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शहर से आई युवा सरपंच ने बदला गांव का हाल, प्लास्टिक यूज़ हुआ 75% कम, पानी होता है रिसायकल

Panchayat: Young Sarpanch Priyanka Changed Picture Of The Village

प्रियंका तिवारी, उत्तर प्रदेश के राजपुर ग्राम पंचायत की सरपंच हैं। एक साल के भीतर ही उन्होंने गांव में कई बदलाव किए हैं। उन्होंने गांव में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के साथ ग्रेवाटर रीसाइक्लिंग, एक श्मशान घाट और एक लाइब्रेरी भी शुरू की है।

राजस्थान में जन्मी और दिल्ली की रहने वाली प्रियंका तिवारी की शादी साल 2019 में हुई थी। शादी के बाद, वह उत्तर प्रदेश के एक गांव, राजपुर में रहने लगीं। शुरुआत में उन्हें गांव में रहना अच्छा नहीं लगा। गांव (Panchayat) में एक ठीक-ठाक मैनेजमेंट सिस्टम और व्यावहारिकता की कमी के कारण उन्हें वहां रहने में परेशानी हो रही थी। वेस्ट मैनेजमेंट की कमी, नाले निकासी की परेशानी, श्मशान घाटों की कमी कुछ ऐसे मुद्दे थे, जिन पर किसी का ध्यान नहीं था।

प्रियंका ने मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया था और सामाजिक रूप से हमेशा से जागरूक थीं। वह चाहती थीं कि इलाके में बदलाव हों और वह अक्सर अपने ससुराल वालों से इस बारे में बात भी करती थीं।

जब साल 2021 के पंचायत चुनावों की घोषणा की गई, तो प्रियंका के ससुर को लगा कि यह एक अच्छा मौका है, जहां प्रियंका अपना जुनून और कौशल दिखा सकती हैं।

प्रियंका के ससुर ने कहा कि अगर वह इस गांव में सच में बदलाव लाना चाहती हैं, तो उनके लिए यह एक सुनहरा मौका है। अपने ससुर की बात मानते हुए प्रियंका ने चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की।

प्रियंका के शपथ ग्रहण समारोह के अगले ही दिन राजपुर पंचायत (Panchayat) में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गांव की सरपंच, प्रियंका कहती हैं, “प्लास्टिक का इस्तेमाल एक दिन में बंद नहीं किया जा सकता है। मुझे यकीन था कि यह एक लंबी प्रक्रिया होगी।”

प्लास्टिक से लेकर चॉकलेट रैपर तक के लिए चलाई क्लास

Sarpanch Helps Cut Plastic in Village by 75% in Just 1 Year, Wins State Cash Award
पंचायत को हाल ही में मुख्यमंत्री पुरस्कार के तहत 9 लाख रुपये मिले हैं।

प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए पंचायत (Panchayat) ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। सबसे पहला कदम दुकानदारों, सड़क किनारे रेड़ी लगाने वालों और घरों में कपड़े के थैले बांटना था। दूसरा कदम प्लास्टिक का उपयोग करने पर जुर्माना लगाना था। प्लास्टिक का इस्तेमाल करने पर पहली बार के लिए 500 रुपये का जुर्माना, दोबारा करने पर 1000 रुपये और अगली बार फिर करने पर उस दुकान का लाइसेंस रद्द करने का नियम बनाया गया।

साथ ही कई क्लासेज़ भी आयोजित की गईं, जिसमें प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया। इन तरीकों से गांव में प्लास्टिक का इस्तेमाल 30-35 फीसदी कम किया गया। दूसरी बात उन्होंने महसूस किया कि बच्चे अक्सर स्नैक और चॉकलेट खाते हैं जिनके रैपर का, प्लास्टिक कचरे में काफी योगदान होता है। उन्होंने इन प्लास्टिक्स को इकट्ठा कर प्रति किलो 2 रुपये कमाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया।

इसके साथ ही स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता क्लास भी लगाई गईं। इस तरह, गांव में प्लास्टिक का इस्तेमाल 70-75 फीसदी कम हुआ।

प्रियंका कहती हैं कि उनका सपना आने वाले दो वर्षों में इस संख्या को 95 प्रतिशत तक करना है। वह कहती हैं, “मुझे उम्मीद है कि सरपंच के रूप में मेरे कार्यकाल के बाद भी बुजुर्गों और बच्चों दोनों के लिए जागरूकता कार्यक्रम इन प्रक्रियाओं को जारी रखने में मदद करेंगे।”

