IIT गुवाहाटी की नई जीत! इस प्रोस्थेटिक लेग के ज़रिए, योग तक कर पाएंगे दिव्यांगजन

Prosthetic leg

IIT-गुवाहाटी के रिसर्चर्स ने भारतीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रोस्थेटिक/आर्टिफिशिअल पैर डिजाइन किया है। इससे दिव्यांगजनों को कई तरह के काम खुद करने में सुविधा होगी। इसकी मदद से लोग आसानी से क्रॉस-लेग्ड बैठ सकते हैं, डीप स्क्वाटिंग कर सकते हैं। साथ ही हर आयु वर्ग के लोग इसका उपयोग कर सकते हैं।

इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी, गुवाहटी के रिसर्चर्स ने एक किफायती Artificial/ Prosthetic Leg विकसित किया है, जिससे दिव्यांगजनों को काफी सुविधा होगी। सबसे खास बात यह है कि इसे भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है।

इसके सहारे उबड़-खाबड़ रास्तों पर भी आसानी से चला जा सकता है और साथ ही इसका इस्तेमाल करते हुए जरूरतमंद लोग क्रॉस-लेग्ड बैठ सकते हैं और डीप स्क्वाटिंग भी कर सकते हैं। इससे योगा करने में भी मदद मिलेगी। इसका इस्तेमाल हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं।

इस रिसर्च के लिए फंडिंग भारत सरकार की ओर से ‘शिक्षा मंत्रालय डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलोजी’ से मिली है। इस बीच, IIT-G के रिसर्चर्स ने 151 आर्मी बेस अस्पताल (गुवाहाटी), तोलाराम बाफना कामरूप जिला सिविल अस्पताल (गुवाहाटी), गुवाहाटी न्यूरोलॉजिकल रिसर्च सेंटर (GNRC), और नार्थ इस्टर्न इंदिरा गांधी रिजनल इंस्ट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल साइंस (NEIGHRIMS), शिलांग के साथ भी कोलेबोरेट किया है।

स्थानीय गति और कीमत को ध्यान में रखते हुए इस कृत्रिम पैर की डिजाइनिंग मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एस कनगराज के नेतृत्व में की गई है।

Prosthetic Leg की विशेषताएं

इस सप्ताह की शुरुआत में संस्थान द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज में, प्रो कनगराज ने कहा, “हमारी टीम द्वारा विकसित इस नी ज्वाइंट में स्प्रिंग-असिस्टेड डीप स्क्वाट मैकेनिज्म है, जिसकी मदद से इंडियन स्टाइल टॉयलेट का इस्तेमाल अधिक सुविधाजनक तरह से किया जा सकता है। नी रोटेटिंग मेकैनिज़्म से क्रॉस-लेग्ड बैठने में भी मदद मिलती है।”

उन्होंने आगे बताया, “लॉकिंग मेकैनिज़्म से अनजान इलाके में चलते समय जरूरतमंदों के गिरने के डर को कम करने में मदद मिलेगी। घुटने में एड्जस्टेबल लिंब या तो अधिक स्थिरता या आसान फ्लेक्सिंग में मदद करती है और यह मरीज़ की उम्र और ज़रूरत पर निर्भर करता है। कुल मिलाकर, नी ज्वाइंट को भारतीय जीवन शैली को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अन्य प्रोडक्ट में ये विशेषताएं नहीं हैं।”

पश्चिमी टेक्नोलोजी का इस्तेमाल करके बनाए गए प्रोस्थेटिक पैर, भारतीय ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए नहीं बनाए जाते, जैसे कि उनके सहारे क्रॉस लेग्ड सिटिंग, टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए डीप स्क्वाटिंग और योग में एक्सरसाइज पॉस्चर कर पाना सुविधाजनक नहीं होता है।

IIT Guwahati Prosthetic Leg
IIT Guwahati Prosthetic Leg

इसका एडवांस्ड नी रोटेशन मैकेनिज्म क्रॉस-लेग्ड सिटिंग की सुविधा देता है और पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाले आर्टिफिशिल पैर की तुलना में काफी ज्यादा सुविधाजनक है। डीप स्क्वाट मैकेनिज्म खड़े होने पर गति को रुकने से रोकने में मदद करता है और मेटाबोलिज़्म एनर्जी कॉस्ट को कम करता है।

