1978 में अमी घिया ने कॉमनवेल्थ में जीता था पहला पदक, आज भी नए खिलाड़ियों से लेती हैं सीख

Ami Ghia, Indian badminton player

आज बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु, साइना नेहवाल का नाम बच्चा बच्चा जानता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज से 44 साल पहले, 1978 में कॉमनवेल्थ में भारत की तरफ से खेल रहीं शटलर अमी घिया ने इतिहास रचा था। वह देश की पहली ऐसी महिला थीं, जिन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीता था।

आज बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु, साइना नेहवाल का नाम बच्चा बच्चा जानता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज से 44 साल पहले, 1978 में कॉमनवेल्थ में भारत की तरफ से खेल रहीं शटलर अमी घिया ने इतिहास रचा था। वह देश की पहली ऐसी महिला थीं, जिन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों में पदक जीता था।

उन्होंने कॉमनवेल्थ के बैडमिंटन वीमेंस डबल्स में कांस्य पदक अपने नाम किया था। कनाडा के एडमेंटन में पोडियम फिनिश का वह मंजर आज भी उनकी आंखों में जैसा का तैसा कैद है। द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए बैडमिंटन की दुनिया में ‘लेडी नाटेकर’ के नाम से मशहूर अमी घिया ने अपने कॉमनवेल्थ सफर की यादें साझा कीं। 

अमी घिया ने बताया, खेल के नजरिए से कहें तो बैडमिंटन दो तरीके से खेला जाता है। एक वुडन कोर्ट पर और दूसरा सिंथेटिक कोर्ट पर। 1978 के कॉमनवेल्थ गेम्स एडमेंटन (कनाडा) में खेले गए थे। वहां हमें सिंथेटिक टर्फ पर खेलना पड़ा था, जो काफी टफ रहा। दूसरे, हम लोग लोकल शटल से प्रैक्टिस करते थे, जबकि प्रतियोगिता में इंपोर्टेड शटल इस्तेमाल होती थी। लेकिन हम जल्द ही उसके आदी हो गए थे।

तब लोगों तक लेट पहुंचती थी ख़बर

Ami Ghia with partner Kanwal Thakkar
Ami Ghia with partner Kanwal Thakkar

आज कोई भी उपलब्धि होती है, पलक झपकते ही सोशल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया उसके बारे में जान जाती है। लेकिन अमी घिया ने कहा कि जिस वक्त कमल और मैंने देश के लिए पहला कॉमनवेल्थ पदक जीता था, उस समय सोशल मीडिया तो था ही नहीं, टीवी भी बेहद कम थे। देशवासियों को रेडियो और अखबार के जरिए हमारी उपलब्धि का पता चला था। उस समय मशहूर शटलर प्रकाश पादुकोण ने गोल्ड जीता था।

ऐसे में समाचार पत्रों में खूब जगह मिली थी। अमी घिया के अनुसार, आज खिलाड़ियों के स्वदेश लौटने पर एयरपोर्ट पर उन्हें वेलकम करने के लिए देशवासियों की भीड़ लग जाती है। लेकिन 1978 में सीन काफी अलग था।

घिया ने बताया, “मुझे याद आता है, हमारा कंटिंजेंट एक साथ नहीं आया था। खिलाड़ी अलग-अलग अपने घरों तक पहुंच रहे थे। मैं कामनवेल्थ का कांस्य पदक जीतकर एयरपोर्ट पर उतरी थी, तो महाराष्ट्र बैडमिंटन के लोग वहां स्वागत के लिए पहुंचे थे। उस समय के लिए यह भी बहुत था। खेलने के अधिक मौके नहीं थे, साल में केवल दो-तीन टूर्नामेंट होते थे, लेकिन जज्बे और हौसलों में कोई कमी नहीं थी।

पहले और अब के बैडमिंटन में कितना फर्क़ है?

Ami Ghia hitting a shot in a tournament.
Ami Ghia hitting a shot in a tournament.

इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि कोचिंग तो एक पहलू है ही, उस समय इसका कांसेप्ट नहीं था। लेकिन एक और बात है-अब साल भर में कई इंटरनेशनल लेवल के टूर्नामेंट्स होते हैं, जिसमें प्रतिभागी को अपना खेल दिखाने, दूसरे को तौलने और अपनी परफार्मेंस में सुधार करने का अच्छा खासा मौका मिलता है।

लेकिन पहले नाम मात्र के ही टूर्नामेंट होते थे। साल भर में बस दो या तीन टूर्नामेंट और बहुत हुए तो चार-पांच। लेकिन खिलाड़ियों में पूरा जज्बा होता था। अमी घिया बताती हैं कि वह मुंबई के जिमखाना में प्रैक्टिस करती थीं। उनका प्रैक्टिस शेड्यूल शाम को चार बजे से सात बजे तक कुल तीन घंटे का होता था। इसी में ब्रेक भी शामिल था।

इसके साथ ही बीच में रनिंग और एक्सरसाइज़ को भी समय देना होता था। साथ ही पढ़ाई भी जारी थी। बैडमिंटन के प्रेशर को कम करने के लिए खिलाड़ी टेबल टेनिस भी खूब खेलते थे। अमी ने बताया कि आज भी ऐसा करती हैं। अमी वर्तमान में मुंबई में रह रही हैं। वह वक्त निकालकर टेलीविजन पर करीब करीब सभी स्पोर्ट्स देखती हैं। लेकिन रूटीन से हटकर अक्सर टेबल टेनिस भी खेलती हैं।

वर्ल्ड कप में शिरकत करने वाली देश की पहली महिला बनीं अमी घिया

Ami Ghia receiving the Arjuna Award from the then President Neelam Sanjiva Reddy in 1976.
Ami Ghia receiving the Arjuna Award from the then President Neelam Sanjiva Reddy in 1976.

नई दिल्ली में सन् 1982 में हुए एशियाई खेलों में अमी घिया को ब्रांज मेडल मिला था। इससे पहले वह बैडमिंटन की सात बार की नेशनल सिंगल्स चैंपियन रह चुकी थीं। उनके प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें 1976 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था। 

8 दिसंबर, 1956 को गुजरात के सूरत में जन्मीं अमी, देश की पहली ऐसी महिला बैडमिंटन खिलाड़ी थीं, जिन्होंने 1982 और 1983 वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया। दुनिया भर के दर्जन भर खिलाड़ियों को इसमें भाग लेने का न्योता भेजा गया था, जिनमें अमी भी शामिल थीं।

उन्होंने 1981 की ऑल इंग्लैंड वीमन सिंगल्स चैंपियन, साउथ कोरिया की सुन अई हवांग को भी परास्त किया था। यह मौका उन्हें कोपेनहेगन में 1983 में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में हाथ लगा था। इसमें हवांग के हाथों पहला राउंड 6-11, 11-3, 11-8 से हारने के बाद, उन्होंने वापसी की थी।

इसके बाद अमी ने हवांग को 1983 में नई दिल्ली में हुए इंडियन ओपन में भी परास्त किया। हवांग का अमी के बारे में कहना था, “उनकी (अमी) ओर आप शटल को जितना हार्ड हिट करते हैं, यह उससे भी तेज गति से आपको वापस मिलती है।”  

“भारतीय टीम बहुत शानदार, आज भी साइना, सिंधु से सीखती हूं”

Ami Ghia after winning the women's doubles with partner Marine.
Ami Ghia after winning the women’s doubles with partner Marine.

अमी के नाम वर्ल्ड रैकिंग में टॉप-10 में पहुंचने वाली देश की पहली शटलर का गौरव भी दर्ज है। 1983 वह साल था, जब अमी ने बैडमिंटन में वर्ल्ड के टॉप-10 में जगह बनाई थी। उन्होंने 7वीं रैंकिंग हासिल की थी। अमी का कहना है कि आज यूट्यूब की सुविधा है, जहां से खिलाड़ियों की तकनीक को देखकर आप उसके खेल के बारे में जान सकते हैं। हमारे वक्त में इस तरह की सुविधा कहां थी? केवल सीनियर खिलाड़ियों को देखकर सीखना ही एकमात्र विकल्प था।

अमी घिया इस समय कामनवेल्थ के टेलीविजन पर आ रहे सभी मुकाबले देख रही हैं। उन्हें गोल्ड जीतकर तिरंगा लहराते खिलाड़ियों को देखकर बेहद गर्व होता है। अमी शानदार ड्रॉप शॉट, फ्लिक, शटल कंट्रोल और लाइन जजमेंट के लिए जानी जाती हैं, लेकिन आज की बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु, साइना नेहवाल जैसे खिलाड़ियों का ज़िक्र आने पर वह कहती हैं, “सिंधु, साइना जैसे खिलाड़ियों ने देश का सिर ऊंचा किया है। मैं अभी भी उनसे सीखती हूं।” 

संपादनः अर्चना दुबे

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