सड़क बनाने के काम आएंगी प्लास्टिक्स

प्रियंका के अनुसार, राजपुर ग्राम पंचायत (Panchayat) की कुल आबादी का लगभग 75-80 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग हैं। हालांकि, उनमें से ज्यादातर लोग शिक्षित नहीं हैं। इसलिए जागरूकता कक्षाओं से उन्हें प्रशिक्षित करने में मदद मिलती है।

ग्रेजुएशन के छात्र और 21 वर्षीय शुभम अग्निहोत्री कहते हैं, “हमारे गांव में कचरा अलग करना हमेशा से एक मुद्दा रहा है। मुझे खुशी है कि अब हमें इसका स्थाई समाधान मिल गया है। ज्यादातर ग्रामीण अब जागरूक हो गए हैं और वे नियमों का सख्ती से पालन करते हैं।”

कूड़ा उठाने के लिए हर गांव में प्लास्टिक बैंक लगाए गए। प्रियंका से प्रेरित होकर, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक प्लास्टिक संग्रह केंद्र की शुरुआत की। इकट्ठा किया गया कचरा एक मशीन में ले जाया जाता है, जो इसे छोटे दानों में बदलता है और इसे लोक निर्माण विभाग (Public Works Department, पीडब्ल्यूडी) को रोड टैरिंग के लिए दिया जाएगा।

पंचायत (Panchayat) ने की ग्रेवॉटर रीसाइक्लिंग व श्मशान घाट की व्यवस्था

Sarpanch Priyanka Tiwari meeting Villagers
Sarpanch Priyanka Tiwari meeting Villagers

विस्तार से बात करते हुए प्रियंका ने बताया, “ग्रेवॉटर प्रबंधन के लिए, हमने गाँव के चारों कोनों में कम्यूनिटी सोक पिट्स बनाए हैं। इन कम्यूनिटी सोक पिट्स को अभी तक गांव के तालाब से नहीं जोड़ा गया है। फिलहाल इसका उपयोग भूजल रिचार्जिंग के लिए किया जाता है। हम कम्यूनिटी  सोक पिट्स को तालाब से जोड़ने से पहले पानी को छानने के लिए एक गाद चैम्बर बनाने का सोच रहे हैं और फिर इस पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाएगा।”

गांव में एक और बड़ी समस्या श्मशान घाट का न होना थी। याद करते हुए प्रियंका कहती हैं, एक दिन वह दिल्ली से अपने घर वापस जा रही थी। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक परिवार बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा था, ताकि अपने परिवार के सदस्य के शरीर का अंतिम संस्कार कर सकें। वह कहती हैं कि इस घटना ने उन्हें अंदर से हिला दिया। साथ ही उन्हें एक सही श्मशान घाट बनाने के लिए भी प्रेरित भी किया। वह कहती हैं, “इसका निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और एक महीने के भीतर काम करने लगेगा।”

मुख्यमंत्री पुरस्कार के तहत पंचायत (Panchayat) को मिले 9 लाख रुपये

Sarpanch Helps Cut Plastic in Village by 75% in Just 1 Year, Wins State Cash Award
The library being set up.

पंचायत की 24 वर्षीया वर्षा सिंह कहती हैं, ”श्मशान घाट की तत्काल ज़रूरत थी। किसी भी बंजर ज़मीन पर ये सारी प्रक्रिया करना काफी मुश्किल है। मुझे उम्मीद है कि निर्माण कार्य जल्द ही पूरा हो जाएगा और यह काम करना शुरू कर देगा।”

श्मशान के काम की योजना बनाई गई है, ताकि कोई भी व्यक्ति, जाति या वर्ग की परवाह किए बिना, सुविधा का उपयोग कर सके। इन कामों के अलावा, सरपंच चुने जाने के एक साल बाद ही प्रियंका ने पंचायत में एक लाइब्रेरी की शुरुआत भी की है। वह कहती हैं, “हम नई किताबें खरीदने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि एक साथ कई सारी चीज़ें चल रही हैं। इसलिए हम पैसे और किताबों के रूप में कुछ दान का इंतज़ार कर रहे हैं, ताकि इस ओर काम चलता रहे।”

अपने जोश और जुनून के ज़रिए प्रियंका ने चुनाव जीतने के एक साल के भीतर ही पंचायत का चेहरा बदलने के लिए अहम कदम उठाए हैं। उनकी पंचायत को हाल ही में मुख्यमंत्री पुरस्कार के तहत 9 लाख रुपये मिले हैं और वह इस राशि का उपयोग करके एक रिवर्स ऑस्मोसिस वॉटर प्लांट स्थापित करने की योजना बना रही हैं।

मूल लेखः अनाघा आर मनोज

संपादनः अर्चना दुबे

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