हर काम बना देगा आसान

द बेटर इंडिया से बातचीत में प्रोफेसर कनगराज बताते हैं, “हमने इस Prosthetic Leg के नी ज्वाइंट में रोटेशन क्षमता की नकल करने के लिए, एक कंप्रेशन स्प्रिंग असिस्टेड मैकेनिज़्म लगाया है, जो कूल्हे के जोड़ से संबंधित निचले अंग को रोटेशन की अनुमति देता है। यह क्रॉस-लेग्ड सिटिंग पॉस्चर उपयोगकर्ताओं को दिन-प्रतिदिन की कामों जैसे- योग अभ्यास, कुछ सामाजिक कार्यों में खाना आदि सुविधाजनक बनाता है।”

इसके अलावा, दिव्यांगजनों को प्रॉस्थेटिक अंग के उपयोग के स्टेज के आधार पर, अतिरिक्त स्थिरता की ज़रूरत होती है। एक बार जब दिव्यांगजनों को अपने पैरों की आदत हो जाती है, तो ऊबड़-खाबड़ इलाके और सीढ़ियों पर चलना मुश्किल होता है। इसका समाधान करने के लिए, IIT-G के शोधकर्ताओं ने एक नी-लॉकिंग मैकेनिज्म विकसित किया है, जिसे उपयोगकर्ता द्वारा विभिन्न स्थितियों में सक्रिय और निष्क्रिय किया जा सकता है। 

वे आगे विस्तार से बताते हैं, “ऐसी स्थिति पर विचार करें, जहां जरूरतमंद व्यक्ति को स्थिर होने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में, नी फ्लेक्सियन लॉकिंग क्षमता उपयोगकर्ता को प्रोस्थेटिक लेग पर वजन डालने की अनुमति देगी, जिसमें कोई फ्लेक्सन या झुकना नहीं है। इस तरह व्यक्ति अधिक स्थिर होगा। प्रोस्थेटिक पैर मजबूत बैसाखी की तरह काम करेगा। लेकिन किसी व्यक्ति को फर्श से उठने के लिए कूल्हे को उठाना पड़ता है, ताकि किसी भी तरह की ठोकर लगने की स्थिति से बचा जा सके।”

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आसानी से होता है कस्टमाइज़

यह लॉक्ड नी एक मजबूत छड़ी के रूप में काम करता है, जो कई प्रकार के इलाकों जैसे बजरी, सीढ़ी, रैंप आदि में सबसे अधिक स्थिर होता है। पैर की लंबाई के आधार पर, आर्टिफिशिअल अंग की जरूरतें अलग होती हैं। इसके अलावा, व्यक्ति की उम्र के आधार पर, अधिक स्थिरता की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, पुराने रोगियों के गिरने का खतरा ज्यादा होता है। रोगी की ज़रूरतों के अनुसार, लिंक लंबाई एड्जस्टेबिलिटी और प्रोस्थेसिस अलाइनमेंट एड्जस्टर मैकेनिज्म भी कस्टमाइज़ किया जाता है।

शारीरिक गतिविधि के दौरान, व्यक्ति को गिरने से रोकने के लिए सक्रिय संतुलन बनाना ज़रूरी है। इस प्रोस्थेटिक पैर के ज़रिए कई समस्याओं का समाधान हो सकता है, जैसे- कठोर सतहों पर भार का प्रभाव कम करना और बेहतर संतुलन बनाना।

प्रो. कनगराज बताते हैं, “संकल्प नी (दूसरी पीढ़ी के नी ज्वाइंट), टीम द्वारा विकसित एक और नी ज्वाइंट है, जिसका ट्रायल कई उपयोगकर्ताओं पर किया गया है। मनुष्यों की चलने की शैली के दौरान किए गए इसके कीनेमेटीक विश्लेषण से पता चला है कि यह सामान्य चलने के पैटर्न से काफी ज्यादा मेल खाता है और इसमें बहुत कम बदलाव की ज़रूरत होती है।”

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और क्या है इस Prosthetic Leg की खासियत?

