,” हितेश हँसते हुए कहते हैं!

हितेश की माँ भी आज बहुत ज़्यादा ख़ुश थीं। जब मैंने उनसे उनके संघर्षों के दिनों के बारे में पूछा, तो वे हँसते हुए बोली – “इस ख़बर को सुन कर मुझे तो याद भी नहीं कि हमने कोई संघर्ष भी किया था।“

सरिता देवी का मानना है कि कोई भी अभिभावक यदि अपने बच्चों को कोई सबसे अच्छा उपहार दे सकते हैं, तो वह है शिक्षा का उपहार और उनके मन-मुताबिक़ उन्हें अपनी राह चुनने देने का अधिकार।

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हितेश के इस कोर्स की फीस 23 लाख रूपये है, जिसे वे लोन लेकर भरेंगे। इसके लिए मदद के लिए पूछे जाने पर, उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि वे इसके लिए लोन ही लेना चाहेंगे और कोर्स के बाद नौकरी लगने पर उसे चूका देंगे।

सभी छात्रों के लिए हितेश कहते है,”अपने लक्ष्य को चुनों और उसमें पूरे दिल से जुट जाओ। इस बीच अपने जीवन के मूल्यों को कभी मत खोने दो। हार-जीत तो जीवन का एक हिस्सा है, पर जो हमेशा आपके साथ रहेगा वह है आपके मूल्य!”


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