नी डिजाइन में फोर-बार मैकेनिज्म का उपयोग करके असामान्यता को कम किया गया था। पिछली पीढ़ी के नी ज्वाइंट से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर, वर्तमान तीसरी पीढ़ी के नी ज्वाइंट को अतिरिक्त कार्यक्षमता के साथ डिज़ाइन किया गया है, जो भारतीय जीवन शैली के अनुकूल है।

जब किसी स्वस्थ व्यक्ति के पैरों में खराबी आती है, तो उसके चलने के पैटर्न में असामान्यता देखी जाती है। क्योंकि इससे सामान्य पैटर्न के लिए जिम्मेदार व ज़रूरी मांसपेशियां काम नहीं करती हैं। हालांकि एक मेकैनिकल प्रोस्थेसिस खोई हुई गति की भरपाई करने की कोशिश करता है, लेकिन यह ऊर्जा स्टोर और रिलीज नहीं कर सकता है।

प्रो. कनगराज का मानना ​​​​है कि इस प्रोस्थेटिक नी ज्वाइंट से दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।

A beneficiary wearing the Prosthetic Leg developed by IIT-G  designed it specifically for Indian conditions (Image courtesy IIT-Guwahati)
A beneficiary wearing the Prosthetic Leg developed by IIT-G  designed it specifically for Indian conditions (Image courtesy IIT-Guwahati)

प्रेस रिलीज के अनुसार, इससे जुड़े अन्य पहलू:

  • लॉकिंग मैकेनिज्म के साथ फोर-बार इंजेक्शन मोल्डेबल पॉलीसेंट्रिक नी ज्वाइंट।
  • डीप स्क्वाट स्थिति से खड़े होने पर गति को रोकने से बचा जाता है और स्प्रिंग-असिस्टेड एक्सटेंशन बायस मैकेनिज्म (भारतीय पेटेंट आवेदन संख्या- 201931014318) का उपयोग करके लेग स्विंग के दौरान अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है।
  • दिव्यांगजनों के अंग की लंबाई, गतिविधि, या उम्र (भारतीय पेटेंट आवेदन संख्या- 202031017295) के अनुसार, प्रोस्थेटिस्ट लिंब की लंबाई को एडजस्ट कर सकते हैं, ताकि स्थिरता और लचीलेपन में आसानी हो।
  • जमीनी बल को कम करना, चलने वाले प्रेरणा शक्ति को अधिकतम करना, और प्लांटर-डॉर्सिफ्लेक्सियन और इवर्सन मूवमेंट के साथ डायनेमिक एंकल जॉइंट का उपयोग करते हुए ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते समय संतुलन बनाना। 
  • प्रोस्थेटिक पैर का ट्रायल अंतरराष्ट्रीय मानक लोडिंग के अनुसार किया गया है, जिसके मुताबिक यह 100 किलोग्राम तक वज़न वाले लोगों के लिए कारगर है।

बस कुछ प्रक्रियाएं और हैं बाकी

प्रेस रिलीज़ में दावा किया गया है कि अपनी विकसित टेक्नोलोजी के निर्धारण के बाद, गेट एंड मोशन एनालिसिस लेबोरेटरी, IIT-गुवाहाटी में पहले दिन, दिव्यांग पैरेलल बार के बीच और उसके बाहर इस घुटने के साथ चलने में सक्षम थे। इसके अतिरिक्त, दिव्यांगजन अपने रोज़मर्रा के कामों में से, बिना किसी सहायता के प्रोस्थेटिक पैर के ज़रिए कई तरह के काम करने में सक्षम थे।

वह कहते हैं, “हम परीक्षण प्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं, जहां उपयोगकर्ताओं से रिहैबिलिटेशन फीडबैक लेना है। उपयोगकर्ता की जरूरतों के आधार पर, प्रोस्थेटिक पैर की लागत 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक है। हम टेक्नोलोजी ट्रांसफर के लिए कुछ कंपनियों के साथ चर्चा कर रहे हैं। साथ ही हम इसके कमर्शिअल होने में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ चर्चा करने के लिए तैयार हैं।”

मूल लेखः रिनचेन नॉर्बू वांगचुक

संपादनः अर्चना दुबे

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